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अदालती लड़ाई लड़ने की अपेक्षा आपस में मिल जुल कर मामला निपटाएँ।

LAWYER OFFICEसमस्या-

बर्दमान, प. बंगाल से राज ने पूछा है –

मैं ने 2006 में कोर्ट मेरिज की थी। मेरा 5 साल का एक बेटा है। मेरी पत्नी शादी के दो साल बाद तक मेरे साथ मेरे घर बिहार में रही। आरंभ में सब कुछ ठीक था मगर शादी के कुछ महिने बाद पत्नी जिद करने लगी कि मुझ से घर का काम नहीं होगा, मुझे यह सब काम करने की आदत नहीं है। मैं माँ के पास रहूँगी। फिर भी वह रह ती रही। दो साल बाद मैं उसे उस की माँ के पास ले कर आ गया। अब वह वापस जाने को तैयार ही नहीं है। मैं एक साल से यहीं रह कर प्राइवेट नौकरी करता हूँ और किराए के मकान में अलग रहता हूँ। मैं उस के मायके का सारा खर्च चलाता हूँ उस के माता-पिता का भी सिर्फ अपने बेटे के लिए वह उन के साथ ही रहता है। लेकिन अब मैं अपनी पत्नी से तलाक लेना चाहता हूँ। उस के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा? और तलाक के बाद मुझे उसे क्या क्या देना पड़ेगा?

समाधान-

प की स्थिति स्पष्ट नहीं है। आप जिसे कोर्ट मेरिज कह रहे हैं वह कैसे हुई है यह स्पष्ट करें। क्या विवाह रजिस्ट्रार जो आम तौर पर जिला कलेक्टर होता है उस के समक्ष एक नोटिस दिया गया था? क्या नोटिस देने के 30 दिन बाद और तीन माह समाप्त होने के पहले विवाह पंजीकृत हो गया था और मेरिज रजिस्ट्रार ने आप दोनों को विवाह का प्रमाण पत्र जारी किया था। यदि यह सब हुआ है तो आप दोनों के बीच विशेष विवाह अधिनियम में कोर्ट मैरिज हुई है। यदि केवल अदालत में आप दोनों ने एक दूसरे को शपथ पत्र दे कर तथा एग्रीमेंट कर के साथ रहने लगे हैं तो यह कोर्ट मेरिज नहीं है। अपितु केवल मात्र लिव इन रिलेशनशिप में रहने का एग्रीमेंट मात्र है। यदि ऐसा ही है तो आप दोनों का विवाह नहीं हुआ है और आप केवल लिव इन रिलेशन में हैं तथा एक दूसरे के लिए शपथ पत्र दे कर अलग हो सकते हैं।

दि आप का विवाह भी हुआ है तो आप को चाहिए कि आप अपनी पत्नी को अपने साथ आ कर रहने को कहें। यदि वह आप के साथ आ कर नहीं रहती है तो उसे स्पष्ट कहें कि इस से अच्छा तो ये है कि तलाक हो जाए। तब आप दोनों सहमति से विवाह विच्छेद की डिक्री के लिए न्यायालय में आवेदन कर दें। उसे क्या देना है यह भी आपसी सहमति से आप दोनों तय कर सकते हैं और यह भी कि बच्चा किस के पास रहेगा। यदि बच्चा माँ के साथ रहता है तो फिर बच्चे के पालन पोषण का खर्च आप को देना होगा जो आप दोनों की स्थिति और हैसियत के अनुसार आपस में तय किया जा सकता है।

मौजूदा परिस्थितियों में मुझे नहीं लगता कि आप दोनों की आर्थिक स्थितियाँ ऐसी हैं कि आप दोनों को ही तलाक को ले कर अदालती लड़ाई लड़नी चाहिए। उस में खर्च भी बहुत होगा। जब लड़ाई होती है तो दोनों पक्ष मिथ्या आरोप भी लगाते हैं, पुलिस और न्यायालय में गलत शिकायतें दर्ज कराते हैं। हमारे यहाँ की पुलिस तो इसी ताक में रहती है कि कोई फँसे और और वे उसे तंग कर के अपना मतलब हल करें। इस कारण से आप अदालत में न जाएँ तो ही अच्छा है।

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