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पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार से वंचित करने के विरुद्ध वाद।

समस्या-

अखिल ने रायपुर छत्तीसगढ़ से पूछा है-rp_gavel5.jpg

कृपया हमारी शंका  का समाधान करें? क्या (1) यदि संपत्ति दादाजी के पिता की संपत्ति को बेचकर खऱीदी गयी थी तब वह संपत्ति पुश्तैनी मानी जायेगी। जिस पर हम सभी भाई बहनों का बराबर-बराबर अधिकार होगा (2) यदि संपत्ति  दादाजी ने अपनी कमाई से अर्जित की है तो क्या उस पर पिता का अधिकार है और वह चाहें तो उस संपत्ति को किसी को भी दे सकते हैं।

आशीष त्रिपाठी ने सिंगरौली मध्यप्रदेश से पूछा है-

क्या पिता के मृत्यु के पश्चात उस पुश्तैनी संपत्ति पर दावा किया जा सकता है जो पिता ने अन्य लोगों के नाम रजिस्ट्री कर चुका हो? यदि हाँ ! तो किस अधिनियम के तहत य

समाधान-

कोई भी संपत्ति पुश्तैनी या सहदायिक तभी मानी जाएगी जब कि वह 17 जून 1956 के पूर्व किसी पुरुष हिन्दू को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो। यदि आप के दादा जी के पिता के पास वह संपत्ति उक्त तिथि से पूर्व उत्तराधिकार में आयी थी तो पुश्तैनी थी और उसे विक्रय कर के खरीदी गयी संपत्ति भी पुश्तैनी होगी और हर संतान का जन्म से उस में अधिकार होगा।

यदि संपत्ति दादा जी ने अपनी कमाई से खरीदी है और उन का देहान्त 17 जून 1956 के पूर्व हो गया था तो आप के पिता के पास वह संपत्ति पुश्तैनी होगी और उस में आप सभी भाई बहनों का भी अधिकार होगा। आप के पिता आप को उस अधिकार से वंचित कर के संपत्ति का विक्रय नहीं कर सकते थे। इस विक्रय को विक्रय की तिथि से 12 वर्ष की अवधि (मियाद) में दीवानी वाद कर के निरस्त कराया जा सकता है। यदि विक्रय के समय आप नाबालिग थे तो आप बालिग होने की तिथि से मियाद में ऐसा दावा कर सकते हैं। यदि आप को इस विक्रय की जानकारी न थी तो आप को जानकारी प्राप्त होने से मियाद में ऐसा वाद संस्थित कर सकते हैं।

किसी भी व्यक्ति को पुश्तैनी संपत्ति में उस के अधिकार से वंचित किए जाने के वि्रुद्ध वाद संस्थित करने की मियाद 12 वर्ष है। इसे मियाद अधिनियम में मिलने वाली छूटों के आधार पर कुछ और बढ़ाया जा सकता है। इस मामले में आप को किसी स्थानीय वकील से सलाह करना चाहिए।

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