जब विवाह चल सकने लायक न रहे तो सहमति से तलाक ही उचित और आसान उपाय है।
जगन्नाथ राव ने इन्दौर, मध्यप्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरी पुत्री का विवाह 30 जनवरी 2015 को हुआ। लड़के के माता-पिता अभद्र भाषा और लड़ाई झगड़े द्वारा लड़की को परेशान करते थे। किसी पड़ौसी से बात नहीं करने देते थे। यहाँ तक कि मोबाईल पर की जा रही वार्ता भी छुप छुप कर सुनते थे। शादी अच्छे ढंग से धूम धाम से की गयी थी फिर भी वो बिटिया को सुनाते रहते थे। कई बार सामान की मांग की गयी जो हमने पूरी की। पुत्री कई बार घर आकर रो रोकर उनकी ज़्यादतियों के बारे में बताती थी, पर हम उसे समझाते कि नया घर है, धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा और वो वापस चली जाती। फिर उन्होंने मेरी पुत्री से उसकी सैलरी की मांग की। जिसके लिए हमीं ने अपनी बेटी को कहा की ना दे क्योंकि उन की मांगें कम नहीं हो रही थीं। एक दिन सुबह सुबह बेटी घर आई तो उस का रो रोकर बुरा हाल था। पत्नी से पता चला कि वो ससुराल में एक माह से सो नहीं पा रही थी और उसका डिप्रेशन का इलाज चल रहा था। हम तुरंत उसे डॉक्टर के पास लेकर गए जहां जांच के बाद डॉक्टर ने हमें साफ़ कहा कि उसे ससुराल ना भेजें। कुछ समय अपने पास रखें। तब से यानि अप्रैल के अंतिम सप्ताह से पुत्री मेरे घर है। २-३ दिन बाद मेरी पत्नी और पुत्री उसके कुछ रोज़मर्रा के कपडे लेने उसके ससुराल गए जहां उसके सास ससुर का असली विकराल रूप दिखा जिस के बारे में अपनी पत्नी से सुनकर मुझे लगा कि मेरी बच्ची अक्सर शिकायत करती थी, पर हम ही समझ नहीं पाये। अकेले में वो उस का क्या हाल करते होंगे! कुछ सप्ताह में वो डिप्रेशन से बाहर आई। वापस ऑफिस जाने लगी। तब मेरी पत्नी से उस की बात हुई की शादी के 3 माह तक भी मेरी पुत्री और दामाद में पति पत्नी के सम्बन्ध नहीं बने जिसका कारण शायद लड़के में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या है पर इसका प्रुफ कैसे दिया जाये। उस की माँ और पिताजी को जब बताया तो माँ बिफर गयी और बोली, मेरे बेटे में कोई कमी नहीं है। जब कि हम ने कमी की बात की ही नहीं सिर्फ बताया था की क्या समस्या है। हमने लड़के वालों से बात की तो वो झगडे पर उतर आये। लड़का बोला कि मुझ पर कोई इलज़ाम लगाए बिना म्यूच्यूअल डाइवोर्स ले लो तो ठीक है, दे दूंगा। हमने राजीनामा किया जिसमें केवल लड़की के पीहर के गहने, कपडे और ससुराल पक्ष को दिए गहने वापस मिले। उसका स्त्री धन भी नहीं लिया। लड़की ने पारिवारिक न्यायालय में धारा 13 (B) व 14 के अंतर्गत जॉइंट एप्लीकेशन लगा दी। अभी तो न्यायाधीश के साथ पहली मीटिंग भी डेढ़ माह बाद की तारीख पर है। प्रार्थनापत्र स्वीकार हो गया है। सवाल ये है कि कम से कम कितने समय में तलाक संभव है? और क्या हम विधि रूप से सही दिशा में हैं?
