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कानून के उल्लंघन पर अदालत के चक्कर काटना लाजमी है।

समस्या-

वनराजसिंह चौहण ने धामतवाण दश्कोई, अहमदाबाद से पूछा है-

मेरे दादाजी के पास 2 ऐकर पुश्तैनी जमीन है। दादाजी को 7 संतान हैं। 4 लडके 3 लड़कियाँ है। लडकियों की शादी हो चुकी है। दादाजी का ही पूरे 2 ऐक़ड़ में नाम है। वो जमीन दादाजी ने पैसे ले कर बेचदी है। कबजा भी दे दिया है। पैसा भी सब मिल गया है। दादाजी की 3 में से 1 लडकी ने सिविल कोर्ट में 2005 के उत्तराधिकार अधिनियम संशोधन एक्ट के तहत हिस्सा मांगा है। दादाजी को कोर्ट के चक्कर काटने पड़े हैं। और जमीन का पैसा चारों लडकों को दे दिया है। इसका समाधान बताइए।

समाधान-

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के संशोधन को अस्तित्व में आए 13 वर्ष से अधिक समय हो चुका है। अभी तक भी यदि उसे लागू करने की इच्छा इस अधिनियम के अंतर्गत हिन्दू शब्द की परिभाषा में आने वाले तमाम समाजों में सहदायिक/ पुश्तैनी संपत्ति में पुत्रियों को पुत्रों के समान हिस्सा देने की मानसिकता नहीं बनी है और वे अपनी इच्छा से लड़कियों को दूसरे तरीकों से संपत्ति से वंचित करने की कोशिश करेंगे तो ये दिन तो देखने को मिलेंगे।

आप के दादाजी ने काम ही ऐसा किया है कि उन्हें अदालत के चक्कर काटने पड़ें। कोई भी व्यक्ति यदि कानून के विरुद्ध या उस के उल्लंघन में कोई काम करेगा तो उसे कभी भी और कितने भी समय तक के लिए अदालत के चक्कर काटने पड़ सकते हैं। चक्कर तो उसे भी काटने पड़ेंगे जिस ने दादाजी से यह माल खरीदा है। चूंकि हिस्सा मांगा है इस कारण से चारों पुत्रों और दो दूसरी पुत्रियों को भी अदालत का मुहँ देखना पड़ रहा होगा।

आप के दादाजी ने उस पुश्तैनी संपत्ति को बेच कर जो धन प्राप्त किया है वह भी सहदायिक संपत्ति है जो अब चारों भाइयों के पास है। इस कारण आप की बहिनें चारों भाइयों और दादाजी के विरुद्ध जमीन में या विक्रय से प्राप्त धन से अपना हि्स्सा मांग सकती हैं।

अब तो इस का एक ही रास्ता है। चारों भाई मिल कर तीनों बहिनों को मनाएँ और कहें कि वे उन्हें उनके हिस्से के बदले नकद धन देने को तैयार हैं। तीनों बहिनों को बिठा कर बात करें और एक समझौते पर पहुँचें जिस में तीनों बहिनें यह लिख कर देने को तैयार हों कि उन्हें जमीन बेचने से प्राप्त धनराशि में से उन के हिस्से की धनराशि मिल गयी है और अब इस मुकदमे को वे नहीं चलाना चाहती हैं। यह समझौता अदालत में पेश हो और इस के अनुसार अदालत अपना निर्णय पारित कर यह फैसला दे कि सभी उत्तराधिकारियों को उन का हिस्सा मिल चुका है। तभी इस विवाद से मुक्ति प्राप्त हो सकती है।

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