पहला विवाह समाप्त हुए बिना महिला का दूसरा विवाह शू्न्य है
| दीपक ने पूछा है –
मेरा एक मुस्लिम लड़की से प्रेम संबंध था। आर्य समाज में उस लड़की का धर्म परिवर्तन करवा कर उस का नाम मुस्कान आर्य रखा गया। उस के बाद 5 जनवरी को हम ने आर्य समाज में ही विवाह कर लिया। विवाह के बाद हम ने अपने अपने घर वालों को सूचना दी तो मेरे घरवालों ने तो मुझे 50 रुपए के स्टाम्प पेपर पर घोषणा कर मुझे बेदखल कर दिया। जब कि मुस्कान के घर वालों ने दो दिनों की नाराजगी के बाद प्रस्ताव रखा कि यदि मैं मुस्लिम धर्म ग्रहण कर के निकाह कर लूँ तो वो लड़की से रिश्ता रखेंगे अन्यथा तुम तकलीफ में आ सकते हो। मुस्कान अपने परिवार को नहीं छोड़ रही थी और परेशान हो रही थी इस कारण से मैं ने मुस्लिम धर्म ग्रहण कर के उस से निकाह कर लिया। लेकिन लड़की का पुनः धर्म परिवर्तन नहीं कराया गया, क्यों कि उस के धर्म परिवर्तन और आर्य समाजी विवाह की बात काजी को बताई नहीं गई थी। हम दोनों अलग रहने लगे। तब मुस्कान ने अपनी मित्र मंडली को नहीं छोड़ा वह मेरे मना करने के बाद भी मेरे काम पर जाने के बाद मित्र लड़कों से मिलती रही। मैं ने बहुत समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी। मैं ने उस के परिवार से शिकायत की तो उन्होंने पहले लड़की को समझाया, वह फिर भी नहीं मानी। इस बीच मुस्कान ने आर्य समाज मंदिर के प्रमाण पत्र, निकाहनामा, शादी का एलबम, चालक लायसेंस, पेन कार्ड तथा अन्य बहुत से दस्तावेज मेरे यहाँ से ले जा कर अपने परिवार में रख दिए। मेरे मांगने पर मुझे घुमाने लगी। मैं ने मुस्कान के परिवार से दस्तावेज मांगे तो वे भी 5 माह तक घुमाते रहे। मैं ने उन की शिकायत काजी को की तो उस ने लड़की पक्ष को बता दिया तो उन्हों ने मेरे ही घर पर आ कर मेरे साथ बहुत बुरा सलूक किया। केवल हाथापाई की कसर रह गई। मुस्कान भी उन के साथ हो गई। मैं ने इस की शिकायत महिला थाना और क्षेत्रीय थाना को की, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस पर मैं ने 16.08.2010 को मुस्लिम रीति से लिखित तलाक दे दिया और शहर से बाहर चला गया। मुस्कान ने दिनांक 25.09.2010 को थाने में मेरे गुम हो जाने की रिपोर्ट लिखाई और 13.10.2010 को धारा 498 ए तथा धारा 125 के मुकदमे करवा दिए। मैं ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया और 6 दिन जेल में रहने के बाद मेरी जमानत हुई। अब मुस्कान मुझे फोन करती है। मेरे ई-मेल आईडी में भी सेटिंग बदल दी गई। मैं ने इस की शिकायत पुलिस में की है। मुस्कान ने महिला सहायता केंद्र में शिकायत की थी लेकिन वह निरस्त हो गई। उस ने धारा 125 में मेरा 2008-09 के आयकर रिटर्न की प्रति लगाई है जिस में मेरी आय 1,40,000 रुपए है और 6000 रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग की है। अब मैं जानना चाहता हूँ कि –
1. क्या मेरा तलाक मान्य है?
2. जब मैं ने महिला थाना में शिकायत की थी तब भी मेरे ऊपर 498ए का मुकदमा चलाना सही है क्या?
3. जब मैं परिवार से अलग रहता था तो मेरे परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी सही है क्या? क्या पुलिस इस में कुछ नहीं देखती?
4. क्या हमारा मुकदमा परिवार न्यायालय में चलने योग्य है?
5. क्या अब मैं दूसरी शादी कर सकता हूँ?
6. अब मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर –
दीपक जी,
आप ने उस कहावत को चरितार्थ कर दिया कि प्यार अंधा होता है। आप ने एक लड़की से प्यार किया उस के साथ घर बसाने का विचार किया और घर बसाने का प्रयत्न भी किया। लेकिन आप ने यह सब कुछ आँख बंद कर के किया। आप को मुस्क
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6 Comments
श्री मान मैं सुमन दुबे देल्ही से आप के उत्तर के बाद मैंने दूसरा प्रश्न किया था लेकिन अभी तक कोई उत्तर नहीं मिला है कृपया मेरे प्रश्नों का उत्तर दे ! धन्यबाद
सुमन दुबे
न्यू देल्ही
@डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
गलती को चीन्ह कर बताने के लिए धन्यवाद। गलती दुरुस्त कर दी गई है।
दीपक की गलती का श्री द्विवेदी जी द्वारा कानूनी रूप से सटीक और व्यावहारिक उत्तर प्रस्तुत किया गया है, जो ऐसी ही मुसीबतों में फंसे या फंस सकने वाले दूसरे लोगों के लिए भी सबक है! मुस्कान को दूसरा विवाह नहीं कर लेने तक भरण पोषण अदा करने की बात उन मुस्लिम बंधुओं को समझ में नहीं आ सकती जो सरियत के अलावा किसी कानून को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं| ऐसे लोगों को समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को पढ़ते रहना चाहिए|
एक विनम्र सुझाव आपकी इस सलाह में दो स्थानों पर धारा 498 ए के स्थान पर भूलवश 198 ए टंकित हो गया है| कृपया इसे एडिट कर दें तो पोस्ट से पाठक भ्रमित नहीं होंगे|
एक बहुत अच्छी सलाह, ओर प्यार मै आदमी सच मे अंधा हो जाता हे, यह बात भी आज सिद्ध हो गई
"मुस्लिम महिला तलाक के उपरांत भी जब तक दूसरा विवाह न कर ले भरण-पोषण की हकदार है।"
आपकी यह बात एक हिन्दू वकील के हिसाब से की गई दिखलाई दे रही है वकील साहब।
और आपका यहा क्लाइण्ट मुझे टोटली बिन पैंदी का लोटा नजर आ रहा है। इसको सलाह देना उलटे घड़े पर पानी डालने जैसा है। हा हा।
कई बार जिंदगी उपन्यासों से आगे निकल जाती है। दीपकजी की दुख भरी कहानी भी ऐसी ही हैं। एक अनूठे मामले से रूबरू कराने के लिए आपको शुक्रिया।