संतान की अभिरक्षा (Custody) के लिए आवेदन किस न्यायालय को प्रस्तुत करें?
|समस्या-
सीतापुर, उत्तर प्रदेश से आकाश ने पूछा है-
मेरा विवाह 2006 में हुआ, 2008 में एक पुत्री ने जन्म लिया। उस के बाद मेरी पत्नी अपने मायके चली गई। मैं विदा कराने गया तब विवाह पैदा हुआ। पत्नी ने मेरे शहर में रहने से इन्कार कर दिया। तब मैं ने धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम में पत्नी को विदा कराने का मुकदमा किया जो एक पक्षीय 17 फरवरी 2010 को निर्णीत हो गया। पत्नी ने अदालत के आदेश की पालना नहीं की। बल्कि पूरे परिवार ने मेरे घर आ कर मेरी माँ के साथ मारपीट की। जिस में धारा 323, 452 भारतीय दंड संहिता का मुकदमा बना। मैं ने धारा 9 के आदेश के निष्पादन की कार्यवाही की। अभी मेरी पुत्री मेरी पत्नी की अभिरक्षा में है। मैं उस की अभिरक्षा स्वयं लेना चाहता हूँ। इस के लिए मैं ने अपने शहर सीतापुर में पुत्री की अभिरक्षा के लिए आवेदन प्रस्तुत किया है। मेरी पत्नी लखनऊ में रहती है। क्या मेरा मुकदमा उस के शहर में स्थानान्तरित तो नहीं होगा? या मेरे शहर में मेरा मुकदमा खारिज तो नहीं होगा? मेरी पत्नी मुझे मेरी बेटी से नहीं मिलने देती है, उस के लिए मुझे क्या करना होगा?
समाधान-
आप ने धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम के दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना के आदेश का निष्पादन कराने के लिए आवेदन किया है। लेकिन किसी भी मनुष्य को उस की इच्छा के विपरीत किसी के साथ रहने को बाध्य नहीं किया जा सकता। यदि आप की पत्नी आप के साथ आ कर रहने को तैयार नहीं है तो आप को यह अधिकार है कि आप धारा 9 के आदेश / डिक्री के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री के लिए आवेदन कर सकते हैं।
किसी बालक/ बालिका की अभिरक्षा के लिए आवेदन उस न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत बालक /बालिका सामान्य रूप से निवास करती है। आप के मामले में 2008 में पुत्री के जन्म के बाद से ही वह माँ के साथ लखनऊ में निवास कर रही है वही उस का सामान्य निवास का स्थान है। इस कारण से आप को अभिरक्षा के लिए आवेदन लखनऊ के न्यायालय में प्रस्तुत करना चाहिए था। आप का आवेदन सीतापुर के न्यायालय से लखनऊ के न्यायालय में स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता। किन्तु सीतापुर का न्यायालय आप के आवेदन को लखनऊ के न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए आप को वापस कर सकता है।
बालक /बालिका की अभिरक्षा के लिए न्यायालय यह देखता है कि बालक /बालिका का हित किस की अभिरक्षा में रहने में है। इसलिए बालक/ बालिका की अभिरक्षा का प्रश्न माता या पिता के अधिकार का न हो कर बालक /बालिका के हित का है। उसी के आधार पर आप का आवेदन निर्णीत होगा। आप को आप की पत्नी आप की पुत्री से नहीं मिलने देती है। इस के लिए आप ने जिस न्यायालय में अभिरक्षा के लिए आवेदन किया है उसी न्यायालय में यह आवेदन कर सकते हैं कि बालक /बालिका को माता और पिता दोनों के साथ रहने और मिलने का अवसर दिया जाना चाहिए। न्यायालय आप के आवेदन पर इस तरह का आदेश प्रदान कर सकती है जिस से आप अपनी पुत्री से मिल सकें और कुछ समय उस के साथ बिता सकें।