हिन्दू स्त्री की संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-15 से शासित होगा।
|समस्या –
एक अचल संपत्ति मकान जिसकी रजिस्ट्री वर्तमान में मेरी दादी के नाम पर है एवं मेरी दादी का स्वर्गवास वर्ष 2009 में हो चुका है एवं मेरे दादा जी का भी स्वर्गवास वर्ष 2002 में हो चुका है। मेरी दादी की चार संतानें जिसके अंतर्गत मेरे पिताजी, मेरे ताऊजी एवं मेरी दो बुआजी (पिताजी की बहनें) हैं एवं मेरे पिताजी की दो संताने जिसके अंतर्गत मैं स्वयं एवं मेरी बहन शामिल है एवं मेरी स्वयं की चार संताने जिसके अंतर्गत मेरे चार पुत्र हैं। मेरे ताऊजी की तीन संताने जिसके अंतर्गत ताऊजी का एक पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं एवं ताऊजी का जो पुत्र है उसकी भी चार संतानें जिसके अंतर्गत उसके चार पुत्र हैं। अब सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि उपरोक्त वर्णित अचल संपत्ति मकान में उपरोक्त वर्णित सभी सदस्यों में से कौन-कौन कानूनी रूप से हिस्सेदार हैं। उपरोक्त वर्णित अचल संपत्ति मकान में उक्त वर्णित मेरी दोनों बुआजी की संतानें भी क़ानूनन भागीदार है क्या? उपरोक्त वर्णित अचल संपत्ति मकान में उक्त वर्णित मेरे ताऊजी की दोनों बेटियों की संतानें एवं मेरी बहन की संतानें भी कानूनन भागीदार हैं क्या? उपरोक्त लिखित समस्या के प्रत्येक बिन्दु पर विस्तृत जानकारी देने का आभार करें।
– अभिषेक बंसल, तहसील व जिला ग्वालियर, मध्यप्रदेश
समाधान-
मकान का स्वामित्व आप की दादी का था। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत यह उपबंध है कि किसी भी हिन्दू स्त्री की संपत्ति उस की एब्सोल्यूट संपत्ति होती है। अर्थात उस में कोई भागीदार नहीं होता। इस कारण आप की दादी के नाम की यह संपत्ति पुश्तैनी संपत्ति नहीं है।
आप की दादी के देहान्त के उपरान्त अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत इस संपत्ति का उत्तराधिकार खुला है। धारा 15 में किसी भी स्त्री की संपत्ति के उत्तराधिकारी प्रथमतः उस स्त्री के पुत्र पुत्री व पति हैं। आप के दादाजी का देहान्त पूर्व में ही हो चुका है। इस कारण से आप की दादी की उक्त संपत्ति के उत्तराधिकारी उन के पुत्र अर्थात आप के पिता, आप के ताऊजी और आप की बुआएँ हुई हैं। सभी एक चौथाई हिस्से के अधिकारी हैं। जब तक ये चारों जीवित हैं इस संपत्ति पर किसी भी अन्य व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है। इन चारों में से किसी की मृत्यु हो जाने पर उस के हिस्से का उत्तराधिकार खुलेगा जो कि या तो उस व्यक्ति की वसीयत के अनुसार होगा और यदि कोई वसीयत नहीं की गयी तो पुरुष के मामले में उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-8 से तथा स्त्री होने पर धारा-15 के आधार पर खुलेगा। यदि इन चारों में से कोई हिस्सेदार चाहे तो बंटवारा करवा सकता है, या बिना बंटवारे के अपने हिस्से को विक्रय कर सकता है।