पुश्तैनी संपत्ति और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम
समस्या-
भोपाल, मध्यप्रदेश से अजय ने पूछा है-
यदि किसी पुरुष को अपने पिता से कोई संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त होती है तो वह पैतृक संपत्ति है, क्या?। इस में पौत्रों व परपौत्रों का भी हिस्सा होता है,क्या?। दादा जी का देहान्त २००१ में हुआ। पिता जी की कोई बहन या बहनें नहीं हैं। दादा जी ने इसे स्वयं अर्जित किया था।
समाधान-
परंपरागत हिन्दू विधि में यह सिद्धान्त था कि यदि किसी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में संपत्ति प्राप्त हो तो वह उस की स्वयं की संपत्ति नहीं होगी अपितु एक पुश्तैनी जायदाद होगी। जिस में उस के चार पीढ़ी तक के वंशजों का समान हिस्सा होगा। ऐसी संपत्ति सहदायिक संपत्ति कही जाती है।
लेकिन 17 जून 1956 को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रभावी होते ही यह स्थिति परिवर्तित हो गई। इस अधिनियम की धारा 8 में प्रावधान किया गया कि किसी पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार किसे प्राप्त होगा। अब पुत्रों, पुत्रियों, पत्नी और माता को पुरुष की संपत्ति में समान हिस्सा उत्तराधिकार में प्राप्त होता है। जो हिस्सा जिसे प्राप्त होता है उस पर उसी का अधिकार होता है उस के पुरुष वंशजों का उस में कोई हिस्सा नहीं होता।
इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई थी कि जो संपत्ति इस अधिनियम के प्रभावी होने के पूर्व उत्तराधिकार में प्राप्त हो कर सहदायिक हो चुकी है उस का उत्तराधिकार परंपरागत रूप से ही होगा। एक बार सहदायिक हो जाने पर संपत्ति में चार पीढ़ी तक के पुरुष वंशजों को समान अधिकार होता है। यदि उस संपत्ति के सहदायिकों में से किसी एक का देहान्त हो जाता है तो संपत्ति के सभी सहदायिकों का अंश बढ़ जाता है क्यों की मृत व्यक्ति के हिस्से का अधिकार सभी सहदायिकों को प्राप्त हो जाता है। इसी तरह से जब किसी सहदायिक की पुरुष संतान जन्म लेती है तो उसे जन्म से ही सहदायिक संपत्ति में अंश प्राप्त हो जाता है और सभी सहदायिकों का अंश कम हो जाता है। इस तरह सहदायिक संपत्ति का उत्तराधिकार उत्तरजीविता के आधार पर निर्धारित होता है।
लेकिन हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रभावी होने से स्थिति परिवर्तित हो गई। 17 जून 1956 से पूर्व जो संपत्ति किसी को चार पीढ़ी तक के किसी पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो वह सहदायिक संपत्ति रह गई और उसका उत्तराधिकार सहदायिक संपत्ति की तरह होने लगा। लेकिन यदि कोई संपत्ति किसी पुरुष पूर्वज को उक्त तिथि के बाद उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो वह सहदायिक संपत्ति न हुई और उस पर उस के जीवनकाल में उसी उत्तराधिकारी का अधिकार होने लगा जिसे वह प्राप्त हुई है। वह उसे किसी भी रूप में हस्तांतरित भी कर सकता है।
आप के दादा जी का देहान्त 2001 में हुआ है। उन की सम्पत्ति उन की स्वअर्जित संपत्ति है। इस कारण उन से उत्तराधिकार में जिस को जो संपत्ति प्राप्त हुई है वह सहदायिक संपत्ति नहीं है। उस संपत्ति पर केवल उत्तराधिकारियों का ही अधिकार है। यदि दादा जी को कोई संपत्ति 17 जून 1956 के पूर्व उन के पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई थी तो वह सहदायिक संपत्ति होगी और उस में दादा जी के चार पीढ़ी तक के पुरुष वंशजों का अधिकार होगा।
Mere par dada (Kamta Prasad) se ek putra (Madan Prasad), Madan Prasad ki pehli panti se ek putra (Chandra Bhushan Prasad ) , dusri patni se do putra and teen putri aur tisri patni se koi bhi putra avam putri nahi hai.
