सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना के लिए दंडित करने व नियम बनाने की शक्तियाँ : भारत में विधि का इतिहास-98
|अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति
सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 129 के अंतर्गत एक अभिलेख न्यायालय है। इसी कारण से इस न्यायालय को अपनी ही अवमानना के लिए किसी व्यक्ति को दंडित करने की शक्ति प्राप्त है। अवमानना के लिए दंडित करने की इस शक्ति का प्रयोग केवल न्यायालय के न्याय प्रशासन के संबंध में ही किया जा सकता है, किसी न्यायाधीश के व्यक्तिगत अपमान के संबंध में इस शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
इस शक्ति के अधीन सर्वोच्च न्यायालय ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही कर सकता है जो अवांछित उपायों से न्यायाधीशों को प्रभावित करने और न्याय की प्रक्रिया में प्रतिकूल प्रभाव डालने का प्रयत्न करता है।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए अनुच्छेद 121 में यह उपबंध किया गया है कि किसी भी न्यायाधीश के आचरण और निर्णय के संबंध में संसद में चर्चा नहीं की जा सकती है। लेकिन किसी समाचार पत्र में या अन्यथा प्रकाशित किसी आलोचनात्मक आलेख या कथन से स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय प्रशासन के प्रति समुदाय के विश्वास को क्षति पहुँची हो या उस कथन या आलोचना से न्यायिक प्रशासन में अवरोध उत्पन्न हुआ हो तो उक्त कथन अथवा आलोचना को सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना माना जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय की नियम बनाने की शक्ति
संविधान के अनुच्छेद 145 के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को अपनी प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त नियम बनाने की शक्ति प्रदान की गई है। सर्वोच्च न्यायालय की नियम बनाने की यह शक्ति संसद द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन है। वह केवल वे ही नियम बना सकता है जो कि संसद द्वारा नहीं बनाए गए हों। इस तरह संसद द्वारा निर्मित विधि और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्मित नियमों में किसी भी तरह के संघर्ष की संभावना को समाप्त कर दिया गया है।
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