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पिता की स्वअर्जित संपत्ति पर संतानों का कोई अधिकार नहीं

 बाराबंकी, उ.प्र. से विकास शुक्ला ने पूछा है –
दि पुत्र का विवाह हो गया हो और उस के दो बच्चे भी हों तो पिता द्वारा बनाई गई संपत्ति पर उस का क्या अधिकार होता है?
 उत्तर – 
विकास जी,
भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(f), 19(5), 31, 32, 39(b) व (c), 226 तथा 265 में संपत्ति के अधिकार के सम्बन्ध में उपबंध किए गए हैं। इन उपबंधों का सार है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को संपत्ति अर्जित करने, उसे अपने पास रखने और उस का व्ययन करने का वैयक्तिक अधिकार है। लेकिन इस अधिकार में यह कर्तव्य भी सम्मिलित है कि इसे युक्तियुक्त रीति से उपयोग में लिया जाना चाहिए और यह देश के अन्य नागरिकों के इसी तरह के अधिकार में किसी तरह का हस्तक्षेप न करे। इस अधिकार का प्रयोग युक्तियुक्त और जनहित में किया जाए। 
स तरह हम पाते हैं कि प्रत्येक नागरिक को संपत्ति को अर्जित करने, उसे अपने पास रखने और उस का अपनी इच्छानुसार व्ययन करने का अधिकार प्राप्त है। यही अधिकार एक ऐसे व्यक्ति को भी प्राप्त है जो किसी का पुत्र, पुत्री, पिता या माता हो सकता है। उस के इस अधिकार में कोई भी व्यक्ति साझीदार नहीं है। किसी व्यक्ति का उस के इस अधिकार में हस्तक्षेप भी नहीं हो सकता, फिर चाहे वह उस व्यक्ति के माता-पिता, पति, पत्नी या पुत्र, पुत्री ही क्यों न हों।  संक्षेप में हम कह सकते हैं कि किसी भी व्यक्ति द्वारा अर्जित की गई या बनाई हुई संपत्ति में किसी अन्य का कोई अधिकार नहीं है। पिता की संपत्ति में पुत्र या पुत्री का कोई अधिकार नहीं है। 
 स्वयं अपना भरण पोषण करने में असमर्थ माता-पिता, पत्नी, अवयस्क पुत्र तथा अवयस्क पुत्री या अविवाहित  और विधवा पुत्री को भरण-पोषण का अधिकार अवश्य प्राप्त है और वे अपने इस अधिकार के लिए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। इस आवेदन की सुनवाई में इस बात पर अवश्य विचार किया जाता है कि जिस व्यक्ति से भरण-पोषण की मांग की गई है उस की आर्थिक स्थिति क्या है जिस के आधार पर यह निश्चित किया जा सकता है कि आवेदक को उस व्यक्ति से भरण-पोषण के रूप में कितनी राशि प्रतिमाह दिलाई जा सकती है। लेकिन उस व्यक्ति की संपत्ति पर किसी तरह का कोई अधिकार किसी को भी नहीं है। अपने जीवन काल में व्यक्ति अपनी स्वअर्जित संपत्ति का स्वयं स्वामी है।  वह अपनी संपत्ति को अपने पास रख सकता है और उसे किसी भी प्रकार से उपयोग में ले सकता है, उसे अपनी इच्छानुसार बेच सकता है अथवा किसी को भी हस्तांतरित कर सकता है। 

संपत्ति धारण करने वाला व्यक्ति अपने जीवन काल में स्वअर्जित संपत्ति का इच्छानुसार उपयोग करते हुए संपत्ति के संबंध में कोई भी वसीयत किए बिना मर जाता है तो उस की मृत्यु के उपरांत उस के द्वारा छोड़ी गई निर्वसीयती संपत्ति में उस के उत्तराधिकारियों का अधिकार व्यक्तिगत उत्तराधिकार विधि के अनुसार अधिकार निहित हो जाता है। इस तरह उस व्यक्ति की संपत्ति उस के उत्तराधिकारियों के संयुक्त स्वामित्व की संपत्ति में परिवर्तित हो जाती है। उत्तराधिकारी इस संपत्ति का बँटवारा आपसी सहमति से बँटवारा नामा निष्पादित कर और उसे पंजीकृत करवा कर उस का विभाजन कर सकते हैं। विभाजन के उपरांत प्राप्त संपत्ति पर किसी भी उत्तराधिकारी का व्यक्तिगत स्वामित्व स्थापित हो जाता है। इस तरह आप समझ सकते हैं कि पिता की स्वयं अर्जित और बनाई गई संपत्ति में पुत्र का कोई अधिकार नहीं होता।

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