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चैक अनादरण का मुकदमा क्या है? और इस में कितनी सजा हो सकती है?

cheque dishonour1समस्या-
ठीकरी, इंदौर, मध्यप्रदेश से आनन्द सिंह तोमर ने पूछा है-

धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम के मुकदमे में क्या होता है? यदि कोर्ट फैसला सुना दे तो कितना जुर्माना और अधिक से अधिक कितनी सजा हो सकती है? यदि सम्पति नाम पर हो और रुपए नहीं दें तब क्या होगा?

समाधान –

ज जिस रूप में यह कानून मौजूद है उस का स्वरूप इस प्रकार है ….

क व्यक्ति के पास किसी अन्य व्यक्ति के खाते का चैक है, जो किसी ऋण के पुनर्भुगतान या किसी अन्य दायित्व के निर्वाह के लिए दिया गया था।  जिस का भुगतान उसे प्राप्त करना है तो वह उस चैक को उस पर अंकित तिथि से वैधता की अवधि समाप्त होने तक अपने बैंक में प्रस्तुत कर उस चैक का धन चैक जारीकर्ता के खाते से प्राप्त कर सकता है।   वैधता की अवधि सामान्य तौर पर चैक पर अंकित जारी करने की तिथि के तीन माह के भीतर और विशेष रूप से चैक पर अंकित इस से कम अवधि तक के लिए वैध होता है।  किसी भी कारण से यह चैक अनादरित (बाउंस) हो कर वापस आ सकता है।    वैधता की अवधि के दौरान इस वापस आए चैक को कितनी ही बार भुगतान हेतु बैंक में प्रस्तुत किया जा सकता है।

दि इस चैक का भुगतान किसी भी तरीके से नहीं होता है और चैक अनादरित ही रह जाता है तो अंतिम बार उस के बैंक से अनादरण की सूचना प्राप्त होने से 30 दिनों की अवधि में चैक धारक लिखित सूचना (नोटिस) के माध्यम से चैक जारीकर्ता से चैक की राशि पन्द्रह दिनों में भुगतान करने की मांग करे और यह नोटिस प्राप्त होने के पन्द्रह दिनों में भी उस चैक की राशि चैक धारक को चैक जारीकर्ता भुगतान करने में असफल रहे तो चैक का यह अनादरण एक अपराध हो जाता है।  चैक धारक नोटिस की पन्द्रह दिनों की अवधि समाप्त होने के तीस दिनों के भीतर अदालत में अपराध की शिकायत दर्ज करा सकता है।

स शिकायत पर अदालत प्रसंज्ञान ले कर अभियुक्त (चैक जारी कर्ता) के विरुद्ध समन जारी करेगी और अभियुक्त के न्यायालय में उपस्थित हो जाने पर मामले की सुनवाई करेगी।  अभियोजन की साक्ष्य के उपरांत अभियुक्त को सफाई में साक्ष्य का अवसर देगी और सुनवाई के उपरांत अभियुक्त को दोषी पाए जाने पर न्यायालय उसे दो वर्ष तक के कारावास और चैक की राशि से दो गुना राशि तक के जुर्माने की सजा से दंडित कर सकता है। जुर्माना अदा न होने पर अभियुक्त को अधिकतम छह माह तक की अवधि का अतिरिक्त कारावास भुगतना पड़ सकता है।

ह मामला पूरी तरह से दस्तावेजों पर आधारित है।  चैक, उसे बैंक में प्रस्तुत करने की रसीद, उस के अनादरित होने की सूचना, चैक जारी कर्ता को उस के पते पर भेजा गया नोटिस सभी दस्तावेज हैं और अकेले शिकायतकर्ता के बयान से प्रमाणित किए जा सकते हैं।  यदि कोई गंभीर त्रुटि न हो जाए तो शिकायत का सीधा अर्थ चैक जारीकर्ता को  सजा होना है।

धारा 138  के सभी मामलों में एक ही बात है जो चैक जारीकर्ता के पक्ष में जा सकती थी, वह यह कि चैक किसी ऋण के भुगतान या किसी अन्य दायित्व के निर्वाह के लिए नहीं दिया गया हो।  आम तौर पर नियम यह है कि जो किसी कथन को प्रस्तुत करेगा वही उसे प्रमाणित करेगा।  सामान्य कानून के अनुसार इस तथ्य को कि चैक किसी ऋण के भुगतान या किसी अन्य दायित्व के निर्वाह के लिए दिया गया था,  प्रमाणित करने का दायित्व शिकायतकर्ता पर होना चाहिए था।  लेकिन धारा 139 में यह उपबंधित किया गया है कि जब तक अभियुक्त विपरीत रूप से प्रमाणित नहीं कर दे कि चैक को किसी दायित्व के निर्वाह या ऋण के भुगतान हेतु जारी किया हुआ ही माना जाएगा।  धारा 139 ने ही इस कानून को मारक बना दिया है और चैक जारी कर्ता के लिए कोई सफाई नहीं छोड़ी है।

प के मामले में भी आप के व परिवादी के बीच कोई समझौता न हो पाने और समझौते के आधार पर मुकदमे का निर्णय न हो पाने पर आप को अधिकतम दो वर्ष तक के कारावास और चैक की राशि से दो गुना राशि तक के जुर्माने की सजा से दंडित किया जा सकता है। जुर्माना अदा न होने पर अभियुक्त को अधिकतम छह माह तक की अवधि का अतिरिक्त कारावास भुगतना पड़ सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता में यह भी उपबंध है कि जुर्माने की राशि अभियुक्त की संपत्ति की कुर्की कर के उस से वसूल की जा सकती है। इस तरह यदि आप के नाम पर कोई संपत्ति है तो उसे कुर्क कर के उस से भी जुर्माने की राशि वसूल की जा सकती है।

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