Chandra Bhushan Prasad se do putra aur do putri hai.
Kya hum charo bhai – bahan apne paitrik sampati me aadha (1\2) ke liye title me jaa sake hai aur yadi hum ja sakte hai to kin niyam aur Dhara ke tahat ?
सर क्या एक पुन विवाहिता को उसके पहले ससुर की अचल सम्पति में से हिसा मिलेगा ] अपने पति की मिरतु के बाद पुन विवाह कर लीया ह उसके नाम का कोई बचा नही ह वो एक हिंदी ओरत है
मेरे दादाजी ने दो वसीयते लिखी
और दोनो मे लिखा कि यह उनकी पहली और आखिरी वसीयत है
कौन सी वसीयत मान्य होगी
कृपया बताएं
मेरे दादा जी देहांत १९६७ में हुआ . उनकी सम्पति जो उन्होंने खुद बनाई थी में से पिता जी को २२५० वर्ग फिट आपसी बटवारा में मिला .पिता जी का देहांत १९९५ में हुआ . हम लोग २ भाई व् ४ बहन है , इस २२५० वर्ग फिट को १९९७ में माँ व् हम २ भाई के नाम से नामांतरण हुआ था .इस समय ४ बहनो की शादी हो चुकी थी . सन २००० में इस २२५० वर्ग को आपसी बटवारा कर मेने ५७५ वर्ग फिट की जमींन रजिस्टर्ड कर लोन लेकर माकन बनवा लिया . व् ५७५ वरग फिट जमींन के पैसे माँ को दे दिया माँ ने पैसे ४ लकड़िओ में बाटी दिया पर इसका कोई लिकित नहीं है . माँ व् भाई के नाम से १६७५ वर्ग फिट जगह है जिसमे पुस्तैनी मकान है व् इस १६७५ वर्ग फिट में मेने माँ के कहने पर २४० वर्ग फिट की दुकान अपने पैसे से बनाई है . अब समस्या यह है की ४ लड़कियो को वह दुकान चाइये इस हेतु मुझे ब्लैक मेल कर रही थी हम दुकान उनको नही देना चाहते क्योकि उस के किराये से भाई का भरण पोषण होता है व् आ आगे भी होगा . चारो बहनो ने १९९७ का नामांतरण गलत हुआ कह कर केस कर दिया व् तहसीले से आर्डर निकल कर माँ व् भाई के हिस्से में अपना नाम जोड़वा लिया . क्या उनको हिस्सा मिलेगा ,अगर मिलेगा तो कितना व् मेने जो पैसे माँ को जमीं के बदले दिया थे उसका क्या होगा मतलब वह बटवारा नामा क्या बिक्री नामा हो सकता है ? दुकान मेने बनाई है उसका क्या होगा किराया अभी में व् माँ बराबरी में लेते है , फ़िलहाल माँ ४ बहनो के पक्ष में है उसका कहना है बहनो को दुकान दे दो , वाद की इस्थिति बन गयी है . हमने सिविल केस फाइल कर दे है , लकडियो का अधिकार तो २००५ के नियम से है जबकि इसका पूर्व गामी प्रभाव नहीं है जबकि २००४ के पूर्व बटवारा भी हो गया था , नया नियम के अनुसार भी २००४ के पूर्व बटवारे में अगर लड़की को हिस्सा मेला हो या न मिला हो प्रभावित नही होगा . अब क्या होगा .
