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जब कोई पुलिस अदालत तक पहुँचता है तभी लोगों को कानून याद आता है।

rp_Hindu-marrige1.jpgसमस्या-

मनोज कुमार चौरसिया ने सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मेरी शादी 28 मई 2013 को हुई। शादी के एक माह बाद मेरी पत्नी मानसिक रूप से बीमार हो गयी जिसका हमने मनोचिकित्सक इलाहाबाद से इलाज कराना शुरू किया और अभी भी इलाज चल रहा है। मेरे ससुराल वाले जबरन मेरी पत्नी को विदा कराकर ले जाते है और वापस विदा नहीं करते। चूँ कि मेरे ससुर वकील सुलतानपुर दीवानी में एवं ममिया ससुर भदोही में जज हैं। इसलिए मुझे झूठे मुकदमें में फँसाने की धमकी देते हैं। 07 फरवरी को मेरी पत्नी को जुड़वाँ बच्चे एक बेटा और एक बेटी आपरेशन से हुए। दवा का सारा पैसा हम ने दिया और हास्पिटल से पत्नी मायके चली गयी। जाते समय ससुराल वालों ने कहा कि तुम को तरसा लेगें। देखो अब हम क्या–क्या करते हैं? तुम्हे बच्चा पैदा करने की क्या जरूरत थी? अब 8 माह का समय बीत चुका है, ससुराल वाले से बात किया परन्तु भेजने को तैयार नहीं थे। मेरी माँ को अपने घर बुलाकर कहा कि अब मेरी लडकी नहीं जायेगी लड़ कर हिस्सा लेगी। इसपर हमने वकील से बात किया तो वकील ने धारा 13 के अन्तर्गत मानसिक बीमारी और जबरन ले जाने व धमकी देने को आधार बनाकर तलाक का मुकदमा कर दिया है। मानसिक बीमारी का लगभग एक वर्ष का पर्चा व कुछ डिलीवरी हास्पिटल का पर्चा मेरे पास है। क्या मुझे तलाक मिल जायेगा? और क्या मेरी ससुराल वाले मुझे 498ए‚ 406‚ 125‚ 24 व अन्य किसी धारा में सजा दिला सकते हैं? क्या मुझे जेल भी जाना पड सकता है?

समाधान-

तीसरा खंबा को इस तरह की समस्याएँ रोज ही मिलती हैं। जिन में बहुत से पति यह पूछते हैं कि मुझे तलाक तो मिल जाएगा? क्या मेरी ससुराल वाले मुझे 498ए‚ 406 या अन्य किसी धारा में सजा दिला सकते हैं? क्या मुझे जेल भी जाना पड़ सकता है? आदि आदि।

र कोई विवाह करने के पहले और विवाह करने के समय यह कभी नहीं सोचता कि कानून क्या है? और उन्हें देश के कानून के हिसाब से बर्ताव करना चाहिए। वह सब कुछ करता है। वह दहेज को बड़ी मासूमियत से स्वीकार करता है, वह मिले हुए दहेज की तुलना औरों को मिले हुए दहेज से करता है, वह उस दहेज में हजार नुक्स निकालने का प्रयत्न करता है।

ब विवाह के लिए लड़की देखी जाती है तो उस की शक्ल-सूरत, उस की पढ़ाई लिखाई, उस की नौकरी वगैरा वगैरा और उस के पिता का धन देखा जाता है। यह कभी नहीं जानने का प्रयत्न किया जाता कि लड़की या लड़के का सामान्य स्वास्थ्य कैसा है? वह किस तरह व्यवहार करता या करती है, विवाह के उपरान्त दोनों पति-पत्नी में तालमेल रहेगा या नहीं? क्यों कि यह सब जानने के लिए लड़के लड़की को कई बार एक साथ कुछ समय बिताने की जरूरत होती है। इसे पश्चिम में डेटिंग कहते हैं। भारतीय समाज डेटिंग की इजाजत कैसे दे सकता है? क्या पता लड़के-लड़की शादी के पहले ही कुछ गड़बड़ कर दें तो? या लड़का या लड़की रिश्ता के लिए ही मना कर दे तो दूसरे की इज्जत क्या रह जाएगी?

विवाह के बाद दहेज को दहेज ही समझा जाता है। पति और उस के रिश्तेदार उसे अपना माल समझते हैं। वे जानते हैं कि दहेज लेना और देना दोनों अपराध हैं। पर कौन देखता है? की तर्ज पर यह अपराध किए जाते हैं। दहेज के कानून में माता-पिता, रिश्तेदारों, मित्रों और अन्य लोगों यहाँ तक कि ससुराल से प्राप्त उपहारों को दहेज मानने से छूट दी गयी है। इस कारण जब कोई मुकदमा दर्ज होता है तो लोग उसे दहेज के बजाय उपहार कहना आरंभ कर देते हैं। पर वे नहीं जानते कि किसी स्त्री को मिले उपहार उस का स्त्री-धन है। उस के ससुराल में रखा हुआ यह सब सामान उस की अमानत है। उसे न लौटाएंगे तो अमानत में खयानत होगी। फिर जब आईपीसी की धारा 406 अमानत में खयानत का मुकदमा ही बनाना होता है तो बहुत सी काल्पनिक चीजें लिखा दी जाती हैं।

