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सहदायिक संपत्ति और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 के उपबंध . . .

अजय जी खुद एक वकील हैं. उन्हों ने परंपरागत हिन्दू विधि तथा उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के बाद की उस की स्थिति पर प्रश्न पूछे हैं। हम यहाँ तीसरा खंबा पर ऐसी बहस को महत्वपूर्ण मानते हैं।  उन के प्रश्न और तीसरा खंबा के उत्तर यहाँ प्रस्तुत हैं। लेकिन यदि वर्तमान में इन कानूनों की व्याख्या के संबंध में कोई भिन्न राय रखता हो तो उसे अपने विचार खुल कर यहाँ रखने चाहिए जिस से सही व्याख्या तक पहुँचा जा सके।

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियमसमस्या-

जयपुर, राजस्थान से अजय ने पूछा है –

मैं एक वकील हूँ, मै यह जानना चाहता हूं कि परंपरागत हिन्दू विधि यही है कि यदि किसी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से कोई संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त होती है तो वह पैतृक संपत्ति है। इस में पौत्रों व परपौत्रों का भी हिस्सा होता है। लेकिन 1956 में उत्तराधिकार अधिनियम आ जाने के उपरान्त स्थिति में कुछ परिवर्तन आया। पुत्रियों और पत्नी को भी पिता का उत्तराधिकारी घोषित कर दिए जाने से ऐसी संपत्ति में पोत्रों के अधिकार पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया। फिर 2005 में उत्तराधिकार अधिनियम में पुनः संशोधन हो जाने पर स्थिति में फिरसे परिवर्तन हुआ।

दादा जी का देहान्त 2001 में हुआ । पिता जी की कोई बहन या बहनें नहीं हैं। दादा जी ने इसे स्वयं अर्जित किया था तो क्या 1. 2005 में उत्तराधिकार अधिनियम में पुनः संशोधन हो जाने पर फिर से क्या परिवर्तन हुआ? 2. क्या दादा जी कि संपत्ति में पोत्रों का भी हिस्सा होता है?

समाधान-

अजय जी,

त्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा-6 (1) का तथा धारा 8 की व्य़ाख्या सर्वोच्च न्यायालय ने 29 सितम्बर 2006 को Sheela Devi And Ors vs Lal Chand And Anr के प्रकरण में दिए गए निर्णय में की है। यह माना है कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 परंपरागत हिन्दू  हिन्दू विधि पर अधिप्रभावी होगा। लेकिन इस अधिनियम की धारा-8 इस अधिनियम के प्रभावी होने के पहले के काल पर प्रभावी होगा। लेकिन धारा-6 केवल सहदायी संपत्तियों के मामले में आकर्षित होगी।

प के मामले में दादा जी के पास जो भी संपत्ति थी वह स्वअर्जित थी। इस कारण धारा 6 (1) प्रभावी नहीं होगी और उन की संपत्ति का दाय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा -8 के अनुसार होगा। अकेले पुत्र होने के कारण सारी संपत्ति के पिता स्वामी होंगे। लेकिन अनुसूची की प्रथम श्रेणी में पौत्र संम्मिलित नहीं होने के कारण पौत्र का उस पर कोई अधिकार नहीं होगा। इस तरह पोत्र का पिता को दादा से मिली संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा।

2005 के संशोधन से धारा-6 को पूरी तरह परिवर्तित कर दिया गया है। अब सहदायिक संपत्ति में पुत्रियों को भी पुत्रों के समान अधिकार दिया गया है। लेकिन यह अधिकार केवल सहदायिक संपत्ति में ही है। इस कारण हमें यह देखना होगा कि जिस संपत्ति के संबंध में विचार किया जा रहा है वह 2005 में सहदायिक थी या नहीं। आपके मामले में 2005 में जो संपत्ति पिता के पास थी उस में पौत्र का कोई हिस्सा नहीं था। इस कारण वह सहदायिक संपत्ति नहीं थी और इस संशोधन से उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ।

स तरह हम देखते हैं कि 1956 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी होने की तिथि 17.06.1956 के पूर्व तक जो संपत्तियाँ सहदायिक थीं। वे ही बाद में भी बनी रह गईं। कोई नई संपत्ति सहदायिक न हो सकी। क्यों कि स्वअर्जित संपत्ति का दाय अधिनियम के अनुसार होने लगा जिस में पौत्रों और प्रपोत्रों का कोई हिस्सा नहीं था। जिस के हिस्से में जो संपत्ति आई वह भी उस की व्यक्तिगत संपत्ति ही रह गई। इस तरह किसी भी मामले में हमें यह देखना होगा कि प्रश्नगत संपत्ति क्या दिनांक 17.06.1956 के पूर्व सहदायिक थी या नहीं। यदि कोई संपत्ति उक्त तिथि के पूर्व सहदायिक नहीं थी तो तो उक्त तिथि के बाद वह सहदायिक संपत्ति में परिवर्तित नहीं हो सकती थी।