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सहमति से विवाह विच्छेद ही सही उपाय है, उस के लिए प्रयत्न करें।

समस्या-

बरवाला, जिला-हिसार हरियाणा से हेमन्त ने पूछा है –

मेरी शादी २२-०४-२००४ को राजस्थान के पिलानी में हुई थी।  मेरी पत्नी घर आते ही मेरे परिवार से ईर्ष्या करने लगी। परिवार में माता पिता भाई बहन हम चार सदस्य हैँ। सबसे पहले वो मेरी बहन को परेशान करने लगी।  हमने बहन की शादी २२-०२-२००८ को पंजाब में कर दी।  उसके बाद वह मेरी माँ से चिढ़ने लगी। क्योंकि मेरी माँ शुरू से ही मानसिक बीमार है।  मैंने पत्नी को उससे अलग रखने की कोशिश की।  हमारा घर बड़ा है। उस में  दो पोर्शन हैं।  एक में हम और एक में मम्मी पापा रहने लगे।  परन्तु मेरी पत्नी को अब मेरे पापा से चिढ़ पैदा हो गई।  उसने घर में बहुत झगडा पहले भी किया था। जिससे वो रुष्ट होकर मायके चली गई थी।  इस दौरान पंचायत भी हुई थी।  इसके बाद भी वह मायके चली गयी थी।  मैं उसको किसी तरह मना के ले आया था।  परन्तु वो अब फिर से चली गई है।  उसका कहना है कि आप कहीं दूसरी जगह रह लो।  परन्तु मैं चाहता हूँ की माँ बाप के और परिवार के बीच रहूँ।  वो मुझे अलग रखकर मेरे बूढ़े माँ बाप से दूर रखना चाहती है।  जबकि मेरी माँ मानसिक बीमार है।  जब मेरी शादी हुई थी तो वह बीए पास थी और मैं १०+२ था।  हम ने उसको यहाँ एमए भी करवाई। इसके बाद हम उसे पढ़ाना नहीं चाहते थे।  हम चाहते थे कि वो घर को संभाल ले क्योंकि घर को संभालने वाला कोई नहीं था।  लेकिन वो इतनी जिद्दी थी कि हमारी मर्जी के बिना वह अपने मायके वालों से कहकर बीएड भी कर के मानी। लेकिन फिर भी वो घर में झगडा करती थी और अपने मायके चली जाती थी। अंत में हमने परेशान होकर पहले धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम का नोटिस दिया। लेकिन उन्होंने नोटिस का जवाब नोटिस से दिया कि मेरी पत्नी को मेरी मम्मी से प्रोब्लम है और मुझे अलग घर में रखे तो ही मैं रहूंगी।  फिर मैंने जिला संरक्षण अधिकारी को चिट्ठी लिखी।  अधिकारी ने मेरे ससुराल वालों को कई बार बुलाया परन्तु वो नहीं आये। ४ महीने तक मैंने प्रोटेक्शन ऑफिस के धक्के खाए और अंत में मैंने तलाक का केस १८-०८-२०१२ को डाल दिया।  केस की पहली तारीख ११-१०-२०१२ को वो लोग नहीं आये।  उन्होंने कोर्ट का कागज लेने से मना कर दिया था।  जज साहब ने राजस्थान पत्रिका में नोटिस निकलवाने को कहा और आगे तारीख रख दी। वहाँ से मेरे ससुराल वालों ने १६-११-२०१२ को मुझ पर दहेज का केस कार दिया।  उन्होंने धारा ४९८ ए , ४०६ और ३२३ लगायी है।  उसने ५ लोगों के नाम लिखवाए हैं। जिसमे मेरा, मेरे पापा का, चाचा का, चाचा के लड़के का, जो कि हमारे से ५ किलोमीटर दूर गांव में रहते है और मेरी बहन का जो पंजाब में रहती है नाम है। हमें तफ्तीश के लिए पिलानी थाना में बुलाया गया था। जहाँ हम गए थे और लोगों को भी साथ में ले कर गए थे। जिन्होंने अपने बयान पुलिस को दे दिए थे।  अब आप मुझे बताइए की इसमें आगे क्या हो सकता है।  मेरी बहन के ससुराल वाले कह रहे हैं कि हम उन लोगों पर मानहानि का केस करेंगे।  क्या ये संभव है। मेरी पत्नी ने मुझ पर झूठा केस किया है तो मैं उसके विपरीत कुछ कर सकता हूँ?

समाधान-

ब भी कभी ऐसा लगता है कि पत्नी के प्रति पति या उस के संबंधियों द्वारा शारीरिक या मानसिक क्रूरता का व्यवहार किया गया है तो धारा 498 ए का अपराध होता है।  लेकिन यदि पत्नी पति के या उस के संबंधियों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करे तो कोई अपराध नहीं होता। वह एक दुष्कृत्य जरूर होता है जो दंडनीय नहीं है लेकिन ऐसा तथ्य है जिस के आधार पर विवाह विच्छेद हो सकता है। लगभग सभी भारतीय पति पुरुष प्रधानता की मानसिकता से ग्रस्त हैं। ऐसे में वे ऐसा व्यवहार कर बैठते हैं जो क्रूरतापूर्ण परिभाषित होता है। यदि पत्नी अड़ ही जाए तो 498-ए का मुकदमा बनता है और साबित भी हो जाता है।

विवाह के समय आप की पत्नी स्नातक थी, आप ने उसे स्नातकोत्तर होने दिया और फिर उस ने आप से छुपा कर अपने मायके जा कर बी.एड. कर लिया। जिस का स्पष्ट निहितार्थ है कि वह आरंभ से ही नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी। एक ऐसा जीवन चाहती थी जो आप के व आप के परिवार के साथ रहते संभव नहीं। वह नहीं चाहती कि वह आप की मानसिक रूप से रुग्ण माँ की सेवा करे। उस ने आप को अपने परिवार से अलग करना चाहा जो आप नहीं चाहते।  आप चाहते हैं कि वह नौकरी न करे और आप के घर को संभाले। दोनों अपनी अपनी बात पर अड़े हैं।  आप अपने माता-पिता को देखते हैं जो आप की जिम्मेदारी है। संभवतः वह अपने और अपने बच्चों के भविष्य को देखती है। यही आप के मध्य विवाद का विषय है।

प दोनों के मध्य समझौते की एक ही राह है कि दोनों में से कोई अपनी बात से हट जाए। वह अपनी राह पर इतना अधिक बढ़ चुकी है कि वहाँ से लौटना कठिन प्रतीत होता है।  लगता है आप को ही पत्नी की बात माननी होगी अन्यथा कोई समझौता संभव नहीं है।  विवाह विच्छेद निश्चित लगता है।  ऐसी स्थिति में समझदारी यही है कि पत्नी और उस के परिवार वालों से बात की जाए कि वह किन शर्तों पर समझौता करने को तैयार है। यदि वे मान जाते हैं तो समझौता कर मुकदमों को समाप्त कीजिए और दोनों अपनी अपनी राह पर चलिए। यदि विवाह विच्छेद होता है तो आप को स्त्री-धन और स्थाई पुनर्भरण की राशि पत्नी को देनी होगी। उस का प्रस्ताव रखिए समझौता संपन्न हो सकता है। यही एक मात्र राह आप के मामले में दिखाई पड़ती है।

प की बहिन के ससुराल वाले मानहानि के मुकदमे के लिए कह रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि मानहानि का मुकदमा करने से कोई लाभ होगा। यदि प्रथम सूचना रिपोर्ट में उन का नाम है और पुलिस उन के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत नहीं करती है तो वे मानहानि का मुकदमा कर सकते

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