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अपराधिक मामलों में बदलते दीवानी मामले।

समस्या-Havel handcuff

हर्ष सिकन्द ने अमृतसर, पंजाब से समस्या भेजी है कि-

मैं लुधियाना का रहने वाला हूँ। मैं एक फार्म में पार्टनर हूँ। मेरी वाइफ भी हमारी फर्म की हिस्सेदार है। हमारी फर्म जो सामान बनाती है उसको बेचने का अधिकार सिर्फ हमारे अधिकारिक डीलरों के पास ही है। हम जिसको भी अपना डीलर बनाते हैं उनके साथ लिखित इकरारनामा भी करते हैं, जिसमे हमारी सभी शर्तें तय होती हैं। हमने नवंबर 2013 में एक और फर्म जो राजस्थान की है उसके साथ पांच लाख में डील फाइनल की थी। जिसके तहत उन्होंने हमारे उत्पाद को पूरे राज्य में सेल करने का अधिकार लिया था। जिस फ़र्म के साथ हमारी डील हुई थी वो राजस्थान के हीरापुरा, अजमेर की है। जिस वक्त उन्होंने हमें पेमेंट का चेक दिया था तो उन्होंने हमारी शर्तों के पेपर एवं इकरारनामा बाद में करने की बात कह कर बात को टाल दिया था। वो फर्म के मालिक काफी बड़ी राजनीतक पार्टी के नेता भी हैं एवं और भी काफी बड़े बिजनसमैन हैं। परन्तु उस वक्त हमने भी सोचा की चलो अगर पार्टी अच्छा बिजनेस करने वाली है तो कोई बात नहीं इकरारनामा बाद में हो जाएगा। उन को हमने अपनी फर्म के जो हम स्टील के उत्पाद बनाते हैं उनके सैम्पल भी भेजे थे जो कि अब तक उनके पास ही हैं। उनकी कीमत 30000 (तीस हज़ार है) जिसके बिल और सभी कागजात हमारे पास मौजूद हैं। उसके कुछ समय बाद तक भी हमें उनकी तरफ से कोई आर्डर न मिला। वो पहले तो बात नहीं करते थे, फिर एक दिन उन्होंने फ़ोन पे बात करते हुए कहा कि हम काम नहीं करेंगे और हमारे पैसे वापिस कर दो। हमने उन्हें एक बार हमारे साथ टेबल पर बैठ कर बात करने को बोला तो उन्होंने फोन काट दिया। उसके बाद हमने एक दो बार कोशिश की कि बातचीत के जरीये इस मसले का हल निकाला जा सके। परंतु उनसे बात तक नहीं हो सकी। हालाँकि पैसे भी उन्होंने ही लेने थे। उसके बाद हमने अपने वकील के जरीये सिविल केस फ़ाइल् किया जिस में हमने अपनी शर्तों का हवाला देते हुए उनको कोर्ट में आकर मामले को हल करने को बोला। परन्तु उसके समन अभी तक उन्होंने रिसीव नहीं किये हैं। उस के कुछ ही दिनों बाद हमारे पास थाना किशनगढ़ से पुलिस अधिकारी आये और सीधे उन्होंने बताया की आपके खिलाफ़ हमारी विरोधी पार्टी ने पैसे खा जाने की शिकायत दर्ज करवाई है। आपको हमारे साथ चलना पड़ेगा। तो हमने उन्हें सारी बात सच सच बता दी और उन्हें कोर्ट में चल रहे सिविल केस की कापी भी दी। तो उन्होंने कहा की आपको चलना तो फिर भी पड़ेगा, तो इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मैं ने उन्हें बोला कि इसके अलावा कोई और रास्ता तो उन्होंने मुझे एक और रास्ता बताया की आप हमें पोस्ट डेटेड चेक दे सकते हो। तो मैने उनको दो चेक दिए जिनकी तारीख जुलाई और सितम्बर 2014 डाली थी। हमारे दिल में ऐसी कोई भी मंशा नहीं थी की हम ये चेक बाउंस करवाएंगे, परंतु उसी समय के दौर में जो स्टील का सामान हम बनाते हैं, उसकी बिक्री बहुत कम हो गई और हमारी काफी सारी रकम मार्किट में फंस गई जो अभी तक भी रुकी हुई है। दूसरा हमारे वकील साहिब ने भी बोल दिया था कि आपको घबराने की जरूरत नहीं है। इसका मामला अदालत में है, चेक की तारीख भी तीन महीने की ही होतीं है। इस वक्त उन चेक की तारीख निकले भी ६ महीने से ऊपर हो गए हैं। तो अब दो दिन पहले मेरे पास थाना गांधीनगर जिला अजमेर (राजस्थान) से पुलिस की पूरी टीम आई जिनके साथ गांधीनगर के एस एच ओ, इस के इलावा और स्टाफ उनके साथ था। उन्होंने बतया की आपके खिलाफ़ एक एफ आई आर धारा 420/306/120बी के तहत दर्ज है जिसका नम्बर भी उन्होंने मुझे दिया और इसकी जांच पड़ताल के सबंध में आपको 15 दिनों के भीतर हमारे पास पेश होना पड़ेगा और पार्टी के साथ बैठ कर उन्हें पैसे वापिस लौटा दीजिये तुरंत अन्यथा आपके वारंट जारी हो जायेंगे। वो उन्होंने मेरे सामने बैठ कर ही लिखा था। परन्तु ऑनलाइन सर्चिंग में तो मुझे उस FIR का कोई स्टेटस नहीं मिला।

