सहदायिक संपत्ति का बँटवारा
|समस्या-
भगवान सिंह ने छायण, राजस्थान से पूछा है-
क्या पिता के जीवित रहते पैतृक जमीन में हिस्सा ले सकता हूँ? क्या पिता स्वयं अपनी पैतृक जमीन अपने वारिसों को दे सकता है, और किस माध्यम से दे सकता है।
समाधान-
आप के प्रश्न का सब से महत्वपूर्ण भाग यह है कि कोई पुश्तैनी भूमि होनी चाहिए और यह सहदायिक होनी चाहिए अर्थात आप के पिता को या दादा को या परदादा को 17 जून 1956 के पूर्व उत्तराधिकार में अपने पुरुष पूर्वज से प्राप्त हुई हो।
यदि इस तरह की कोई संपत्ति अस्तित्व में है जो कि सहदायिक है तो उस में हर पुरुष का जन्म से ही हिस्सा है और जिस का जन्म से हिस्सा है वह कभी भी बंटवारे का दावा कर के अपना हिस्सा अलग करवा सकता है। इसी तरह आप भी अपना हिस्सा अलग करवाने के लिए बंटवारे का दावा कर सकते हैं।
पिता अपनी संतानों को अपने जीवनकाल में उन के हिस्से पारिवारिक समझौते के आधार पर दे सकता है और उस के आधार पर यदि संपत्ति कृषिभू्मि है तो राजस्व विभाग में सब के अलग अलग खाते करवा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट / बेटों को मिली प्राॅपर्टी ज्वाइंट फैमिली प्रॉपर्टी, छोटे सदस्यों की सहमति के बिना एग्रीमेंट मान्य नहीं
Dainik Bhaskar
Jul 04, 2019, 10:26 AM IST
नई दिल्ली. 55 साल पुराना भूमि विवाद निपटाते हुए सुप्रीम काेर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है। काेर्ट ने कहा कि पिता से बेटों को मिली प्राॅपर्टी, उनकी निजी प्राॅपर्टी नहीं, बल्कि ज्वाइंट फैमिली प्रॉपर्टी होगी। घर के बड़े सदस्यों द्वारा अपनी संतान की सहमति के बिना इस प्राॅपर्टी काे लेकर किया गया एग्रीमेंट मान्य नहीं होगा। जस्टिस एएम खानविलकर और अजय रस्तोगी की बेंच ने डोडा मुनियप्पा बनाम मुनिस्वामी व अन्य केस में दायर याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया।
काेर्ट ने कहा कि ऐसी प्रॉपर्टी को लेकर किया जाने वाला काेई भी एग्रीमेंट परिवार के सभी सदस्यों की सहमति से ही किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि बेंगलुरू के चिकन्ना नामक व्यक्ति की मौत के बाद उसकी प्राॅपर्टी तीन बेटों पिलप्पा, वेंकटरमनप्पा और मुनिप्पा को मिली। तीनों ने 1950 में इसे बेच दिया। साथ ही शर्त रखी कि खरीदार अगर भविष्य में यह प्राॅपर्टी बेचेगा ताे उन तीनों को ही बेचनी हाेगी।
खरीदार ने इस शर्त का उल्लंघन करते हुए 1962 में इसे डोडामुनियप्पा को बेच दिया। इसके खिलाफ चिकन्ना के पौत्र मुनिस्वामी व अन्य 5 पौत्र कोर्ट पहुंचे। निचली अदालत ने इसे ज्वाइंट फैमिली प्राॅपर्टी नहीं मानते हुए याचिका खारिज कर दी। हालांकि, हाईकोर्ट ने ज्वाइंट फैमिली प्रॉपर्टी मानते हुए मुनिस्वामी के पक्ष में फैसला दिया। विराेध में डोडामुनियप्पा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।