अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार के धन से उस के किसी सदस्य के नाम से परिवार के सदस्यों के हितार्थ खरीदी गई संपत्ति संयुक्त परिवार की है।
समस्या-
जोधपुर से जितेन्द्र खिमानी ने पूछा है-
यदि कोई संपात्ति संयुक्त परिवार के धन से खरीदी गयी हो, ओर उसकी रजिस्ट्री संयुक्त परिवार के किसी एक सदस्य के नाम से करवाई गयी हो, तो क्या वह संपात्ति उस सदस्य की हो जाएगी? अर्थात उस में संयुक्त परिवार के शेष सदस्यों का कोई हक होगा या नही? यदि हाँ, तो वो सदस्य किस आधार पर यह कह सकता है कि वो उसकी संपत्ति है और उस में अन्य किसी भी सदस्य का कोई हक नहीं है? यदि उस संपत्ति मैं अन्य सदस्यों का भी कोई हक बनता है तो किस आधार पर? यहाँ मेरे मामले में मेरे चाचा जी के नाम से एक आवासीय संपत्ति है, इसी प्रकार उन की पत्नी के नाम से भी एक आवासीय संपत्ति है जो कि संयुक्त परिवार के धन से खरीदी गयी है। परंतु मेरे चाचा जी यह कहते हुए इन दोनों आवासीय संपत्तियों मे मेरे पिताजी को उनका भाग देने से मना कर रहे हैं कि वो दोनों उनकी निजी संपत्तियाँ हैं, क्यों कि उनकी रजिस्ट्री उन के और उनकी पत्नी के नाम से है, जब कि वो संपत्तियाँ संयुक्त परिवार के धन से खरीदी गयी है।
समाधान-
सब से पहली बात समझने की यह है कि संयुक्त परिवार की संपत्ति क्या है? पुरुष पूर्वजों से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति तथा इस संपत्ति की आय से खरीदी गई संपत्ति सहदायिक संपत्ति है। 17 जून 1956 से हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी होने के उपरान्त यह माना गया कि जो संपत्ति इस तिथि से पहले से सहदायिक संपत्ति थी वह तो सहदायिक रहेगी किन्तु यदि किसी हिन्दू पुरुष का देहान्त उक्त तिथि के बाद हुआ है और उस के उत्तराधिकारियों में कोई पुत्री भी है तो फिर वह संपत्ति सहदायिक नहीं होगी। हालांकि उपबंध अब हटा दिया गया है। फिर भी जितने वर्ष तक वह अस्तित्व में रहा उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्तियों का निर्धारण उसी के अनुरूप होगा। इस स्थिति में किसी भी संपत्ति के सहदायिक होने के संबंध में निर्णय उस संपत्ति से संबंधित समस्त विवरण व दस्तावेजों के अध्ययन के आधार पर ही किया जा सकता है। खैर, यहाँ यह विवाद नहीं है।
यदि संपत्ति आप के चाचा या चाची के नाम से खऱीदी गई है तो रजिस्ट्री उन के नाम है। और बेनामी ट्रांजेक्शन्स प्रोहिबिशन एक्ट 1988 के मुताबिक कोई भी संपत्ति जिस के नाम रजिस्ट्री है उसी की मानी जाएगी। तो आप के चाचा या चाची रजिस्ट्री उन के नाम होने के आधार पर उसे अपनी निजि संपत्ति मानते हैं, और प्रथम दृष्टया ऐसा ही माना जाएगा। अब आप के पिता जी यह कहते हैं कि वह संपत्ति संयुक्त परिवार के धन से खरीदी गयी थी इस कारण से वह संयुक्त परिवार की संपत्ति है और उस में आप के पिता को हिस्सा मिलना चाहिए।
उक्त बेनामी ट्रांजेक्शन्स प्रोहिबिशन एक्ट 1988 की धारा 4 की उपधारा (3)1 में यह कहा गया है कि यदि कोई संपत्ति किसी अविभाजित हिन्दू सहदायिक परिवार के किसी सदस्य के नाम से है और उसे सहदायिकी के सदस्यों के लाभ के लिए खरीदा गया है तो उस पर उक्त नियम लागू नहीं होगा।
इस परिस्थिति में आप के पिता जी को यह साबित करना पड़ेगा कि उक्त संपत्ति सहदायिक परिवार की संपत्ति से खरीदी गयी थी तथा सहदायिकी के सदस्यों के हितार्थ उसे खरीदा गया था। यदि आप के पिता ये तथ्य साबित कर देते हैं तो फिर आप के चाचा के नाम से रजिस्ट्री होने पर भी वह सहदायिकी की संपत्ति मानी जाएगी और सहदायिकी के सभी सदस्यों का उस पर अधिकार होगा। जब भी सहदायिक संपत्ति का विभाजन होगा सहदायिकी के सभी सदस्य सहदायिकी की कुल संपत्ति में उस संपत्ति को शामिल करते हुए अपना अपना हिस्सा प्राप्त करने के अधिकारी होंगे।