मेरे दादा जी देहांत १९६७ में हुआ . उनकी सम्पति जो उन्होंने खुद बनाई थी में से पिता जी को २२५० वर्ग फिट आपसी बटवारा में मिला .पिता जी का देहांत १९९५ में हुआ . हम लोग २ भाई व् ४ बहन है , इस २२५० वर्ग फिट को १९९७ में माँ व् हम २ भाई के नाम से नामांतरण हुआ था .इस समय ४ बहनो की शादी हो चुकी थी . सन २००० में इस २२५० वर्ग को आपसी बटवारा कर मेने ५७५ वर्ग फिट की जमींन रजिस्टर्ड कर लोन लेकर माकन बनवा लिया . व् ५७५ वरग फिट जमींन के पैसे माँ को दे दिया माँ ने पैसे ४ लकड़िओ में बाटी दिया पर इसका कोई लिकित नहीं है . माँ व् भाई के नाम से १६७५ वर्ग फिट जगह है जिसमे पुस्तैनी मकान है व् इस १६७५ वर्ग फिट में मेने माँ के कहने पर २४० वर्ग फिट की दुकान अपने पैसे से बनाई है . अब समस्या यह है की ४ लड़कियो को वह दुकान चाइये इस हेतु मुझे ब्लैक मेल कर रही थी हम दुकान उनको नही देना चाहते क्योकि उस के किराये से भाई का भरण पोषण होता है व् आ आगे भी होगा . चारो बहनो ने १९९७ का नामांतरण गलत हुआ कह कर केस कर दिया व् तहसीले से आर्डर निकल कर माँ व् भाई के हिस्से में अपना नाम जोड़वा लिया . क्या उनको हिस्सा मिलेगा ,अगर मिलेगा तो कितना व् मेने जो पैसे माँ को जमीं के बदले दिया थे उसका क्या होगा मतलब वह बटवारा नामा क्या बिक्री नामा हो सकता है ? दुकान मेने बनाई है उसका क्या होगा किराया अभी में व् माँ बराबरी में लेते है , फ़िलहाल माँ ४ बहनो के पक्ष में है उसका कहना है बहनो को दुकान दे दो , वाद की इस्थिति बन गयी है . हमने सिविल केस फाइल कर दे है , लकडियो का अधिकार तो २००५ के नियम से है जबकि इसका पूर्व गामी प्रभाव नहीं है जबकि २००४ के पूर्व बटवारा भी हो गया था , नया नियम के अनुसार भी २००४ के पूर्व बटवारे में अगर लड़की को हिस्सा मेला हो या न मिला हो प्रभावित नही होगा . अब क्या होगा .
मेरे पिता जी के दो माँ थी एक से १ लडका (चाचा) २ लड़की (बुआ) दुसरे से १ लड़का (पिता ) १ (बुआ) ।
दादा ने सभी खानदानी जमीन (पिता के दादा का) हमारे चाची जी को बक्शीसनामा में लिखा है ।
क्या हमारा उस खानदानी जमीन पर कोई हिस्सा है ।
कृपया जल्द सलाह दे ।
सर हमें यह जानना है की यदि कोई स्त्री के पति का देहांत हो गया हो एवम उसके पति क भाई और ससुर उस स्त्री के जमीं पर जबरन कब्ज़ा करते है उसे विलेज में अने से रोकते है और उसे मानसिक तौर पे प्रताड़ित करते है तो ऐसी स्थिति में क्या कोई किस प्रकार की कानून सहायता कर सकता है और उसके बारे में पूरी जानकारी कैसे प्राप्त होगी
कहा जाना होगा
kisi पर्सन ka हाउस का केस हाउसिं बोर्ड में चल रहा उसका पुत्र की म्रत्तु हो जाती है तो उसके कोई पुत्र नहीं है तो अगला वारिस चच हो सकता है या नहीं
सर मरे परदादा की जमीन पैतृक थी 1947, से उसके दो बेटे थे , और एक बेटी थी, एक बेटा परदादा के जीवन काल में मृत्यु हो गई , तो परदादा ने जमीन एक बेटे और दो पोतों ( जो बेटा मर गया उसकी दो संतानो ) के नाम बराबर 1/2 हिसा कर दिया, अतः जो बेटा मर गया उसका नाम वसीयत में नाम नहीं आया / परन्तु जो बेटा जीवीत था उसने अपने जीवन काल में अपने हिस्से की पूरी जमीन बेचानं कर दी, अब (जो बेटा मर गया उसकी दो संतानो जिनकी उमर 40/ 45 साल की हैं। ) पर परदादा की बेटी ने जिसका जन्म 1940 का है ,ने अपना हिसा 1/3 मांग लिया हैं। सर मुझे क्या करना चाहीये
में चार भाई एक बहन हु । मेरे माता पिता जीबित है घर का सारा काम सभि लोग अपने मन मुताबिक करते आ रहे है। दो बरे भाई एक छोटा भाई अच्छा पैसा कमाते है। बरे दोनों भाई फ्लैट अपने पत्नि के नाम से लिखबा लिया है। उसका किस्त बैंक के माघ्यम से दे रहे है, एक बरे भाई कि पत्नी घर कि काम करती है,दुसरी ईनजिनयर है..गाँब मे पिताजी जमीन खरीद किये सभी भाई के नाम से…मुझे ये भाई देखना नही चाहते है।मेरे पत्नी के ईलाज,बच्चे कि पढाई,ब्यबसाई करने मे दिक्कत काफी हो रहा है.. किया मुझे भाबि के नाम से लिया हूआ फ्लेट मे हिस्सा होगा । दुसरी बात पिताजी जमीन खरीद किये है उस मे से पुरा प्लोट खुद बेच सकते है कि नहीं । घर मे काम काज सम्मलित रुप हो रहा है।आपस मे सभी का लेन देन बैक के माघ्यम या हाथ से खचॉहोता है..
