दाम्पत्य अधिकारों की स्थापना की डिक्री की पालना न करना तलाक का आधार है।
|समस्या-
जयपुर, राजस्थान से संजय यादव ने पूछा है-
मेरी पत्नी ने मुझ पर विवाह विच्छेद का मुकदमा कर रखा था, जिसे कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया है। मैं ने धारा 9 के तहत दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का मुकदमा दायर कर रखा था जो मेरे पक्ष में डिक्री हो गया है। मतलब मैं दोनों जगह से मुकदमा जीत गया। मेरी पत्नी के घर वाले मुझे उस से बात नहीं करने देते। अब मुझे क्या करना होगा जिससे वह वापस आ जाये। अगर वह हाईकोर्ट में अपील करती है तो क्या होगा?
समाधान-
आप ने दोनों मुकदमों में जीत हासिल की है। लेकिन आप की पत्नी को उच्च न्यायालय में इन निर्णयों के विरुद्ध अपील करने का अधिकार है। यदि वह अपील करती है तो जिन आधारों पर वह अपील करेगी आप को उन्हें गलत सिद्ध करना होगा। इस कारण से आप को चाहिए कि अपील होने पर अपनी पैरवी के लिए अच्छा वकील मुकर्रर करें।
किसी भी व्यक्ति को कानून के माध्यम से किसी अन्य के साथ रहने को बाध्य नहीं किया जा सका है। इस कारण से दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के मुकदमें में जो डिक्री पारित की गई है उसे मानते हुए आप की पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहती है तो आप के पास एक ही उपाय यह है कि आप इस डिक्री की पालना न करने के कारण उस के विरुद्ध विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करने हेतु आवेदन कर सकते हैं, यह तलाक का अतिरिक्त आधार है। इस आधार पर आप को विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो सकती है। आप को इस से लाभ यही होगा कि आप विवाह विच्छेद के उपरान्त अपनी पत्नी के भरण पोषण के दायित्व से मुक्त हो सकते हैं।
लड़का चाहे जो भी चाहे उसके मन का नही हो सकता ये भारतिय कानून कहता है लेकिन लड़की चाहे तो पति बच्चे,सास-ससूर सभी रिश्तेदारोँ को हवालात मेँ सड़ा सकती है,पुरे खानदान को मरने पर मजबूर कर सकती है। बदमाश लड़की को मनमानी करने का पुरा अधिकार है वो चाहे तो किसी से भी शादी के बाद भी प्यार कर रँगरेलियाँ मना सकती है और पति एवं ससुराल वालो द्वारा विरोध करने पर झुठा मुकदमा कर सकती है सब छूट है उसके लिए हमारे कानून मे, अखिर हमारे कानून एवं समाज की नजर मेँ कमजोर एवं अबला है बेचारी कोई तो बचाव होना ही चाहिए ना कुछ कमीनो की गलती की सजा न जाने कितने बेगुनाहो को सहनी पड़ती है।
आप एक काम कीजिए जब आप की पत्नि आप के साथ नही रहना चाहती तो प्यार से बात करके अगर सुलह की गुजाइश है तो साथ रखिये या तो प्रेम से बिना किसी आरोप प्रत्यारोप के इस रिश्ते का अंन्त करके अपनी अपनी जिन्दगी के नौका को पार लगाइए फालतू केस लड़ते लड़ते 7-10 साल लग जाएगे तब तक जीवन जीने की इच्छा दोनो का खत्म हो चुकी होगी और टूटकर पूरी तरह बिखर जायेगी,और बिन पानी कस मीन हो जायेगी।तड़प और असहनिय दर्द के सिवाय कुछ हासिल नही होगा।
“जिन्दगी है इक पल की दोस्त इसे यू ही तिनको मे न बिखरने दे”
तेरे बिन मै क्या…….???
पर तलाक क्यों? यहाँ तो लड़का तलाक नहीं चाहता है, यहाँ तो लड़का पत्नी को साथ रखना चाहता है तो यह कैसे होगा, वह न बताएं.
Mahesh Kumar Verma का पिछला आलेख है:–.बलात्कार या अन्य अपराध पर सजा पर मेरा निजी विचार