हिन्दू उत्तराधिकार के मामले में संपत्ति पर अधिमान्य अधिग्रहण का अधिकार (preferential right to aquire) क्या है?
|समस्या-
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में वर्णित में वर्णित संपत्ति पर अधिमान्य अधिग्रहण का अधिकार (preferential right to acquire) क्या है?
समाधान-
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा-22 में संपत्ति पर अधिमान्य अधिग्रहण का अधिकार (preferential right to acquire) का उल्लेख किया गया है। इसे समझना बिलकुल कठिन नहीं है।
जब भी किसी व्यक्ति का देहान्त बिना कोई वसीयत छोड़े हो जाता है तो मृतक की संपत्ति और व्यवसाय पर उस के उत्तराधिकारियों का स्वामित्व स्थापित हो जाता है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार प्रथम अनुसूची के सभी उत्तराधिकारियों को उस संपत्ति और व्यवसाय में समान हिस्सा प्राप्त हो जाता है और वे सभी उक्त संपत्ति और व्यवसाय के संयुक्त स्वामी हो जाते हैं। ऐसी संपत्ति और व्यवसाय अविभाजित संयुक्त संपत्ति और व्यवसाय हो जाते हैं। उस संपत्ति और व्यवसाय में सभी हिस्सेदारों के भागों का निर्धारण या तो सभी उत्तराधिकारियों के आपसी समझौते से हुए विभाजन विलेख के माध्यम से संपन्न होता है अथवा किसी एक या अधिक उत्तराधिकारियों द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किए गए विभाजन के वाद में हुई डिक्री के माध्यम से होता है।
यदि ऐसी किसी संयुक्त संपत्ति या व्यवसाय का विभाजन किए बिना उत्तराधिकारियों में से कोई एक भागीदार अपना हिस्सा स्थानान्तरित करवाना चाहे तो उस समय उस संयुक्त संपत्ति या व्यवसाय के अन्य भागीदारों को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वे संपत्ति या व्यवसाय से अपना हिस्सा अलग चाहने वाले पक्षकार का हिस्सा उस का मूल्य उस हिस्सेदार को चुका कर स्वयं अपने नाम हस्तान्तरित करवा लें।
इस तरह स्वयं अपने नाम हस्तान्तरित करवाने का इच्छुक भागीदार उस हिस्से को प्राप्त करने के लिए जिस क्षेत्र में वह संपत्ति स्थित है अथवा जिस क्षेत्र में वह व्यवसाय चल रहा है उस क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार रखने वाले दीवानी न्यायालय में हिस्से को हस्तान्तरित करवाने के लिए आवेदन कर सकता है। संपत्ति या व्यवसाय का मूल्य क्या अदा किया जाएगा इस पर विवाद होने पर न्यायालय हस्तांतिरित होने वाली संपत्ति या व्यवसाय का मू्ल्य तय करेगा। इस प्रकार तय मूल्य अदा करने को तैयार न होने पर संपत्ति या व्यवसाय का भाग उस का अधिकारी भागीदार किसी भी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकता है।
यदि अपने नाम हस्तांतरित करवाने के इच्छुक सहभागीदारों की संख्या दो या अधिक हो तो उन में से जो भी भागीदार हस्तांतरित कराए जाने वाली संपत्ति या व्यवसाय के भाग का अधिक मूल्य देने को तैयार होगा वही उस संपत्ति या व्यवसाय को अपने नाम हस्तांतरित कराने का अधिकारी होगा।
आदरणीय सर,
नमस्ते
मेरा नाम विकास है और मैं बिहार का रहने वाला हूँ मेरे चचेरे मामा जी का कोई संतान नहीं है उन्होंने सिर्फ एक लड़की को गोद लिए है जिसकी शादी हो चुकी है अब चचेरे मामा के पत्नी ने, जो जमीन उनके नाम पर थी उसको मेरे पत्नी के नाम वसीयत कर दिया जिसमे दत्तक पुत्र पुतोह कर के उल्लेख किया. इसके बाद मेरे चेचेर मामा की पत्नी देहांत हो गया. अब मैं चाहता हूँ की वह संपत्ति मेरे पत्नी को बक्शिस्नामा में मिले. क्या मेरे चचेरे मामा उस सम्पति को मेरे पत्नी के नाम से बक्शिस्नामा में दे सकते है ?
Dharmendra का पिछला आलेख है:–.राज्य और केन्द्रीय कानूनों में प्रतिकूलता (Repugnancy)
आदरणीय सर
१/ यह की एक वाद preferential Right हेतु विचाराधीन है जो अविभाजित हिन्दू पैत्रिक संपत्ति का है इसके ४ सहस्वामी है वाद प्रस्तुति के बाद ३ सहस्वामी ने इस सम्पत्ति को आपस में मिलकर ४ क्रेता को विक्रय कर दिया इस वाद में जो ४ क्रेता है उनमेसे एक क्रेता वाद प्रस्तुति के समय से ही वाद में पक्षकार रहा है और उसने अपने पुत्र भाई एवं भतीजे के नाम से विक्रय पत्र सम्पादित करे इस कारन वादी ने ये वाद प्रस्तुत किया की वादग्रस्त सम्पत्ति में उसका १/४ स्वत्व है और शेष ३/४ स्वत्व क्रय करने का preferential right है
२/ यह है की वाद प्रस्तुति के बाद में विक्रय पत्र का पंजीयन हुवा इस कारन से अन्य ३ क्रेताओं को बाद में पक्षकार बनाया हालाँकि एक आवेदन आदेश १ नियम १० तत्काल प्रस्तुत कर दिया था और उसके आदेश पर आदेश ६ नियम १७ पक्षकार के नाम जोड़ने हे तू प्रस्तुत कर दिया था लेकिन इस पर आदेश आने तक २ वर्ष का समय लगा
Resp.Sir
इस वाद में limitation Act. में कानून की द्रष्टि क्या होगी
१/ वाद में एक क्रेता पक्षकार समयावधि में है अन्य सम्यबधित है
२/ क्या वाद प्रस्तुति दिनाक और संशोधन दिनाक दोनों की लिमिटेशन को प्रभावित करता है
३/ इस परेशानी का अन्य कोई उपाय
सर क्या प्रिफ़ेरेन्तिअल राइट के लिए न्याय शुल्क अदा करना आवशक है ?
धन्यवाद
Resp. Sir
A lot of thanks for advoice. (Preferential Right to acqiure ancetral property.)
Thanks
Rajesh Kumar Arora
9669026949
Sir Ji Namste
Plz.
“Preferential Right” –
(1)Court-fees Pay karna hogi?
(2)jab ki ek sah-swami ne sell deed kar di ho other person ko. (dusre sah-swami ke share sahit sell deed)