त्नी को मानसिक या शारीरिक क्रूरता पहुँचाना हमारे यहाँ पति और ससुराल वालों का विशेषाधिकार माना जाता है, लेकिन कानून उसे 498-ए में अपराध मानता है, तो यह अपराध भी धड़ल्ले से देश भर में खूब चलता है। लोग ये दोनों अपराध खूब धड़ल्ले से करते हैं। समझते हैं कि इन्हें करने का उन्हें समाज ने लायसेंस दिया हुआ है। पर जब इन धाराओं में मुकदमा होने की आशंका होती है या धमकी मिलती है तो वही लोग बिलबिला उठते हैं। उन्हें कानून का यह पालन अत्याचार दिखाई देने लगता है।

म मानते हैं कि जब मुकदमा होता है तो बहुत से फर्जी बातें उस में जोड़ी जाती हैं। यह भी इस देश की प्राचीन परंपरा है। गाँवों में जब लड़ाई होती है तो इज्जत की रखवाली में हथियार ले कर बैठे परिवारों की स्त्रियों से पुलिस में बलात्कार की रिपोर्ट करा दी जाती है। लेकिन विवाह के रिश्ते में ऐसा फर्जीवाड़ा करना दूसरे पक्ष को नागवार गुजरता है।

ब अदालत में कोई भी पीड़ित हो या न हो। एक बार शिकायत कराए, या पुलिस को एफआईआर लिखाए तो उन का फर्ज है जाँच करना और जाँच करने का मतलब पुलिस के लिए यही होता है कि पीड़ित पक्ष और उस के गवाहों के बयान लिए जाएँ और उन से जो निकले उस के आधार पर अपराध को सिद्ध मानते हुए अदालत में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया जाए। एक बार आरोप पत्र पेश हो जाए तो जब तक उस मुकदमे का विचारण नहीं हो जाए तब तक अदालत के चक्कर तो काटने ही होंगे। सचाई पता लगाने की जरूरत पुलिस और अदालत को कभी नहीं होती। वैसे भी जो चीज पहले से ही पता हो उसे जानने की जरूरत नहीं होती। आखिर वह जान लिया जाता है जो पहले से पता नहीं होता।

प के सामने समस्या है। आप ने तलाक का मुकदमा कर दिया है। वकील की सहायता ली है। वकील को सारे तथ्य पता हैं। हमे तो आप ने पत्नी को मानसिक रोगी मात्र बताया है। उस का पागलपन या मानसिक रोग क्या है? वह रोग के कारण क्या करती या नहीं करती है? या चिकित्सक ने उसे क्या रोग बताया है? आपने हमें कुछ नहीं बताया है। जो मुकदमा किया है उस में क्या आधार किन तथ्यों पर लिए हैं? यह भी नहीं बताया है फिर आप हम से अपेक्षा रखते हैं कि तीसरा खंबा आप को बता देगा कि आप को तलाक मिलेगा या नहीं और आप को फर्जी मुकदमों में फँसा तो नहीं दिया जाएगा।

लाक का मिलना मुकदमे में लिए गए आधारों और उन्हें साक्ष्य से साबित करने के आधार पर निर्भर करता है। आप की पत्नी मुकदमा दर्ज कराएगी तो हो सकता है आप को गिरफ्तार भी कर लिया जाए। लेकिन अक्सर ऐसे मामलों में जमानत हो जाती है और जल्दी ही पति और उसके परिवार वाले रिहा हो जाते हैं। ऐसे मामलों में चूंकि झूठ जरूर मिलाया जाता है इस कारण ज्यादातर पति इस मिलावट के कारण बरी हो जाते हैं। पर कभी कभी सजा भी हो जाती है। अगर आप ने कोई अपराध नहीं किया है। कभी पत्नी को गाली नहीं दी है, उस पर हाथ नहीं उठाया है, उस के उपहारों और स्त्री-धन को उस का माल न समझ कर अपना माल समझने की गलती नहीं की है तो आप को सजा हो ही नहीं सकती। पर यह सब किया है तो सजा भुगतने के लिए तैयार तो रहना ही चाहिए। अपराध की सजा हर मामले में नहीं तो कुछ मामलों में तो मिल ही सकती है।

भी तक कानून ने पत्नी को पति की संपत्ति में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं दिया है। पति की मृत्यु के बाद यदि पति ने कोई बिना वसीयत की संपत्ति छोड़ी हो तो उस का उत्तराधिकार बनता है जिसे वह ले सकती है। लेकिन जीते जी अधिक से अधिक अपने लिए भरण पोषण मांग सकती है। इस कारण जो यह धमकी दे रहे हैं कि पत्नी हिस्सा लड़कर लेगी वे मिथ्या भाषण कर रहे हैं। अभी तक कानून ने ही पति की संपत्ति में हिस्सा पत्नी को नहीं दिया है अदालत कैसे दे सकती है। इस मामले में आप निश्चिंत रहें। आज तीसरा खंबा की भाषा आप को विचित्र लगी होगी। पर इस का इस्तेमाल इस लिए करना पड़ा कि लोग ऐसे ही समझते हैं। आप इस बात को समझेंगे और दूसरे पाठक भी इस तरह के प्रश्न करना बन्द करेंगे। हम तो ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना बन्द कर ही रहे हैं।

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