हिन्दू धर्म त्याग कर इस्लाम ग्रहण कर लेने मात्र से उस का पूर्व विवाह समाप्त नहीं हो जाता, उसे दूसरा विवाह करने के लिए विवाह विच्छेद कराना होगा।
समस्या-
विवाहित हिन्दू स्त्री का इस्लाम धर्म अपनाने के बाद क्या उसके पहले पति से विवाह रहता है या टूट जाता है, वह दूसरी शादी के लिए तलाक ले या नहीं?
-सुलेमान, तहसील नोहर जिला हनुमानगढ़ राज्य राजस्थान
समाधान-
कोई भी हिन्दू स्त्री-पुरुष जब एक बार हिन्दू विधि से विवाह कर लेते हैं तो वे दोनों उस विवाह में तब तक रहते हैं जब तक कि उस विवाह के विच्छेद की डिक्री पारित नहीं कर दी जाती है। यदि उन में से कोई भी धर्म परिवर्तन कर लेता है तब भी यह विवाह बना रहता है, वे साथ साथ रह सकते हैं।। किन्तु धर्म परिवर्तन से धर्म परिवर्तन करने वाले के पति या पत्नी को यह अधिकार उत्पन्न हो जाता है कि वह धर्म परिवर्तन के आधार पर अपने साथी से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सके और वह हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13(ii) में विवाह विच्छेद के लिए आवेदन कर सकता है और साथी के धर्म परिवर्तन के आधार पर उसे विवाह विच्छेद की डिक्री पारित हो सकती है। तब वह दूसार विवाह कर सकता/ सकती है।
यदि आप का प्रश्न यह है कि किसी स्त्त्री द्वारा इस्लाम ग्रहण कर लेने के बाद उसे दूसरा विवाह करने के लिए अपने पूर्व पति से तलाक लेना जरूरी तो नहीं? तो उस का उत्तर यह है कि उसे विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करा कर अपने पूर्व पति से विवाह विच्छेद करना होगा। इस्लाम धर्म के अनुसार भी एक स्त्री एक विवाह में रहते हुए निकाह नहीं कर सकती। उसे पहले पूर्व विवाह से तलाक लेना पड़ेगा और फिर इद्दत की अवधि भी व्यतीत करनी होगी। इस मामले में हिन्दू स्त्री को धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम हो जाने के बाद भी अपने हिन्दू पति से हिन्दू विधि से विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करनी होगी। डिक्री पारित होने के उपरान्त इद्दत की अवधि गुजर जाने पर ही वह इस्लामी शरीयत के अनुसार निकाह कर सकती है।