11 मार्च को मैं जयपुर गया था, परन्तु वहां पर जिस ऐएसआई की डयूटी इस केस को हेंडल करने पर लगाई हुई है उस से ही मीटिंग हुई थी, मैंने उसके सामने अपना पक्ष भी रखा जो की मैंने आपको बताया हुआ है उसी तरह से। और मैने उस से कुछ वक्त माँगा क्योंकि मेरी विरोधी पार्टी भी उस दीं किसी काम की वजह से वहां पर नहीं आ सकी। परन्तु मुझे लिखित रूप में तो पुलिस ने कुछ नहीं दिया और न ही मुझसे कुछ लिखित में अभी तक लिया है। हाँ वैसे उनसे मैने 15 अप्रैल तक का समय और लिया है ताकि इस मसले के लिए कानूनी राय गम्भीरता से ली जा सके।  मेरे पास इस वकत देने के लिए पैसे नहीं हैं। उस ऐ एस आई का यही कहना है की पार्टी के साथ बिना पैसों के बात करना आपके लिए और मुश्किल बढ़ा सकता है, क्योंकि उस पार्टी का सम्बन्ध एक बहुत बड़ी राजनीतक पार्टी के करीबी मिनिस्टर से है जो इस समय राजस्थान की सरकार में है।  ये शिकायत भी आपके खिलाफ़ बनती तो नहीं थी, परन्तु ये एक राजनैतक दबाव ही समझें। आप 15 अप्रैल तक जितना हो सकता है उतने पैसों का इंतजाम करके आओ, फिर इस मसले को देखा जा सकेगा। मैने ऑनलाइन ऍफ़ आई आर स्टेटस निकाल कर देखा था, जो अभी पेंडिंग ही बता रहा है। मुझे तो उसने ये भी नहीं बताया की आपके खिलाफ़ ये सिर्फ शिकायत है या ऍफ़ आई आर दर्ज हो चुकी है। अब अगर FIR दर्ज हो गयी है तो क्या पार्टी से समझौता करने के उपरांत वो ख़तम हो सकती है क्या? एंव इसके इलावा क्या इस केस में हमें पहले ही जमानत ले लेनी चाहिए? एवं अगर जमानत पहले ही अप्लाई करें तो उसके लिए पुलिस का क्या रिएक्शन हो सकता है? अगर पहले जमानत की अर्जी दायर करें तो कितने की जमानत मांगी जा सकती है? इस केस की? क्या ये मामला अपराधिक बनता है या सिविल है? जो हमारे पास यहाँ मामला चल रहा है क्या ये मामले का कोई महत्व नहीं है?

