पिता जी की संपत्ति में माता जी का हिस्सा है, आप को विभाजन के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर देना चाहिए
16/03/2011 | Hindu, Legal Remedies, Partition, Succession, उत्तराधिकार, कानूनी उपाय, हिन्दू | 6 Comments
| नरेन्द्र पूछते हैं –
मेरे पिता जी का देहान्त 2002 में हुआ था और हम चार भाई हैं। मेरे पिताजी एक सराकारी बैंक में क्लर्क का काम करते थे, उन के देहान्त के बाद मेर भाइयों ने जिम्मेदारी से हाथ ऊपर कर लिए थे। मेरे पिताजी की मिल्कियात में केवल एक मकान है। पहले सभी भाई मकान बेचने से इन्कार कर रहे थे मगर मैं ने किसी तरह उन को मकान बेचने पर मना लिया है। लेकिन अब वे सब मेरे माता जी का हिस्सा देने से मना कर रहे हैं। क्या मेरे माता जी का हिस्सा नहीं मिल सकता और अगर मैं वकील के माध्यम से जाऊँ तो क्या मेरे माताजी का हिस्सा बरकरार रहेगा? कृपया उचित जानकारी दें।
उत्तर –
नरेन्द्र जी,
आप ने अपने प्रश्न में बहनों का उल्लेख नहीं किया है, यदि बहनें नहीं हैं तो कोई बात नहीं है। लेकिन यदि हैं तो माता जी का ही नहीं आप के पिता की संपत्ति में बहनों का भी अधिकार निहित है। वास्तविकता यह है कि हिन्दू उत्तराधिकार विधि के अनुसार। उत्तराधिकार उसी दिन, उसी समय प्रभावी हो चुका है जिस समय आप के पिता जी का देहान्त हो गया। यदि आप के पिता ने अपनी संपत्ति के संबंध में कोई वसीयत नहीं की है तो उन के सभी उत्तराधिकारियों का विधि के अनुसार अधिकार बन चुका है। इस तरह सभी उत्तराधिकारी संयुक्त रूप से उक्त मकान के स्वामी हो चुके हैं। यदि बहिन नहीं तो आप चारों भाई और माता जी का उस संपत्ति में समान हिस्सा है। यदि बंटवारा किया जाता है तो सभी को समान हिस्सा प्राप्त होगा। यदि एक बहिन है तो फिर एक हिस्सा उस का भी होगा दो बहिनें होने पर उन दोनों का एक एक हिस्सा होगा। आप के बताए अनुसार वर्तमान में 1/5 हिस्सा प्रत्येक का है। मकान बेचने से जो राशि प्राप्त होगी उस का 1/5 हिस्सा प्रत्येक लेने का अधिकारी है, माताजी का भी 1/5 हिस्सा है।
आप वकील से नोटिस दिला दें कि सब का समान हिस्सा है और उत्तराधिकार के कानून के अनुसार संपत्ति को बेच कर सब को उन का हिस्सा दे दिया जाए। यदि यह सब सहमति से नहीं होता है तो आप तुरंत न्यायालय में विभाजन के लिए वाद दाखिल कर दीजिए। न्यायालय कानून के अनुसार बंटवारा कर देगा। चूंकि वर्तमान मकान का पाँच हिस्सों में विभाजन संभव नहीं है इस कारण से उसे विक्रय करने के उपरांत सभी को उन के हिस्से की राशि प्राप्त हो जाएगी। लेकिन होगा यह कि आपसी समझौते से जहाँ यह काम आसानी से हो सकता है वहीं न्यायालय में समय लगेगा। आप आपसी समझौते का प्रयत्न करने के लिए विभाजन का वाद प्रस्तुत करने के पूर्व अथवा बाद में जिला स्थाई लोक अदालत में आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं. वहाँ सभी भाइयों को समझा कर आप के बीच समझौते आधार पर पंचाट पारित किया जा सकता है और मामला जल्दी निपटाया जा सकता है। मेरी राय में विभाजन का वाद प्रस्तुत करने और सभी भाइयों को वाद का समन मिल जाने और उन के न्यायालय में उपस्थित हो जाने के तुरंत बाद स्थाई लोक अदालत में आवेदन प्रस्तुत करना अधिक उचित कदम होगा।
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6 Comments
वाह मां से बडा पैसा हो गया….
दिनेश राय जी आप ने बहुत अच्छी सलाह दी, क्या जमाना आ गया अब मां भी अपने पेट के जाये बच्चो की ओर मोहताजी से देखे?
अच्छी जानकारी.
मेरे पापाजी के मित्र के यहाँ इसी तरह हुआ था अभी तीन साल पहले तब घर में इस केस के एक एक मैटर पर चर्चा होती थी नैट पर। इसलिये मुझे इतना डिटेल में पता है नरेंद्र जी। उनकी भी माताजी को हिस्सा प्राप्त हुआ था कोर्ट से।
माताजी का हिस्सा तो बिल्कुल है और क्लास वन (Class I) के तहत है। वकील साहब एकदम सही कह रहे हैं नरेंद्र जी। इम्मीडियेटली पार्टीशन का सूट लगाइये माताजी की तरफ़ से।
सर्व साधारण के लिये उपयोगी जानकारी ।
जो भाई मां को साथ रखने को तैयार नहीं वे मां को अपने ही पति की सम्पत्ति में हिस्सा देने से कैसे इन्कार कर सकते हैं ।
टिप्पणीपुराण और विवाह व्यवहार में- भाव, अभाव व प्रभाव की समानता.
हर रोज नित नई-नई जानकारियां मिल रही है. जिज्ञासु व्यक्ति की प्यास बुझाने का काम कर रहा है आपका ब्लॉग-तीसरा खम्बा.अच्छी सलाह के साथ ही समस्या के निवारण हेतु उपाय-आपसी समझौते से जहाँ यह काम आसानी से हो सकता है वहीं न्यायालय में समय लगेगा,विभाजन का वाद प्रस्तुत करने और सभी भाइयों को वाद का समन मिल जाने और उन के न्यायालय में उपस्थित हो जाने के तुरंत बाद स्थाई लोक अदालत में आवेदन प्रस्तुत करना अधिक उचित कदम होगा।