समाधान–
आप बिलकुल सही राह पर हैं। पुरुष की यौन संबंध बना सकने की अक्षमता को इरेक्टाइल डिसफंक्शन कहा जाता है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसे साबित करना बहुत कठिन है। केवल चिकित्सकीय परीक्षणों से यह साबित करना लगभग दुष्कर है कि किसी पुरुष को इरेक्टाइल डिसफंक्शन है। यह शारीरिक और मानसिक कमी दोनों के कारण हो सकता है और कभी दोनों का सम्मिलित परिणाम भी हो सकता है। पुरुष कभी भी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं होता है कि वह इस रोग से पीड़ित है। अनेक बार यह रोग छोटी उम्र में या विवाह पूर्व हुई किसी दुर्घटना का परिणाम हो सकता है। चूंकि छोटी उम्र में इरेक्टाइल डिसफंक्शन स्वभावतः होता है इस कारण उस पर ध्यान नहीं जाता है। चिकित्सकीय परीक्षण में यह साबित हो जाता है कि इरेक्शन स्वाभाविक रूप से हो रहा है तथा शुक्राणु की संख्या भी पर्याप्त मात्रा में है। इस के आगे चिकित्सकीय परीक्षण का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। लेकिन वस्तुतः यह इरेक्शन यौन संबंध बनाने के लिए पर्याप्त नहीं होता है, जिस के कारण पुरुष विवाह का उपभोग नहीं हो पाता है।
वैसी स्थिति में यदि दोनों पक्ष तैयार हैं तो किसी भी पक्ष की किसी प्रकार कि कमजोरी को उजागर किए बिना हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 (बी) के अन्तर्गत सहमति से विवाह विच्छेद होना सब से बेहतर उपाय है। यह 6-8 माह में हो जाता है। आवेदन प्रस्तुत करने और न्यायालय में पंजीबद्ध हो जाने के उपरान्त छह माह का समय देना जरूरी है। यदि छह माह के उपरान्त भी दोनों यह बयान करते हैं कि वे स्वेच्छा से विवाह विच्छेद चाहते हैं तो न्यायालय दोनों के विवाह को विघटित करते हुए विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कर देता है।
यहाँ धारा 14 के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि विवाह संपन्न होने के एक वर्ष की अवधि में विवाह विच्छेद के लिए आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। लेकिन न्यायालय प्रार्थी को असाधारण कठिनाई होने अथवा असाधारण दुराचरण होने की विशिष्ट परिस्थितियों में इस अवधि के पूर्व भी विवाह विच्छेद के आवेदन को सुनवाई के लिए स्वीकार कर सकता है। आप के मामले में आवेदन स्वीकार कर लिया गया है यह अच्छी बात है। लेकिन यदि सुनवाई के समय न्यायालय यह महसूस करता है कि वैसी स्थिति नहीं थी और विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करता है तो वह यह शर्त लगा सकता है कि विवाह को एक वर्ष पूर्ण होने के पूर्व यह डिक्री प्रभावी नहीं होगी।
जहाँ समय लगने की बात है तो यह मान कर चलें कि आवेदन स्वीकार होने के छह माह के बाद ही उक्त डिक्री पारित की जा सकती है। हम वकील मानते हैं कि इस तरह के मामले में 8 से 10 माह की अवधि में विवाह विच्छेद की डिक्री पारित हो सकती है।
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- स्त्री से उसका स्त्री-धन वापस प्राप्त करने का विचार त्याग दें।
- तलाक का आधार हो तो दूसरे पक्ष की सहमति की जरूरत नहीं।
- आपसी समझ बना कर वैवाहिक समस्या का समाधान तलाशने का प्रयत्न करें।
- सहमति से तलाक में शर्तें आपस में तय की जा सकती हैं।
- बिना न्यायालय की डिक्री के हिन्दू विवाह विच्छेद संभव नहीं है।
- परस्पर विश्वास नहीं तो विवाह विच्छेद ही सर्वोत्तम हल है।
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आज हमारा समाज हर मामले मे आधुनिक हो रहा है।शादी ब्याह के मामले मे हर चीज देखी जाति है कुंडली मिलाई जाती है घर परिवार देखा जाता है हर वो चीज जानी समझी जाती है जो बाहर से पता चल सके लेकिन किसी ने भी कभी चिकित्सकीय जांच नही करवाते जिसके कारण कभी लडकी मां नही बन पाती या कोई दुसरी समस्या हो तो उसे दोषी मानते उसे तंग करते है इसी प्रकार लडको मे भी कई समस्या होती है जो सीधे शादी के बाद पता चलती और फिर बारी आती है एक दूसरे पर दोषारोपण करने की और शादीशुदा जिंदगी तबाह हो जाती है।।।।एक निवेदन है मेरा शादी से पहले मेडिकल चेकिंग जरुर करा ले और दो जीवन को नाश होने से बचा लें। धन्यवाद।