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पिता की मृत्यु पर उन की निर्वसीयती संपत्ति में पुत्रियों को उत्तराधिकार 2005 के पूर्व भी था।

father daughterसमस्या-

जींद, हरियाणा से अमित कुमार ने पूछा है –

मारे दादा जी के नाम एक मकान है, दादा जी 2004 को स्‍वर्ग सि‍धार गए थे, उन्‍होंने कोई वसीयत नहीं बनाई, उनकी चार बेटि‍याँ और एक बेटा है। मरने से पहले उन्‍होंने अपने बेटे को मकान में आकर रहने के लि‍ए कहा था। उनके बेटे जो कि मेरे पि‍ता हैं, वर्ष 2000 में ही उक्‍त मकान में आ गए थे। यहां आने के बाद मेरे पि‍ता ने प्रथम तल का निर्माण कराया, जि‍समें दो कमरे, बरामदा, रसोई घर और बाथरूम शामि‍ल है। 2004 में दादा जी के स्‍वर्ग सि‍धारने के बाद हम दादी के साथ रहने लगे। दादा जी अपने जीवि‍त रहते ही चारों बेटि‍यों की शादी पहले ही कर चुके थे। जब तक दादी जीवि‍त थी, तब तक कि‍सी भी बेटी ने हि‍स्‍सा नहीं मांगा था। लेकि‍न 2009 में दादी के स्‍वर्ग सि‍धारने के 10 दि‍न बाद ही तीन बेटि‍यों ने केस कर दि‍या। केस में आरोप लगाया गया कि सबसे छोटी बेटी मकान के ग्राउंड फ़लोर पर अपनी मां के साथ रहती थी और केस दाखि‍ल होने तक रह रही है। हकीकत यह है कि उस वक्‍त सभी दादी की तेरहवीं के लि‍ए रूके थे। मेरे पि‍ता की बडी बहन अभी भी हमारी तरफ है। शेष तीनों बहनों ने केस कर रखा है, वर्तमान में मकान पर पहले की तरह हमारा ही कब्‍जा है, मैं जानना चाहता हूं कि –
1.  क्‍या दादा की संपत्‍ति पर मेरे पि‍ता की बहनों का भी हक है, वह भी तब,  जबकि मेरे दादा की मौत 2005 से पहले हो चुकी है?
2. मुझे कानून के एक जानकार से पता चला है कि हि‍दू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 के अनुसार 2005 के बाद ही बेटि‍यों को जन्‍म से पि‍ता की संपत्‍ति में हि‍स्‍से का अधि‍कार प्राप्‍त हुआ है, इससे पहले अगर कोई पि‍ता स्‍वर्ग सि‍धार गया है तो उसकी बेटि‍यां हि‍स्‍सा नहीं मांग सकती, क्‍या यह सही बात है?
3. वादी पक्ष पि‍छली चार सुनवाइयों में से एक में भी हाजि‍र नहीं हुआ, ऐसे में क्‍या कि‍या जा सकता है?
4 हमारे मकान की रजि‍स्‍ट्री गुम हो गई है, कोर्ट ने स्‍टे का आर्डर दे रखा है, हमे शक है कि रजि‍स्‍ट्री अभि‍योग पक्ष ने ही चुराई है, ऐसे में हमें क्‍या करना चाहि‍ए, वैसे रजि‍स्‍ट्री की नकल हमारे पास अभी तक सुरक्षि‍त है?
कृपया उचित मार्गदर्शन करें।

समाधान-

प ने सब कुछ बताया है लेकिन यह नहीं बताया कि दादाजी की विवादित संपत्ति उन की स्वयं की है अथवा पुश्तैनी है अर्थात् दादा जी को उन के पिता से मिली हुई तो नहीं है?

कोई भी हिन्दू पुरुष के पास दो तरह की संपत्ति हो सकती है। एक तो वह संपत्ति जो उस ने स्वयं अर्जित की है। दूसरी वह संपत्ति जो उसे अपने पिता, दादा या परदादा अर्थात खुद से चौथी पीढ़ी तक के पूर्वजों में से किसी से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है। पहले प्रकार की संपत्ति उस की निजि संपत्ति है तथा दूसरे प्रकार की संपत्ति एक पुश्तैनी अर्थात सहदायिक संपत्ति है।

