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कृषि भूमि के उत्तराधिकार में विवाहित पुत्रियों का हिस्सा ।

समस्या-

दिल्ली से राकेश ने पूछा है-

मेरी दो बहनें हैं, दोनों विवाहित हैं। मेरे पिता जी ने कोई वसीयत नहीं की है। हमारे पिता जी के देहावसान के उपरान्त क्या वे पिता जी की पैतृक भूमि में से हिस्सा लेने का उन्हें कानूनी अधिकार है?

समाधान-

Hindu succession actप का प्रश्न अधूरा है। आप ने यह नहीं बताया है कि आप के पिता जी की भूमि किस किस्म अर्थात कृषि भूमि है या आबादी भूमि है? आप ने यह भी नहीं बताया है कि आप उसे पैतृक कैसे मानते हैं? यह भी नहीं बताया है कि यह भूमि किस राज्य में स्थित है? इन तथ्यों की जानकारी के बिना यह पता लगाया जाना कठिन है कि उक्त भूमि के उत्तराधिकार की स्थिति क्या होगी?

कोई भी भूमि या तो कृषि भूमि हो सकती है या फिर आबादी भूमि हो सकती है।  भारत में कृषि भूमि पर तो सदैव ही राज्य का स्वामित्व होता है किसान केवल उस का खातेदार कृषक होता है जिस की हैसियत एक किराएदार जैसी होती है। लगान के रूप में वह किराया अदा करता है। कृषि भूमि के संबंध में राज्य सरकारों को कानून निर्माण का अधिकार है तथा यह आवश्यक नहीं कि उन पर हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी हो। अनेक राज्यों में कृषि भूमि पर हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी है किन्तु उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड जैसे राज्यों में वह जमींदारी विनाश अधिनियम के उपबंधों से प्रभावी होता है जिस में उत्तराधिकार की पृथक व्यवस्था की गई है। जहाँ कृषि भूमि के उत्तराधिकार में विवाहित पुत्रियों को पुत्र के समान अधिकार प्राप्त नहीं है। इस के लिए आप को किसी स्थानीय वकील से जो कि राजस्व मामलों को देखता हो सलाह प्राप्त करनी चाहिए।

राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में जहाँ कृषि भूमि पर भी उत्तराधिकार की व्यक्तिगत विधि प्रभावी है। वहाँ आबादी भूमि और कृषि भूमि के संबंध में समान विधि प्रभावी है।  यदि आप की भूमि जिस राज्य में स्थित है वहाँ कृषि भूमि पर भी व्यक्तिगत विधि प्रभावी है तो आप के पिता जी की भूमि पर हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी होगा। यह अधिनियम 15 जून 1956 से प्रभावी हुआ है। इस अधिनियम के प्रभावी होने के पूर्व तक जो भी संपत्ति किसी पुरुष को अपने चार पीढ़ी पूर्व तक के किसी पुरुष उत्तराधिकारी अर्थात पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त होती थी उस में उस के चार पीढ़ी बाद तक के पुरुष उत्तराधिकारियों अर्थात पुत्र, पौत्र व प्रपौत्र को जन्म से ही अधिकार प्राप्त होता था। जिस के कारण वह पैतृक संपत्ति कहलाती थी। यदि आप के पिता को उक्त भूमि उक्त तिथि के उपरान्त प्राप्त हुई है तो उसे पारंपरिक अर्थ में पैतृक तो कहा जा सकता है लेकिन उस में उन के पुरुष उत्तराधिकारियों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। उस भूमि पर आप के पिता जी के जीवनकाल में उन का एकल अधिकार उसी तरह है जैसे वह उन की स्वअर्जित भूमि हो जिसे वे विक्रय, दान आदि के माध्यम से हस्तांतरित कर सकते हैं या वसीयत कर सकते हैं।

दि आप के पिता उक्त भूमि की वसीयत नहीं करते हैं तो उक्त भूमि आपके पिता जी के जीवनकाल के उपरान्त उन के प्रथम श्रेणी के जीवित उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी। जिस में आप की दादी, आप की माताजी और आप की बहनों और भाइयों का समान अधिकार होगा। इस तरह आप की दोनों विवाहित बहनें भी आप के पिता जी की उत्तराधिकारी हैं और उन्हें भी उक्त भूमि में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार आप के समान ही होगा। यदि आप के पिता जी की कृषि भूमि उत्तर प्रदेश या उत्तराखंड में स्थित है तो आप उस के उत्तराधिकार के बारे में इस साइट पर अन्यत्र खोज कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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