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पहली पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह वैध नहीं, दूसरी पत्नी को पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं

समस्या-

मेरे पापा चंद्रकिशोर जी को मेरे दादा के काका ने गोद रखा था।  उनका नाम भागीरथ था उन्हों ने कोई वसीयत नही करवाई थी।  उनके दो पत्नियाँ थी।  बड़ी पत्नी 15.03.2012 को संत हो गयी।  उनके नाम से कुछ ज़मीन थी जो नामांतरण में छोटी पत्नी के नाम से करवाना चाहते हैं।  होगी कि नहीं?  दूसरा प्रश्न यह है कि भागीरथ जी के बड़े भाई के लड़के ने पटवारी से साथ मिलीभगत करके नाम डलवा लिया।  हमारे प्रकरण मे चार तारीख होने के बाद सामने वाले के वकील ने जवाब दिया कि चंद्रकिशोर और रामप्यारी के नाम से उक्त भूमि कैसे आई ये तो गोद लिया हुआ है और दूसरी पत्नी है इनका कोई हक नहीं है।  मुझे यहाँ स्पष्ट करें कि दूसरी पत्नी का अधिकार नहीं होता क्या?

-महेन्द्र, कामखेड़ा -आष्टा, जिला सीहोर, मध्यप्रदेश

समाधान-

हिन्दू विवाह अधिनियम 18 मई 1955 से प्रभावी हो गया था। इस अधिनियम में उपबंधित किया गया था कि कोई वैध हिन्दू विवाह तभी संपन्न हो सकता है जब कि स्त्री-पुरुष दोनों अविवाहित हों या फिर उन की कोई जीवित पत्नी या पति न हो।  इस तरह उक्त अधिनियम से एक पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह प्रतिबंधित हो गया।  इस तरह किसी भी हिन्दू पुरुष के जीवन में दूसरी पत्नी का कोई स्थान नहीं रहा।  यदि किसी हिन्दू पुरुष ने उक्त तिथि के पूर्व ही एक पत्नी के रहते दूसरा विवाह कर लिया था तो वह वैध था और दोनों पत्नियों को समान अधिकार प्राप्त थे।  लेकिन यदि किसी हिन्दू ने उक्त तिथि के बाद पहली पत्नी के रहते दूसरा विवाह किया है तो वह अवैध है और दूसरी पत्नी को पत्नी का कोई वैध अधिकार प्राप्त नहीं है।  यदि भागीरथ जी का दूसरा विवाह 18 मई 1955 के उपरान्त हुआ है तो उन की दूसरी पत्नी को कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।  वैसे भी यदि किसी के दो वैध पत्नियाँ हों तो भी एक की संपत्ति दूसरे को नहीं मिल सकती।

दि कोई व्यक्ति संत हो जाता है या सन्यास ग्रहण कर लेता है तो भी वह उस संपत्ति का स्वामी बना रहता है जो सन्यास ग्रहण करने के पूर्व उस के नाम थी।  इस तरह यदि भागीरथ जी की बड़ी पत्नी की कोई संपत्ति मौजूद है और बड़ी पत्नी संन्यास ले कर संत हो गई है तो भी संपत्ति उसी के नाम है।  वह उस संपत्ति को स्वयं अपने पास रख सकती है या फिर किसी को विक्रय कर सकती है या फिर दान आदि कर सकती है।  इस कारण से वर्तमान में यदि उस के नाम की कृषि भूमि छोटी पत्नी के नाम हस्तांतरित करवानी है तो बड़ी पत्नी को उन के नाम दानपत्र निष्पादित करना होगा। यदि वे ऐसा नहीं करती हैं तो संपत्ति उन के नाम बनी रहेगी और उन के देहान्त के उपरान्त उन के उत्तराधिकारी जो कि केवल गोद पुत्र होने के नाते आप के पिता हैं, उन्हें प्राप्त होगी।

प का दूसरी समस्या है कि भागीरथ जी की कृषि भूमि आप के पिता चंद्रकिशोर जी तथा भागीरथ और पत्नी रामप्यारी के नाम आ गई है।  निश्चित रूप से भागीरथ जी के देहान्त के उपरान्त उन के उत्तराधिकारियों के नाम उक्त भूमि आनी चाहिए थी। आधी पहली पत्नी के नाम और आधी आप के पिता चंद्रप्रकाश जी के नाम।  यदि ऐसा हुआ है तो सब कुछ सही है।  यदि रामप्यारी पहली न हो कर दूसरी पत्नी हैं तो उन का नाम गलत चढ़ा है। दूसरी पत्नी का कोई अधिकार भागीरथ जी की संपत्ति में नहीं है। पहली पत्नी के देहान्त के उपरान्त उन के हिस्से की भूमि भागीरथ जी के गोद पुत्र आपके पिता चंद्रकिशोर जी को प्राप्त होनी है। इस मुकदमे में आप को अपने वकील की सलाह से ही सब कुछ करना चाहिए।

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