हदायिक संपत्ति पर चाहे किसी व्यक्ति का पूर्ण स्वामित्व हो अथवा उस में केवल एक भाग उस का हो उस में उस के पुत्रों, पौत्रों और प्रपौत्रों का हिस्सा भी सम्मिलित होता है। मसलन यदि किसी पुरुष को अपने पिता से उत्तराधिकार में ऐसा मकान मिला है जो उस के पिता को भी दादा से मिला था तो उस का वह अकेला स्वामी नहीं है। उस में उसके पुत्रों व पौत्रों का बराबर का हिस्सा है वे सभी उस संपत्ति के सहदायिक हैं। यदि पिता की मृत्यु हो जाती है तो उस संपत्ति में पिता का हिस्सा कम हो कर शेष बचे सभी सहदायिकों का हिस्सा बढ़ जाएगा। यदि पिता सहित कुल पाँच सहदायिक थे तो सब का हिस्सा 1/5 था, पिता की मृत्यु के उपरान्त सब का हिस्सा ¼ हो जाएगा। इस के बाद यदि पुत्र या पौत्र के घर कोई लड़का जन्म लेता है तो उस संपत्ति में उस लड़के को जन्म से ही हिस्सा मिल जाएगा अर्थात उस लड़के समेत सभी का हिस्सा पुनः 1/5 हो जाएगा। इसे हम उत्तरजीविता कहते हैं।

2005 के पहले तक कानूनी स्थिति यह थी कि यदि परिवार में कोई लड़की जन्म लेती थी तो सहदायिक सम्पत्ति में जन्म से उसे कोई हिस्सा नहीं मिलता था लेकिन 2005 के संशोधन से यह हुआ कि परिवार में लड़की के जन्म लेने पर उसे भी सहदायिक संपत्ति में उसी तरह अधिकार मिल गया जैसे पुत्र को मिलता था।

लेकिन 2005 के पूर्व भी उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 में यह उपबंध था कि यदि सहदायिक संपत्ति में भागीदार किसी पुरुष की मृत्यु हो जाती है और उस का कोई स्त्री उत्तराधिकारी मौजूद है तो उस की संपत्ति का उत्तराधिकार  उत्तरजीविता के आधार पर न हो कर हिन्दू उत्तराधिकार की धारा 8 के अनुसार निश्चित होगा। जिस का अर्थ यह है कि सहदायिक संपत्ति में मृतक की पुत्रियों को भी उत्तराधिकार प्राप्त होगा।

प के दादा जी की संपत्ति सहदायिक हो या उन की स्वअर्जित हो। आप 2004 में भी आप के दादाजी के देहान्त के समय पुत्रियाँ जीवित थीं इस कारण उन की संपत्ति का उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अनुसार ही तय होगा, अर्थात आप की बुआएँ भी दादा जी की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार हैं। आप के दादा जी की संपत्ति में आप के पिता जी और आप की बुआओं में से प्रत्येक को 1/5 हिस्सा प्राप्त होगा। 2005 के संशोधन का इस मामले में कोई असर नहीं होगा।

प के पिताजी ने उक्त मकान में जो कुछ निर्माण अपने धन से किया है यदि आप के पिता न्यायालय के समक्ष यह साबित कर सकें कि वह निर्माण उन के स्वयं के द्वारा ही करवाया गया था तो निर्माण की कीमत का मूल्यांकन किया जा सकता है तथा दादा जी की कुल संपत्ति में से पिताजी के द्वारा करवाए गए निर्माण की कीमत को कम कर के बँटवारा हो सकता है। और कम की गई कीमत के बराबर हिस्सा अलग से आप के पिता को प्राप्त हो सकता है।

संयुक्त संपत्ति के विभाजन का वाद एक दीवानी वाद है किसी भी पक्षकार की न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत उपस्थिति या अनुपस्थिति से कोई फर्क नहीं पड़ता उन के स्थान पर उन का वकील हाजिर हो ही रहा होगा। आप के पास यदि रजिस्ट्री की प्रति है तो कोई बात नहीं आप उस की प्रमाणित प्रति उपपंजीयक कार्यालय से प्राप्त कर सकते हैं। मूल उपलब्ध न होने पर प्रमाणित प्रति साक्ष्य में प्रस्तुत की जा सकती है। खोई हुई प्रति आप के किसी रिश्तेदार ने ही चोरी की है इस बात का कोई सबूत न होने पर आप किसी की शिकायत नहीं कर सकते। वह किस के पास है इस से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

कान पर बहिन का कब्जा है या नहीं इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्यों कि संपत्ति दादा जी की थी तथा उन की मृत्यु के साथ ही सभी उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति हो चुकी है और सभी उत्तराधिकारी उस संपत्ति के भागीदार हैं। यदि एक भी भागीदार का संपत्ति पर कब्जा है तो सभी का संयुक्त कब्जा माना जाएगा।

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