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पारिवारिक न्यायालय के निर्णयों एवं आदेशों की अपीलें

समस्या-

पारिवारिक न्यायालय के धारा 125  दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के अंतर्गत दिए गए अंतिम आदेश की अपील/ रिवीजन उच्च न्यायालय की किस पीठ एकल या खंड पीठ (सिंगल या डिविजन) में और किस धारा में होगी?

– राधेश्याम शर्मा, जोधपुर, राजस्थान

समाधान-

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण पोषण हेतु मासिक धनराशि प्रदान करने का आदेश देने के लिए प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को अधिकार प्रदान करती है। इस धारा के अंतर्गत दिए गए आदेश की अपील के लिए दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत कोई उपबंध नहीं है। संहिता के अंतर्गत इस आदेश के विरुद्ध केवल धारा 397 के अंतर्गत रिवीजन याचिका सेशन न्यायालय को प्रस्तुत की जा सकती है।

किन्तु पारिवारिक न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत जहाँ जहाँ पारिवारिक न्यायालय स्थापित हैं उन के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत धारा 125 दं.प्र.संहिता के आवेदन पारिवारिक न्यायालय को ही सुनने का अधिकार प्रदान किया गया है। पारिवारिक न्यायालय अधिनियम के अध्याय-5 में, जिसमें केवल एक धारा-19 है, पारिवारिक न्यालाय के अन्तर्वर्ती आदेश के सिवा सभी आदेशों और निर्णयों की अपील उच्च न्यायालय को किया जाना उपबंधित किया गया है। अध्याय-5 निम्न प्रकार है-

 

अध्याय 5 – अपीलें और पुनरीक्षण

धारा- 19. अपील-

(1) उपधारा (2) में जैसा उपबन्धित है उसके सिवाय और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में या किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुये भी, किसी कुटुम्ब न्यायालय के प्रत्येक निर्णय या आदेश की जो अन्तर्वती आदेश नहीं है, अपील उच्च न्यायालय में तथ्यों और विधि, दोनों के सम्बन्ध में होगी।

(2) कुटुम्ब न्यायालय द्वारा पक्षकारों की सहमति से पारित किसी डिक्री या आदेश की दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के अधीन पारित किसी आदेश की] कोई अपील नाही होगी।

(3) इस धारा के अधीन प्रत्येक अपील, किसी कुटुम्ब न्यायालय के निर्णय, या आदेश की तारीख से तीस दिन की अवधि के भीतर की जाएंगी।

(4) उच्च न्यायालय स्वप्रेरणा से या अन्यथा, ऐसी किसी कार्यवाही की, जिसमें उसकी अधिकारिता के भीतर स्थित कुटुम्ब न्यायालय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 22 अध्याय 9 के अधीन कोई आदेश पारित किया है, अभिलेख, उस आदेश को, जो अतवती आदेश न हो, तथ्यता, वैधता या औचित्य के बारे में और ऐसी कार्यवाही की नियमितता के बारे में अपना समाधान करने के प्रयोजन के लिए मँगा सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है।

(5) जैसा ऊपर कहा गया है उसके सिवाय, किसी कुटुम्ब न्यायालय के किसी निर्माता आदेश या डिक्री की किसी न्यायालय में कोई अपील या पुनरीक्षण नहीं होगी।

(6) उपधारा (1) के अधीन की गई किसी [अधीन किसी] अपील की सुनवाई दो या अधिक न्यायाधीशों से मिलकर बनी किसी न्यायपीठ द्वारा की जायेगी।

 

इस तरह धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रदान किए गए किसी भी आदेश (जो कि अन्तर्वर्ती आदेश नहीं है) की अपील धारा-19 (1) के अंतर्गत उच्च न्यायालय को प्रस्तुत की जा सकती है। धारा-19 की उपधारा (6) के अंतर्गत किए गए उपबंध के अनुसार धारा-19 (1) के अंतर्गत की गयी प्रत्येक अपील उच्च न्यायालय की दो या अधिक न्यायाधीशों की न्याय पीठ द्वारा ही की जा सकती है। आप अपील मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों को संबोधित करते हुए कर सकते हैं। सामान्य रूप से ऐसी अपील को खंड पीठ के समक्ष ही सुनवाई हेतु रखा जाएगा।

इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पारिवारिक न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत दिए गए आदेशों और निर्णयों की अपीलें इस धारा की उपधारा (3) के अंतर्गत 30 दिनों की अवधि में प्रस्तुत की जानी है। 

 

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