रहन सहन में अन्तर के कारण भी पारिवारिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
|सरबजीत सिंह ने ग्राम गुमटी, तहसील व जिला बरनाला, पंजाब से समस्या भेजी है कि-
मेरी शादी 10/12/2012 को हुई है, पर सदी के कुछ समय बाद से मेरी पत्नी मनु इस बात पर परेशान करने लग गई कि उसे गाँव में नहीं रहना है वह शहर में रहना चाहती है। मैं ने उस की इस बात में उस का साथ नहीं दिया। मेरी पत्नी उस के पिता के घर चली गई। उस के कुछ माह बाद जब पंचायत बुलाई तो मेरी पत्नी और और सास ने पंचायत में ही मुझे बहुत बुरा भला कहा। उस के बाद उन्हों ने महिला सेल में आवेदन दे दिया। वहाँ जो भी बयान हुआ वह मेरे पक्ष में है। अब मेरी पत्नी ने धारा 125 दं.प्र.संहिता का मुकदमा कर दिया है। मुझे सलाह दें मैं क्या करूँ।
समाधान-
आप की समस्या का मूल कारण यह है कि आप ने विवाह के पहले यह नहीं देखा कि जिस लड़की से आप विवाह कर रहे हैं वह कैसी है और किस तरह का जीवन जीना चाहती है। आप उस की उन इच्छाओं को पूरा भी कर पाएंगे या नहीं। ग्रामीण जीवन हर किसी के बस का नहीं होता। लगता है आप की पत्नी के बस का भी नहीं है। असल में दोनों की परिवार की संस्कृति एक जैसी नहीं है और आप की पत्नी आप के परिवार में एडजस्ट नहीं कर पा रही है। यदि दोनों परिवारों में रहन सहन का अन्तर बहुत अधिक न हो तो समझाइश से बात बन जाती है। अन्यथा बात बिगड़ती ही चली जाती है।
आप उन से कह सकते हैं कि उन्हें विवाह के पहले पता था कि उसे गाँव में रहना होगा। आप गाँव नहीं छोड़ सकते। वह गाँव में रह नहीं सकती। वैसी स्थिति में दोनों सहमति से विवाह विच्छेद कर लें तो बेहतर है। सहमति से विवाह विच्छेद में आप को पत्नी को एक मुश्त भरण पोषण राशि देनी पड़ेगी। लेकिन जीवन भर की अशान्ति से यह बेहतर है। आप सहमति से तलाक के लिए प्रयत्न कर सकते हैं जो दोनों के संयुक्त आवेदन पर छह से आठ महीने में न्यायालय से हो जाता है।
फिलहाल धारा 125 दं.प्र.सं. के आवेदन का उत्तर प्रस्तुत करें और कहें कि आप पत्नी को अपने साथ रखने को तैयार हैं। वह अपनी स्वैच्छा से अपने मायके में रह रही है इस कारण वह भरण पोषण की अधिकारी नहीं है। इस आधार को आप साबित कर सके तो आप को राहत मिल सकती है। फिर भी संभावना यह है कि आप का यह तर्क नहीं चलेगा। भरण पोषण की राशि जो भी न्यायालय तय करेगा वह तो देनी होगी।