किसी कानूनी समस्या के लिए अलग अलग समाधान क्यों?
|समस्या-
मैं जानना चाहता हूँ कि क्या बिहार का कानून अन्य राज्यों के कानून से अलग है? मैं ऐसा इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि आप जो संपत्ति विभाजन व विवाह संबंधी जानकारी देते हैं, सो उस जानकारी और यहाँ मैं पटना या सहरसा में वकील से जो जानकारी लेता हूँ वह जानकारी में अंतर होता है. कितनी जानकारी तो पूर्णतः विपरीत होता है. हाँ, अलग-अलग वकील की जानकारी में भी अंतर होता है. ऐसी स्थिति में सही जानकारी क्या है यह निर्णय कर पाना मुश्किल होता है. कृपया यह भी बताएं कि कानून से संबंधी जानकारी लेने के लिए क्या कोई सरकारी (कानूनन मान्यता प्राप्त) संस्था या ऑफिस भी है जहां से जानकारी व सालाह ली जा सके।
-महेश कुमार वर्मा, पटना, सहरसा (बिहार)
समाधान-
भारत का संविधान भारत के लिए सर्वोच्च कानून है। अन्य सभी कानून इसी से शासित होते हैं। संविधान के अनुसार भारत राज्यों का एक संघ है। निश्चित रूप से संघ होने के कारण राज्यों का केन्द्र से पृथक अपना भी कुछ अस्तित्व है। संविधान के भाग 11 में राज्य और केंद्र के संबंधों की व्यवस्था की गई है। इस भाग के प्रथम अध्याय में विधाई शक्तियों के वितरण की व्यवस्था है। इस अध्याय में अनुच्छेद 245 से 255 सम्मिलित हैं, जो निम्न प्रकार हैं-
245. संसद द्वारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्तार–(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकेगी और किसी राज्य का विधान-मंडल संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकेगा।
(2) संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि इस आधार पर अधिमान्य नहीं समझी जाएगी कि उसका राज्यक्षेत्रातीत प्रवर्तन होगा।
246. संसद द्वारा और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषय-वस्तु–(1) खंड (2) और खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद को सातवीं अनुसूची की सूची 1 में (जिसे इस संविधान में ”संघ सूची” कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।
(2) खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद को और खंड (1) के अधीन रहते हुए, किसी राज्य के विधान-मंडल को भी, सातवीं अनुसूची की सूची 3 में (जिसे इस संविधान में ”समवर्ती सूची” कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की शक्ति है।
(3) खंड (1) और खंड (2) के अधीन रहते हुए, किसी राज्य के विधान-मंडल को, सातवीं अनुसूची की सूची 2 में (जिसे इस संविधान में ”राज्य सूची” कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में उस राज्य या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।
(4) संसद को भारत के राज्यक्षेत्र के ऐसे भाग के लिए 2[जो किसी राज्य] के अंतर्गत नहीं है, किसी भी विषय के संबंध में विधि बनाने की शक्ति है, चाहे वह विषय राज्य सूची में प्रगणित विषय ही क्यों न हो।
247. कुछ अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की संसद की शक्ति– इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, संसद अपने द्वारा बनाई गई विधियों के या किसी विद्यमान विधि के, जो संघ सूची में प्रगणित विषय के संबंध में है, अधिक अच्छे प्रशासन के लिए अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का विधि द्वारा उपबंध कर सकेगी।
248. अवशिष्ट विधायी शक्तियाँ–(1) संसद को किसी ऐसे विषय के संबंध में, जो समवर्ती सूची या राज्य सूची में प्रगणित नहीं है, विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।
(2) ऐसी शक्ति के अंतर्गत ऐसे कर के अधिरोपण के लिए जो उन सूचियों में से किसी में वर्णित नहीं है, विधि बनाने की शक्ति है।
249. राज्य सूची में के विषय के संबंध में राष्ट्रीय हित में विधि बनाने की संसद की शक्ति–(1) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, यदि राज्य सभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित किया है कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक या समीचीन है कि संसद राज्य सूची में प्रगणित ऐसे विषय के संबंध में, जो उस संकल्प में विनिर्दिष्ट है, विधि बनाए तो जब तक वह संकल्प प्रवृत्त है, संसद के लिए उस विषय के संबंध में भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाना विधिपूर्ण होगा।
(2) खंड (1) के अधीन पारित संकल्प एक वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए प्रवृत्त रहेगा जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाए :
