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पिता का अपनी संतान से मिलने का अधिकार

Blind father with childrenसमस्या-

अनुराग साहु ने कोरबा, छत्तीसगढ़ से पूछा है-

मै और मेरी पत्नी पिछले 2 वर्षो से अलग रह रहे हैं। पत्नी ने मेरे व मेरे परिवार वालों के उपर 498 क आईपीसी, भरण पोषण के लिए 125 दं.प्र.सं. एवं घरेलू हिंसा अधिनियम के मुकदमे लगा रखे हैं जो न्यायालय में विचाराधीन हैं। भरण पोषण धारा 125 दं.प्र.सं. के तहत अंतरिम राशि 4000+1000 रूपये पत्नी एवं पुत्र के लिए न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया है। मैं उक्त राशि दे रहा हूँ। मेरा पुत्र 4 वर्ष 6 माह का हो गया है। मेरी पत्नी जब से मायके गयी है तब से मेरे पुत्र से मुझे मिलने नहीं देती है। पुत्र से मिलने उनके घर जाने पर उसके तथा उसके परिवार वालो के द्वारा मेरे उपर बहुत ज्यादा दुर्वव्यहार करती है एवं पुत्र से मिलने के लिए मना करती है। मेरे द्वारा कोर्ट में पुत्र से मिलने के लिए अर्जी दी गयी थी जिसे न्यायाधीश महोदय ने अवयस्क पुत्र से मिलने का कोई प्रावधान नहीं होने का आधार कह कर खारिज कर दिया गया। जिस के बाद मेरी पत्नी एवं उसके घर वालों का मनोबल और बढ़ गया है। मैं अपने पुत्र से मिलना चाहता हूँ पर वकीलों का कहना है कि पुत्र के सात वर्ष होने के बाद ही ऐसा हो सकता है। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ? क्या वास्तव में मै अपने पुत्र से कानूनन नहीं मिल सकता हूँ या कोई उपाय है जिस से मैं कानूनन उससे मिल सकूँ। कृपया मुझे मार्ग दर्शन देंवे।

समाधान-

प ने यह नहीं बताया कि आप ने केवल अपने पुत्र से मिलने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था अथवा उस की कस्टडी प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था। आप ने यह भी नहीं बताया कि आप ने यह आवेदन किस न्यायालय में लगाया था और स्वतंत्र रूप से लगाया था या फिर आपके द्वारा बताई गई कार्यवाहियों में किसी में लगाया गया था? इस तरह आप ने अपने मामले की पूरी जानाकारी नहीं दी है जिस के कारण कोई स्पष्ट राय देना संभव नहीं है। आपने यह भी नहीं बताया कि उस ने तो इतने मुकदमे किए हुए हैं आप ने उस पर क्या मुकदमा किया हुआ है? इतना विवाद होने पर आप को कम से कम हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा -13 के अन्तर्गत विवाह विच्छेद का मुकदमा करना चाहिए था। यदि आप के पास विवाह विच्छेद के लिए कोई आधार नहीं था तो आप को दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना का मुकदमा तो करना चाहिए था। खैर¡ पिता अपनी संतान का नैसर्गिक संरक्षक है और अपनी संतान से मिलने का उसे नैसर्गिक अधिकार है इस का किसी कानून में उल्लेख होना आवश्यक नहीं। इस अधिकार से उसे तभी वंचित किया जा सकता है जब कि उस का संतान से मिलना संतान की भलाई के लिए उचित न हो।

दि आप ने उक्त दोनों में से कोई मुकदमा नहीं किया है और आप की पत्नी ने भी हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत कोई मुकदमा नहीं किया है तो आप धारा-13 या धारा-9 में आवेदन प्रस्तुत कीजिए और उस के बाद उसी न्यायालय में हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 26 में बच्चे की कस्टड़ी के लिए आवेदन प्रस्तुत कीजिए। इस आवेदन के साथ ही दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 के अन्तर्गत अस्थाई व्यादेश का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कीजिए कि जब तक कस्टड़ी का मामला तय नहीं हो जाता बच्चे से सप्ताह में दो बार मिलने और पूरे दिन साथ रहने की अनुमति प्रदान की जाए। आप को न्यायालय बच्चे से मिलने की अनुमति प्रदान करेगा। हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 26 में कस्टड़ी के साथ ही ये सब बिन्दु तय करने का अधिकार न्यायालय को है।

दि आप ये सब कर चुके हैं और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 26 में आप को बच्चे से मिलने की अनुमति नहीं दी गई है तो आप उस आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय के समक्ष रिविजन या रिट याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। उच्च न्यायालय आप को बच्चे के मिलने हेतु आदेश पारित करेगा।

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