समाधान-

मारे देश की सभी अदालतों के पास मुकदमों की भरमार है और कोई भी विवाद जो पक्षकारों के मध्य होता है एक बार अदालत में जाने के बाद इतना उलझ जाता है कि उसे समाप्त होने में बरस लग जाते हैं। इस कारण साधारण से साधारण व्यक्ति भी अपने साधारण लेन देन के मामलों को निपटाने के लिए अपराधिक मामला बना कर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश करता है। यदि ऐसे व्यक्ति के पास राजनैतिक रसूख हो तो फिर उस के लिए यह काम आसान हो जाता है। वह प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा कर कोशिश करता है कि दूसरे पक्षकार पर दबाव डाल कर बीच का रास्ता निकाल ले। एक बार दूसरा पक्षकार दबाव में आ जाता है तो उस पर यह भी दबाव डाला जाता है कि जो धनराशि उसे देनी है उस का ब्याज या क्षतिपूर्ति भी उसे मिल जाए। आप के साथ यही हो रहा है।

ब आप के विरुद्ध जो मामला बनाया है या बनाए गए हैं वे सभी एक धन के लेन देन से संबंधित दीवानी मामले से उपजे हैं। यदि पक्षकारों के बीच समझौता हो जाता है तो पुलिस इस तरह के मामलों में यह रिपोर्ट न्यायालय को प्रस्तुत कर देती है कि मामला दीवानी प्रकृति का है, अपराध होना नहीं पाया जाता है। इस तरह मामला वहीं समाप्त हो जाता है, आप का भी हो सकता है। इस के लिए आप को उतने धन की व्यवस्था करनी होगी जितने धन में सामने वाले पक्षकार से समझौता हो जाए। इस मामले में धन की व्यवस्था कर के आप को सीधे सामने वाले पक्षकार से बात कर के मामले को समाप्त कर लेना चाहिए। आप की समस्या धन न होने की है। लेकिन विवाद तो धन के बिना समाप्त नहीं हो सकता।

ब पहले पुलिस आप के पास आई थी तब तक मामला साधारण दीवानी था। लेकिन पुलिस को आप ने चैक दे कर उस मामले में खुद सबूत पैदा कर दिए हैं। इस कारण यह मामला गंभीर हो सकता है।

प की गिरफ्तारी पूर्व जमानत (अग्रिम जमानत) हो सकती है। इस के लिए आप को संबंधित सेशन्स न्यायालय के समक्ष जमानत की अर्जी देनी होगी। यदि सेशन्स न्यायालय ऐसी जमानत की सुविधा देने से इन्कार करता है तो आप उच्च न्यायालय को आवेदन कर सकते हैं। एक बार जमानत की सुविधा मिल जाने के बाद पुलिस कुछ नहीं कर सकती। वह केवल आप से अदालत में उपस्थित होने के लिए जमानत मांगेगी। उस के बाद न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत कर देगी और फिर मामला चलता रहेगा। जमानत की राशि कुछ भी हो सकती है जो जमानत का आदेश पारित करने वाले जज की संतुष्टि पर निर्भर करेगी। लेकिन उस के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है जमानत नकद नहीं देनी पड़ती है। बल्कि कोई हैसियत वाला व्यक्ति बंध पत्र दाखिल करता है कि अभियुक्त निर्धारित समय पर न्यायालय में उपस्थित न हुआ तो यह जमानत जब्त कर ली जाएगी और जमानत देने वाले व्यक्ति से जमानत की राशि की वसूली की जाएगी।

स मामले में बेहतर यही है कि आप सामने वाले पक्षकार से समझौता कर मामलों को समाप्त कराएँ। यदि चैक की राशि का भुगतान करें तो तभी करें जब तुरन्त आप को चैक वापस मिल रहा हो। तथा किसी स्टाम्प पेपर पर यह अवश्य लिखा लें कि आप दोनों पक्षकारों के बीच अब लेन देन का कोई मामला शेष नहीं रहा है।

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