परंतु यदि और जितनी बार किसी ऐसे संकल्प को प्रवृत्त बनाए रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प खंड (1) में उपबंधित रीति से पारित हो जाता है तो और उतनी बार ऐसा संकल्प उस तारीख से, जिसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवृत्त नहीं रहता, एक वर्ष की और अवधि तक प्रवृत्त रहेगा।
(3) संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि, जिसे संसद खंड (1) के अधीन संकल्प के पारित होने के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, संकल्प के प्रवृत्त न रहने के पश्चात् छह मास की अवधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं रहेगी जिन्हें उक्त अवधि की समाप्ति से पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है।
250. यदि आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची में के विषय के संबंध में विधि बनाने की संसद की शक्ति–(1) इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, संसद को, जब तक आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, राज्य सूची में प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने की शक्ति होगी।
(2) संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि, जिसे संसद आपात की उद्घोषणा के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होती, उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात् छह मास की अवधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय प्रभावी नहीं रहेगी जिन्हें उक्त अवधि की समाप्ति से पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है।
251. संसद द्वारा अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 के अधीन बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति–अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 की कोई बात किसी राज्य के विधान-मंडल की ऐसी विधि बनाने की शक्ति को, जिसे इस संविधान के अधीन बनाने की शक्ति उसको है, निर्बंधित नहीं करेगी किंतु यदि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि का कोई उपबंध संसद द्वारा बनाई गई विधि के, जिसे उक्त अनुच्छेदों में से किसी अनुच्छेद के अधीन बनाने की शक्ति संसद को है, किसी उपबंध के विरुद्ध है तो संसद द्वारा बनाई गई विधि अभिभावी होगी चाहे वह राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि से पहले या उसके बाद में पारित की गई हो और राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि उस विरोध की मात्रा तक अप्रवर्तनीय होगी किंतु ऐसा तभी तक होगा जब तक संसद द्वारा बनाई गई विधि प्रभावी रहती है।
252. दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति और ऐसी विधि का किसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार किया जाना–(1) यदि किन्हीं दो या अधिक राज्यों के विधान-मंडलों को यह वांछनीय प्रतीत होता है कि उन विषयों में से, जिनके संबंध में संसद को अनुच्छेद 249 और अनुच्छेद 250 में यथा उपबंधित के सिवाय राज्यों के लिए विधि बनाने की शक्ति नहीं है, किसी विषय का विनियमन ऐसे राज्यों में संसद विधि द्वारा करे और यदि उन राज्यों के विधान-मंडलों के सभी सदन उस आशय के संकल्प पारित करते हैं तो उस विषय का तदनुसार विनियमन करने के लिए कोई अधिनियम पारित करना संसद के लिए विधिपूर्ण होगा और इस प्रकार पारित अधिनियम ऐसे राज्यों को लागू होगा और ऐसे अन्य राज्य को लागू होगा, जो तत्पश्चात् अपने विधान-मंडल के सदन द्वारा या जहाँ दो सदन हैं वहाँ दोनों सदनों में से प्रत्येक सदन इस निमित्त पारित संकल्प द्वारा उसको अंगीकार कर लेता है।
(2) संसद द्वारा इस प्रकार पारित किसी अधिनियम का संशोधन या निरसन इसी रीति से पारित या अंगीकृत संसद के अधिनियम द्वारा किया जा सकेगा, किंतु उसका उस राज्य के संबंध में संशोधन या निरसन जिसको वह लागू होता है, उस राज्य के विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा नहीं किया जाएगा।
253. अंतरराष्ट्रीय करारों को प्रभावी करने के लिए विधान– इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद को किसी अन्य देश या देशों के साथ की गई किसी संधि, करार या अभिसमय अथवा किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, संगम या अन्य निकाय में किए गए किसी विनिश्चय के कार्यान्वयन के लिए भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए कोई विधि बनाने की शक्ति है।
254. संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति– (1) यदि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि का कोई उपबंध संसद द्वारा बनाई गई विधि के, जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद सक्षम है, किसी उपबंध के या समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के संबंध में विद्यमान विधि के किसी उपबंध के विरुद्ध है तो खंड (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, यथास्थिति, संसद द्वारा बनाई गई विधि, चाहे वह ऐसे राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि से पहले या उसके बाद में पारित की गई हो, या विद्यमान विधि, अभिभावी होगी और उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि उस विरोध की मात्रा तक शून्य होगी।
(2) जहाँ राज्य के विधान-मंडल द्वारा समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के संबंध में बनाई गई विधि में कोई ऐसा उपबंध अंतर्विष्ट है जो संसद द्वारा पहले बनाई गई विधि के या उस विषय के संबंध में किसी विद्यमान विधि के उपबंधों के विरुद्ध है तो यदि ऐसे राज्य के विधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई विधि को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखा गया है और उस पर उसकी अनुमति मिल गई है तो वह विधि उस राज्य में अभिभावी होगी :
परंतु इस खंड की कोई बात संसद को उसी विषय के संबंध में कोई विधि, जिसके अंतर्गत ऐसी विधि है, जो राज्य के विधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई विधि का परिवर्धन, संशोधन, परिवर्तन या निरसन करती है, किसी भी समय अधिनियमित करने से निवारित नहीं करेगी।
255. सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय मानना–यदि संसद के या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी अधिनियम को–
(क) जहाँ राज्यपाल की सिफारिश अपेक्षित थी वहाँ राज्यपाल या राष्ट्रपति ने,
(ख) जहाँ राजप्रमुख की सिफारिश अपेक्षित थी वहाँ राजप्रमुख या राष्ट्रपति ने,
(ग) जहाँ राष्ट्रपति की सिफारिश या पूर्व मंजूरी अपेक्षित थी वहाँ राष्ट्रपति ने,
अनुमति दे दी है तो ऐसा अधिनियम और ऐसे अधिनियम का कोई उपबंध केवल इस कारण अधिमान्य नहीं होगा कि इस संविधान द्वारा अपेक्षित कोई सिफारिश नहीं की गई थी या पूर्व मंजूरी नहीं दी गई थी।
संविधान के भाग 11 के प्रथम अध्याय को पढ़ने पर यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि कुछ विषय हैं जिन पर केंद्र (संसद) ही कानून बना सकती है। जब कि कुछ विषय ऐसे हैं जिन पर राज्य की विधानसभाएँ कानून बना सकती हैं। कुछ विषय ऐसे हैं जिन पर दोनों ही कानून बना सकते हैं। इस तरह यदि किसी विषय पर कानून पूरे देश के लिए बनाया जाता है तो वह पूरे देश के लिए समान होगा। यदि कानून केवल किसी एक या कुछ राज्यों में प्रवर्तन के लिए बनाया जाता है तो वह केवल उस या उन्ही राज्यों में प्रवर्तित होगा। यदि कानून किसी राज्य की विधान सभा द्वारा निर्मित किया जाता है तो वह केवल उसी राज्य में प्रवर्तित होगा। दूसरे राज्य द्वारा उसी विषय पर बनाए गए कानून में पर्याप्त विभिन्नता होगी।
अब आप समझ सकते हैं कि किसी एक ही विषय पर दो राज्यों में कानून विभिन्न हो सकते हैं। इस कारण से अलग अलग राज्यों के लिए मांगी गई कानूनी राय में विभिन्नता हो सकती है। जैसे नगरीय किरायेदारी कानून विभिन्न राज्यों में भिन्न भिन्न हैं। कृषि भूमि के उत्तराधिकार संबंधी कानून भी भिन्न भिन्न हैं। इस कारण किसी विषय पर दी गई कानूनी राय के संबंध में समानता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह किस विषय पर दी गई है। यह देखना होगा कि वह विषय राज्य सूची का है अथवा केंद्र सूची का है अथवा समवर्ती सूची का है? लेकिन किसी केंद्रीय सूची के विषय के कानून के संबंध में दी गई राय एक ही होनी चाहिए क्यों कि उस विषय पर पूरे देश में एक ही कानून है।
कानूनी राय में विभिन्नता इस आधार पर भी हो सकती है कि किसी समस्या के समाधान के लिए आप को उपाय बताया जाता है। यह उपाय इस बात पर निर्भर करता है कि समस्या जिस व्यक्ति के साथ है उस की स्वयं की परिस्थितियाँ क्या हैं और राय देने वाला व्यक्ति उस के संबंध में क्या सोचता है? किसी एक गंतव्य पर पहुँचने के अनेक मार्ग हो सकते हैं। मसलन अदालत से मेरे निवास-कार्यालय तक पहुँचने के चार मार्ग हैं। चार व्यक्तियों से पूछने पर वे सभी अलग अलग मार्ग बता सकते हैं। यदि चार व्यक्तियों से अधिक व्यक्तियों से पूछें तो वे भी उन चार मार्गों में से किसी एक को ही बताएंगे क्यों कि पाँचवा मार्ग है ही नहीं। इस कारण से पटना में ही एक समस्या के बारे में दो वकील अलग अलग तरह का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं और उनमें विभिन्नता बनी रहेगी।
जहाँ तक कानूनी राय प्राप्त करने के लिए किसी सरकारी कार्यालय का प्रश्न है तो ऐसा कोई सरकारी या मान्यता प्राप्त कार्यालय नहीं है जहाँ से कानूनी राय प्राप्त की जा सके। उस के लिए आप को वकीलों और अन्य कानूनी जानकारों पर ही निर्भर करना होगा।