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सहदायिक संपत्ति के पिता के विभाजित हिस्से में संतानों का कोई हक नहीं।

समस्या-

मेरे दादाजी के तीन बेटे हैं और 1974 में आपसी बँटवारे के समय  एक खेत और दुकान दादाजी के नाम से उनके पास रहने दिया। बाकी सब खेतों का बटवारा तीनों भाइयों में कर दिया। दादाजी और दादीजी बड़े पापा के घर में रहते थे। अब बड़े पापा ने 2005 से 2015 के बीच दादाजी के नाम से जो खेत था उसकी बड़े पापा ने रजिस्ट्री करवा ली और अपने खाते में ट्रांसफर करवा लिया है। इसकी दोनों छोटे भाईयों को कोई जानकारी नहीं है। 2015 में जब दादाजी की मृत्यु हो गई। उसके बाद हमने जब खेत का हिस्सा मांगा तो बड़े पापा ने कहा कि मैं खेत में हिस्सा नहीं दूंगा। अब दोनों छोटे भाईयो को क्या करना चाहिए?

– कुन्दन लुहार, मुकाम पोस्ट घाटा का गांव, तहसील सागवाड़ा, जिला डूंगरपुर (राजस्थान)

समाधान-

ऐसी समस्याएँ आम हैं। होता यह है कि कोई संपत्ति पुश्तैनी अर्थात सहदायिक होती है। जैसे आपके दादाजी के पास जो भूमि और मकान था वह उन्हें उनके पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ था। उनके पिता को उन के दादाजी से प्राप्त हुआ होगा। यदि कोई संपत्ति 17 जून 1956 के पहले किसी हिन्दू मिताक्षर परिवार के सदस्य को अपने पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो तो वह सहदायिक संपत्ति होती है। उस में परिवार में जन्म लिए प्रत्येक पुरुष को जन्म से ही हिस्सा प्राप्त हो जाता है। 2005 से यह स्त्रियों को भी प्राप्त होने लगा है। इससे यह भी स्पष्ट है कि सहदायिक संपत्ति केवल विधि से ही उत्तराधिकार के कारण अस्तित्व में आती थी। 17 जून 1956 को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद से नयी सहदायिक संपत्तियाँ अस्तित्व आना बंद हो गया। लेकिन पहले से जो सहदायिक हो चुकी थीं वे बनी रहीं।

आप के दादाजी ने अपने जीवनकाल में उसका बँटवारा कर दिया। दादाजी के जीवित रहने के कारण बँटवारे में एक हिस्सा दादाजी को भी प्राप्त हुआ। दादाजी को प्राप्त हिस्सा उनकी ऐसी संपत्ति था जिसे वे बिना किसी के हस्तक्षेप के दान, वसीयत या विक्रय आदि कर सकते थे। उन्होंने दानपत्र अथवा विक्रय पत्र की रजिस्ट्री करवा कर उसे आपके बड़े पापा को दे दिया, जिसका उन्हें अधिकार था।

दोनों छोटे भाई पहले ही अपने हिस्से की संपत्ति बँटवारे में प्राप्त कर चुके थे इस कारण से उन्हें इस संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रह गया था। उन्हें इस संपत्ति में अधिकार प्राप्त होता दादा के उत्तराधिकार से। लेकिन दादाजी की मृत्यु हो जाने के पहले ही वे इस संपत्ति को हस्तान्तरित कर चुके थे। जिसके कारण उसमें छोटे भाइयों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं हुआ। दोनों छोटे भाइयों का उक्त संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं है इस कारण वे कुछ भी कर लें उन्हें इस संपत्ति में कोई हिस्सा प्राप्त नहीं होगा।