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दस्तावेज समय से प्रस्तुत होने से वर्षों बाद पंजीयन होना गलत नहीं है।

समस्या-

सन्तपाल वर्मा ने खरगापुर, गोमती नगर विस्तार, लखनऊ पूछा है –

हमारे पिता जी द्वारा सन् 1994 में किसी व्यक्ति को पॉवर ऑफ अटॉर्नी देकर मुख्तार बनाया गया।  मुख्तार ने बिना कुछ दिए सन् 1995 में किसी तीसरे व्यक्ति के नाम विक्रय विलेख निष्पादित कर दिया।  परन्तु विक्रय विलेख बिना स्टाम्प पेपर के निष्पादित किया गया, इसलिए उस विलेख को रजिस्ट्रार द्वारा जब्त कर लिया गया और विलेख का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ।  जब किसी प्रकार से विलेख के निष्पादन का पता चला तो पॉवर ऑफ अटॉर्नी को सन् 1998 में निरस्त करवा दिया गया। लेकिन उस तीसरे व्यक्ति ने उसी अपंजीकृत विक्रय विलेख के आधार पर तहसीलदार को गुमराह करते हुए उसने भूमि का नामांतरण अपने नाम करवा लिया।  रिकॉल application डाला गया।  उसके बाद उसने स्टाम्प जमा करने का आदेश 2004 में प्राप्त करके 2017 में स्टाम्प जमा किया और 2018 में विक्रय विलेख का रजिस्ट्रेशन कर दिया गया।  क्या यह सम्पत्ति ट्रांसफर अब लीगल हो गया है? और क्या यह रजिस्ट्रेशन (registration act ) सेक्शन 23 के विधि विरुद्ध नहीं माना जाएगा?

समाधान-

संपत्ति का हस्तान्तरण तो आरम्भ से ही सही था। क्यों कि मुख्तार ने उसे आपके पिता की ओर से निष्पादित किया था।  आपके पिता को यह शिकायत थी कि विक्रय से प्राप्त धन उन्हें नहीं दिया गया। तो उसे प्राप्त करने के लिए वाद संस्थित करने की अवधि 3 वर्ष की थी। वह अवधि तो कब की समाप्त हो चुकी है। 

विक्रय विलेख को निष्पादित कर निश्चित अवधि में उसे पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया। लेकिन पर्याप्त स्टाम्प के अभाव में उसे इम्पाउण्ड कर लिया गया। पंजीकरण कराने वालों को नोटिस दिया गया होगा और इम्पाउंडिंग के विरुद्ध कार्यवाही चलती रही। अन्त में उसमें स्टाम्प राशि पैनल्टी सहित देने का आदेश हुआ होगा और उसके जमा होने पर उसका पंजीयन कर दिया गया।

धारा-23 में यह लिखा है कि कोई भी दस्तावेज यदि निष्पादन के 4 माह की अवधि में पंजीकरण के लिए प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो उसे पंजीकरण के लिए स्वीकार नहीं किया जाएगा।  किन्तु इसे निश्चित अवधि में प्रस्तुत कर दिया गया था और स्वीकार कर लिया गया था।  केवल स्टाम्प शुल्क की कमी थी उसका निवारण होने के बाद उसका पंजीयन कर दिया गया।  हमारी राय में यह पंजीयन किसी भी तरह विधि विरुद्ध नहीं है।

स्टाम्प जमा कराने का आदेश 2004 में हुआ और 2017 में स्टाम्प कमी पूरी की गयी। यह कुछ खटक रहा है।  लेकिन 2004 में स्टाम्प कमी का नोटिस दिया गया होगा। उसे चुनौती दी गयी होगी। उस प्रकरण के निपटारे पर स्टाम्प कमी पूरी की गयी होगी। पंजीयन को इस आधार पर निस्त कराने का कोई कारण नजर नहीं आता है। यदि कोई कारण हो भी तो उस के आधार पर उस प्रलेख को निरस्त कराने के लिए दीवानी वाद किया जा सकता है और डिक्री प्राप्त की जा सकती है तभी वह विधि विरुद्ध माना जाएगा। यदि कोई उचित कारण है तो यह काम तुरन्त करें। क्यों कि किसी भी विलेख को निरस्त कराने के लिए वाद संस्थित करने की अवधि पंजीयन की तिथि से केवल 3 वर्ष है। 

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