वसीयत का पंजीकृत होना जरूरी नहीं, पर अपंजीकृत वसीयत के लाभ लेने के लिए उसे प्रमाणित करना होगा
समस्या-
विकास कुमार ने नागौर, राजस्थान से पूछा है-
क्या वसीयत का पंजीयन करवाना जरुरी होता है? अगर वसीयत दो गवाहों के सामने लिखी जाकर नोटरी हो तो क्या वसीयत कानूनी रूप से मान्य हो सकती है? क्या ऐसी वसीयत से हिस्सेदारों के हिस्से की जमीन का पट्टा या रजिस्ट्री बनवायी जा सकती है या नाम में बदलाव हो सकता है?
समाधान-
वसीयत किसी व्यक्ति की इच्छा को अभिव्यक्त करता है कि उसके जीवनकाल के उपरान्त अर्थात उसकी मृत्यु के उपरान्त उसकी चल-अचल सम्पत्ति अथवा उसके शरीर का क्या किया जाना चाहिए।
स्टाम्प पर लिखा होना, पंजीयन या नोटेरी सत्यापन जरूरी नहीं
वसीयत सादे कागज पर लिखी जा सकती है। उसके लिए किसी तरह की स्टाम्प ड्यूटी निर्धारित नहीं है, इसलिए उसका किसी स्टाम्प पर लिखा होना जरूरी नहीं है। उसे किसी नोटेरी से सत्यापित कराने की आवश्यकता नहीं है।
क्या जरूरी है वसीयत के लिए?
वसीयत के लिए जरूरी है कि किसी व्यक्ति ने अपने जीवनकाल (मत्यु) के बाद उसकी चल अचल सम्पत्ति तथा शरीर का क्या करना है इस बारे में अपनी इच्छा कम से कम दो गवाहों/ साक्षियों के सन्मुख प्रकट की हो। इस कारण उसे सादा कागज पर लिखा जा सकता है। यह भी जरूरी नहीं कि वसीयत गवाहों के समक्ष लिखी जाए। वह पहले से लिखी हो सकती है। यह जरूरी है कि वसीयत पर वसीयत करने वाला अपने हस्ताक्षर गवाहों के समक्ष करे और वे हस्ताक्षर उसने गवाहों के समक्ष किए हैं इस तथ्य के लिए गवाह अपने हस्ताक्षर वसीयत करने वाले के हस्ताक्षर के नीचे करे।
यदि विशेष परिस्थिति हो, जैसे वसीयत करने वाला चलने-फिरने की स्थिति में न हो, हस्ताक्षर करने की स्थिति में न हो तो वह अपने अंगूठे की छाप भी वसीयत पर लगा सकता है। वैसी स्थिति भी नहीं हो और वह मरने वाला हो तो अपनी इच्छा दो गवाहों के समक्ष मौखिक रूप से भी प्रकट कर सकता है। लेकिन मौखिक वसीयत को प्रमाणित करना बहुत कठिन होता है।
पंजीकृत, नोटेरी से प्रमाणित, सादा कागज पर लिखी और मौखिक वसीयत में क्या अन्तर है?
यदि पंजीकृत वसीयत है तो यह माना जाएगा कि वसीयत सही है और जो उस वसीयत के अन्तर्गत लाभ प्राप्त करने वाला है उसे उस वसीयत को गवाहों की गवाही करवा कर प्रमाणित करना आवश्यक नहीं है। यदि उस वसीयत के सही होने को कोई व्यक्ति चुनौती देता है तो उसे प्रमाणित करना होगा कि वह सही नहीं लिखी गई थी और यह वसीयत मृतक की इच्छा को प्रकट नहीं करती है। पंजीकृत वसीयत के सिवा किसी भी प्रकार की वसीयत में लाभार्थी को गवाहों की गवाही प्रस्तुत कर स्वयं प्रमाणित करना होगा कि वसीयत सही लिखी गयी थी और वह मृतक की अन्तिम इच्छा को प्रकट करती है। नोटेरी के यहाँ प्रमाणित वसीयत में नोटेरी के रजिस्टर में प्रविष्ठि और उस में वसीयत करने वाले व गवाहों के हस्ताक्षर वसीयत के सही होने का अतिरिक्त प्रमाण होते हैं इस कारण से लोग वसीयत को पंजीकृत कराने के स्थान पर नोटेरी से प्रमाणित करवा लेते हैं जिससे वसीयत को चुनौती मिलने पर उसे प्रमाणित किया जा सकना आसान हो।
पंजीकृत वसीयत के अतिरिक्त जितनी भी प्रकार की वसीयतें हैं उनके आधार पर वसीयत के लाभार्थी को गवाहों की गवाही करवा कर वसीयत प्रमाणित करनी होगी। अन्यथा वह उस लाभ को प्राप्त नहीं कर सकेगा। वसीयत के आधार पर सम्पत्ति का सरकारी रजिस्टर में नामान्तरण करवाने अथवा पट्टा आदि बनवाने के लिए उसे प्रमाणित करना होगा। जिन राज्यों में वसीयत को अनिवार्य रूप से प्रोबेट कराने का कानून प्रभावी है उन राज्यों में उसे जिला न्यायालय के समक्ष उसे प्रमाणित कर प्रोबेट कराना होगा। प्रोबेट कराने के बाद वसीयत की स्थिति वैसी ही होगी जैसी कि एक पंजीकृत वसीयत की होती है। इस तरह आपके समस्या का उत्तर यह है कि आपको अपंजीकृत वसीयत को उस अधिकरण के समक्ष गवाहों की गवाही से प्रमाणित करना होगा जिस अधिकरण से आप लाभ लेना चाहते हैं।
क्या पुश्तैनी अचल सम्पत्ति की वसीयत नहीं हो सकती है??केवल स्वयं अर्जित सम्पत्ति की ही वसीयत पंजीकरण हो सकती है।
पुश्तैनी सम्पत्ति एक गलत संबोधन है। जो कोई सम्पत्ति 17 जून 1956 के पूर्व किसी हिन्दू पुरुष को उसके पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो वह सम्पत्ति सहदायिक कही जाएगी। उक्त तिथि के बाद से नयी सहदायिक सम्पत्ति का अस्तित्व में आना असंभव हो चुका है। जो संपत्ति उक्त तिथि तक सहदायिक हो चुकी थी वह सहदायिक ही रहेगी। सहदायिक संपत्ति में पुरुष सन्तानों को जन्म से ही अधिकार उत्पन्न हो जाता था। वैसी अवस्था मे एक संपत्ति के अनेक हिस्सेेदार हो सकते थे। उनका यह हिस्सा किसी सहदायिक की मृत्यु और जन्म के साथ घटता बढ़ता भी रहता था। कोई भी सहदायिक सहदायिक संपत्ति में अपने हिस्से की वसीयत कर सकता है। उसे यह अधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 30 से प्राप्त है।
वेबसाईट प्रशासक का पिछला आलेख है:–.सम्पत्ति की इच्छानुसार व्यवस्था के लिए वसीयत करें