मकान के कब्जे के लिए तुरन्त दीवानी वाद संस्थित करना चाहिए।
|समस्या-
मेरी दादी द्वारा हमारे घर का हिब्बानामा हम पौत्रों के पक्ष में किया गया है। अब सवाल ये है कि जिस घर का हिब्बानामा हम लोगो को किया गया है उस घर में मेरी चाची रह रही है। वह हम लोगो के मकान में हम लोगो को जाने से मना कर रही है। साथ ही साथ हमारे हिब्बानामा को निरस्त करवाने के लिए दिवानी वाद और अस्थाई व्यादेश के लिए दिवानी न्यायालय में वाद आवेदित किया है। जबकि न्यायालय से चाची को अस्थाई व्यादेश नहीं दिया गया है। अभी हिब्बानामा को निरस्त करवाने का वाद विचाराधीन है। जबकि न्यायालय द्वारा हम प्रार्थीगण को ट्रू ओनर बताया गया और ये भी कहा गया कि जब तक न्यायालय द्वारा हिब्बानामा को अपास्त न कर दिया जाये इसके ट्रू ओनर हम प्रार्थीगण ही है। हम प्रार्थीगण क्या अपने मकान में कब्ज़ा कर सकते है। जिलाधिकारी और उप जिलाअधिकारी तथा थाना को कई बार आवेदन दिया लेकिन उन लोगों के द्वारा कोई भी हल नहीं निकाला गया। और बार बार कहा जा रहा है जब तक मामला दिवानी में है तब तक हम लोग कुछ नहीं कर सकते। कृपया उचित कानूनी सलाह दे जिससे हम अपने मकान को कब्ज़े में ले सके।
-नीरज बरनवाल, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
समाधान-
आप की दादी ने आप यानी पोत्रों के पक्ष में हिबानामा (दानपत्र) कर के आप को उक्त संपत्ति का स्वामी बना दिया है। प्रथम दृष्टया इसे सिविल न्यायालय ने स्वीकार भी कर लिया है। लेकिन उस मकान में आप की चाची रह रही है। उस पूरे मकान या उस के किसी हिस्से पर उसका कब्जा है। आपने यह नहीं बताया कि उस मकान के किसी हिस्से में आप का या आप की दादी का कब्जा है या नहीं है। कभी कभी होता है कि मकान में कोई रह रहा होता है और एक दो कमरों में मकान के ट्रू औनर का सामान रखा हो कर ताला लगा होता है। यदि ऐसा है तो फिर उस मकान के उस हिस्से पर आप का कब्जा भी रहता है। ऐसी अवस्था में आप उस मकान में घुस कर उस हिस्से में रहना तुरन्त शुरू कर सकते हैं। यदि इस में चाची बाधा डालती है तो उस मामले में आप उसी न्यायलय से उसी मुकदमे में जो आप की चाची ने किया है अस्थायी निषेधाज्ञा का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर आदेश प्राप्त कर सकते हैं कि आप को आप के कब्जे के हिस्से को उपयोग करने उस में आने जाने से न रोका जाए। फिर आप वहां उस हिस्से में जा कर निवास कर सकते हैं या उसे काम में ले सकते हैं। लेकिन यदि मकान के किसी हिस्से पर आप का कब्जा नहीं है तो फिर यह युक्ति काम नहीं करेगी।
किसी संपत्ति का स्वामी होना और उस पर कब्जा होना दो अलग अलग बातें हैं। एक व्यक्ति किसी संपत्ति का स्वामी हो सकता है लेकिन वह उस संपत्ति को किराए पर दे सकता है या फिर लायसेंस पर दे सकता है। वैसी स्थिति में उस संपत्ति पर किराएदार या लायसेंसी का कब्जा होगा। यह भी हो सकता है कि कोई किसी संपत्ति पर जबरन कब्जा कर ले, तब भी उस संपत्ति पर कब्जा अतिक्रमी का हो सकता है। किसी भी संपत्ति पर किसी व्यक्ति का कोई कब्जा है तो उस के कब्जे पुलिस या किसी अन्य एजेंसी या स्वामी द्वारा जबरन नहीं हटाया जा सकता। वैसी स्थिति में मकान के स्वामी को दीवानी न्यायालय में कब्जे के लिए वाद संस्थित करना होगा, कब्जे की डिक्री प्राप्त करनी होगी और कब्जे की डिक्री अंतिम होने पर उस के निष्पादन में आप संपत्ति पर कब्जा प्राप्त कर सकते हैं।
हिबानामा होने के पहले तक तो संपत्ति दादी की थी। आप की चाची उस संपत्ति में दादी की अनुमति से ही निवास कर रही थी। जो एक तरह का लायसेंस है। हिबानामा से संपत्ति आप के स्वामित्व में आने के बाद भी उस की हैसियत लायसेंसी की ही रहती है। आप एक नोटिस दे कर उस का लायसेंस समाप्त कर सकते हैं। जिस के बाद चाची की स्थिति उस मकान में एक अतिक्रमी की हो जाएगी। तब आप उस के विरुद्ध मकान पर कब्जे का वाद संस्थित कर सकते हैं।
चाची ने जो मुकदमा आप के विरुद्ध किया है उस में आप को कब्जा प्राप्त करने की कोई राहत प्राप्त नहीं होगी। इस लिए आप को अपने वकील से परामर्श कर के लायसेंस समाप्त करने का नोटिस देना चाहिए और नोटिस की अवधि समाप्त हो जाने पर मकान पर कब्जे का दावा कर देना चाहिए। इस में देरी नहीं करनी चाहिए वर्ना यह भी हो सकता है कि कब्जे का दावा करने का 12 वर्ष का जो समय है वह व्यतीत हो जाए और आप कब्जे का दावा करने से वंचित हो जाएँ।