में चार भाई एक बहन हु । मेरे माता पिता जीबित है घर का सारा काम सभि लोग अपने मन मुताबिक करते आ रहे है। दो बरे भाई एक छोटा भाई अच्छा पैसा कमाते है। बरे दोनों भाई फ्लैट अपने पत्नि के नाम से लिखबा लिया है। उसका किस्त बैंक के माघ्यम से दे रहे है, एक बरे भाई कि पत्नी घर कि काम करती है,दुसरी ईनजिनयर है..गाँब मे पिताजी जमीन खरीद किये सभी भाई के नाम से…मुझे ये भाई देखना नही चाहते है।मेरे पत्नी के ईलाज,बच्चे कि पढाई,ब्यबसाई करने मे दिक्कत काफी हो रहा है.. किया मुझे भाबि के नाम से लिया हूआ फ्लेट मे हिस्सा होगा । दुसरी बात पिताजी जमीन खरीद किये है उस मे से पुरा प्लोट खुद बेच सकते है कि नहीं
अगर शहर के अंदर की पुस्तैनी कृषि भूमि बेंची है तो प्राप्त रकम का कितना प्रतिशत कर देना होगा ?
यदि कोई पुरुष अपने पुत्रो में से एक पुत्र को किसी X दम्पति को गोद में दे दिया. अब X दम्पति का नाम उसके स्कूल और कॉलेज के प्रमाण पत्रों अंकित है और X दम्पति ने वसीयत में अपने पुस्तैनी सम्पति को गोद लिया हुए के पत्नी के नाम दत्तक पुत्र पुतोहू लिखकर कर दिया. अब गोद लिए हुए पुत्र के अपने पिता अगर अपने पुस्तैनी सम्पति में से गोद लिए पुत्र को भी सम्पति देना चाहे तो क्या दे सकते है ? गोद लिया हुए पुत्र के अपने और भाई बिरोध भी कर सकते है क्या ?
बिहार -पटना
पुश्तैनी संपत्ति को ले कर बहुत भ्रम हैं। सब से बड़ी बात तो यह कि जो भी संपत्ति पिता से पुत्र को उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है उसे पुश्तैनी संपत्ति माना जाता रहा है। लेकिन यह गलत है। यदि किसी व्यक्ति का देहान्त १७.०६.१९५६ को या उस के बाद हुआ है और उस की संपत्ति उस की पुरुष संतान को उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो वह पुश्तैनी संपत्ति नहीं है उसे उत्तराधिकार मे प्राप्त संपत्ति में उस के पुरुष उत्तराधिकारियों का कोई हिस्सा नहीं है और वह अपने जीवनकाल में किसी भी अन्य व्यक्ति को उसे या उस का भाग हस्तांतरित कर सकता है और उसे वसीयत भी कर सकता है। लेकिन यदि कोई ऐसी संपत्ति में उसे केवल हिस्सा प्राप्त हुआ है जो उक्त तिथि या उस के बाद भी सहदायिक संपत्ति थी तो उस में उस की पुरुष संतानों का भी अधिकार होगा। यदि पिता उसे उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति में से अपने गोद दिए हुए पुत्र को कोई हिस्सा या पूरी संपत्ति देना चाहे तो वह दे सकता है। लेकिन वह सहदायिक संपत्ति में अपने हिस्से को किसी दूसरे को नहीं दे सकता।