ट्रस्ट संपत्ति को व्यक्तिगत संपत्ति में बदलने का अपराध …
रविशंकर तिवारी ने आरा, बिहार से बिहार राज्य की समस्या भेजी है कि-
एक व्यक्ति ने अपने जीवन काल में अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद अपनी सम्पति को ट्रस्ट के नाम कर अपने ही परिवार के एक व्यक्ति को उसका प्रबंधक नियुक्त कर दिया। ट्रस्ट श्री राम जी लखन जी जानकी जी और महावीर जी के नाम से रजिस्टर्ड डीड सम्पादित किया गया।
ट्रस्ट लिखने वाले ने वह सम्पति अपनी पत्नी की नाम से खरीदी थी। पत्नी की मृत्यु के उपरांत ट्रस्ट लिखने वाले व्यक्ति की अपनी कोई सन्तान नहीं थी। प्रबंधक ने लगभग पचीस (25) वर्षो बाद उक्त सम्पति को लोक अदालत में ट्रस्ट की डीड को छुपा कर अपनी पत्नी और पुत्रों के साथ उक्त सम्पति का बँटवारा कर लिया और बँटवारा के कागज के अनुसार अपना दाखिल ख़ारिज करा लिया। क्या उस लोक आदालत की डिग्री को खत्म करवा जा सकता है ट्रस्ट डीड 1983 में लिखा गया था 2010 में लोक अदालत में बँटवारा किया गया। क्या प्रबंधक पर क्रिमिनल केस चलाया जा सकता है?
समाधान-
ट्रस्ट स्थापित करने वाले व्यक्ति ने संबंधित संपत्ति पत्नी के नाम से खुद खरीदी थी। यदि पत्नी की मृत्यु इस व्यक्ति की मृत्यु के पहले ही हो चुकी थी तो पत्नी की मृत्यु के उपरान्त वह संपत्ति उत्तराधिकार में उसी को प्राप्त हो गई। इस तरह वह व्यक्ति उस संपत्ति का पूर्ण स्वामी हुआ। वह ट्रस्ट स्थापित करने के लिए पूरी तरह सक्षम था। इस ट्रस्ट संपत्ति को पुनः व्यक्तिगत संपत्ति में परिवर्तित नहीं किया जा सकता था। प्रबंधक ने ट्रस्ट डीड को छुपा कर तथा अपने ही परिवार के किसी व्यक्ति से मिथ्या बँटवारा वाद संस्थित करवा कर न्यायालय में लोकअदालत के दौरान इस तरह का निर्णय कराया होगा। यह निर्णय गलत है और इसे बदला जा सकता है। कोई भी ट्रस्ट के लाभों से हितबद्ध व्यक्ति लोक अदालत की इस डिक्री को अपास्त कराने के लिए दीवानी वाद संस्थित कर सकता है।
न्यायालय से संपत्ति की सही स्थिति छुपा कर जो दावा किया गया और बँटवारा कराया गया है वह धारा 207 व 406 आईपीसी में अपराध हो सकता है। सारे दस्तावेजों आदि का अध्ययन करने के बाद यह स्पष्ट हो सकता है। बँटवारे के वाद के उन सारे पक्षकारों के विरुद्ध जो कि इस लोक अदालत के निर्णय से सहमत थे तथा जिन्हो ने उस पर हस्ताक्षर किए उक्त अपराधिक प्रकरण चलाया जा सकता है।