उच्च न्यायालयों की अन्य अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-80
|दीवानी और दांडिक अधिकारिता के अतिरिक्त उच्च न्यायालयों को कुछ अन्य अधिकारिताएँ भी प्रदान की गई थीं।
नौकाधिकरण की अधिकारिता- इस के अंतर्गत उच्च न्यायालयों को एडमिरल और उपएडमिरल के न्यायालयों के रूप में भारत में उत्पन्न होने वाले दीवानी, दांडिक, प्राइज, आदि नौकाधिकरण संबंधी सभी मामलों का विचारण करने का अधिकार दिया गया था।
वसीयती मामलों पर अधिकार- उच्च न्यायालयों को पूर्ववर्ती सुप्रीमकोर्ट की तरह ही वसीयती मामलों में प्रोबेट और निर्वसीयती मामलों में प्रशासन-पत्र स्वीकृत करने की शक्ति दी गई थी।
वैवाहिक मामलों में अधिकारिता- उच्च न्यायालय को ईसाई धर्मावलंबियों के संबंध में वैवाहिक अधिकारिता प्रदान की गई थी। इस पर यह बंधन लगाया गया था कि न्यायालय किसी ऐसे मामले की सुनवाई नहीं कर सकता जिस की अधिकारिता चार्टर द्वारा नहीं दी गई हो।
एकल न्यायाधीश और खंडपीठ की अधिकारिता- उच्च न्यायालयों को आरंभिक तथा अपीली अधिकारिता के कार्य करने के लिए एकल न्यायाधीश या खंडपीठ द्वारा सुनवाई के अधिकार दिए गए थे। इस तरह मामलों में एक से अधिक न्यायाधीशों की एकराय से या बहुमत की राय से निर्णय किए जाने का अधिकार उच्च न्यायालयों को प्राप्त हो गया था। खंडपीठ में समान रूप से विपरीत राय होने पर वृहत पीठ गठित की जा सकती थी।
उच्च न्यायालय की व्यवहार की विधि- उच्च न्यायालय को सिविल मामलों की प्रक्रिया के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता का अनुसरण करने का निर्देश दिया गया था। वह नौकाधिकरण, विवाह और वसीयत आदि के अन्य मामलों में प्रक्रिया के नियम स्वयं बना सकता था। आरंभिक दांडिक मामलों में अपराधिक मामलों के लिए पूर्ववर्ती सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाई जा रही प्रक्रिया को ही अपनाने का निर्देश दिया गया था अन्य दांडिक मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता 1861 का उपयोग करने का निर्देश दिया गया था।
अपील – दांडिक मामलों के अतिरिक्त अन्य 10000 रुपए से अधिक मूल्य के मामलों में उच्च न्यायालय के निर्णय की अपील प्रिवी कौंसिल के समक्ष की जा सकती थी। लेकिन इस के लिए उच्च न्यायालय से यह प्रमाण पत्र प्राप्त करना आवश्यक था कि मामला अपील के योग्य है।
राजस्व संबंधी अधिकारिता- पू्र्ववर्ती सुप्रीम कोर्ट से राजस्व संबंधी मामलों की अधिकारिता वापस ले ली गई थी। लेकिन उच्च न्यायालय स्थापित होने पर उन्हें राजस्व मामलों पर भी अधिकारिता प्रदान की गई। हालांकि राजस्व संबंधी अधिकारिता पर प्रारंभ में कुछ असमंजस और विवाद बना रहा, लेकिन बाद में यह निर्धारित किया गया कि उच्च न्यायालय राजस्व मंडल को परमादेश जारी कर सकता है।
मामलों को अंतरित करने की शक्ति- उच्च न्यायालय को किसी भी अधीनस्थ न्यायालय से अपराधिक मामले अथवा अपील को किसी भी अन्य अधीनस्थ न्यायालय में अंतरित करने की शक्ति प्रदान की गई थी। वह किसी भी मामले में अन्वेषण करने और विचारण करने का निर्देश दे सकता था।
अन्य विविध अधिकार- उच्च न्यायालय को यह शक्ति प्रदान की गई थी कि वह अपने मुख्यालय के अतिरिक्त कहीं भी अपनी बैठकें कर सकता है। उच्च न्यायालय को सरकार द्वारा विवरण मांगे जाने पर आवश्यक विवरण सरकार को देने हेतु प्रावधान किया गया था। वह अपने यहाँ लिपिक आदि कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकता था लेकिन उस के लिए सरकार का अनुमोदन आवश्यक कर दिया गया था।
विधि व्यवसाइयों का पंजीयन- उच्च न्यायालय को अधिवक्ताओं, वकीलों और अटॉर्नियों को स्वीकृत, अनुमोदित करने और
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One Comment
बहुत सुंदर जानकारियां जी.
धन्यवाद