पुश्तैनी संपत्ति में हिस्से का दावा
|समस्या-
विक्रान्त सिंह ने इटावा, उत्तर प्रदेश से पूछा है-
मेरे गांव में हमारा पुस्तैनी घर है। चूँकि हमारे बाबा शहर रहने लगे तो गंव वाले घर और खेती पर ध्यान ही नहीं दिया। अब बाबा और पिताजी के गुजरने के बाद हम अपने गांव के घर पर दावा करना चाहते हैं। लेकिन हमारे पास उस घर और खेती के कोई दस्तावेज़ भी नहीं हैं और जो परिवार के लोग है वहां हैं वो लोग कोई हेल्प नहीं कर रहे। उन्होंने उन सब पर कब्ज़ा कर रखा है। कृपया उचित सलाह दें कैसे हम उस घर और खेती को वापस पा सकते हैं।
समाधान-
आम तौर पर जिस स्थायी संपत्ति पर किसी अन्य व्यक्ति का कब्जा 12 वर्ष से अधिक का हो गया हो और किसी ने इस अवधि में उस पर अपना मालिकाना हक का दावा न किया हो तो उस संपत्ति पर कब्जेदार का प्रतिकूल कब्जा हो जाता है। कब्जा प्राप्त करने का दावा करने की अवधि आप से कब्जा छिनने से 12 वर्ष की अवधि होने के कारण इस प्रतिकूल कब्जे को वापस लेना संभव नहीं होता। लेकिन यदि संपत्ति पुश्तैनी हो जिस का विभाजन न हुआ हो और परिवार का ही कोई हिस्सेदार उस संपत्ति पर काबिज हो तो यह माना जाता है कि संपत्ति के सभी हिस्सेदारों का उस पर कब्जा है और कोई भी हिस्सेदार उस संपत्ति पर अपने हिस्से को अलग कराने के लिए वाद संस्थित कर सकता है।
आप अपनी संपत्ति को पुस्तैनी बता रहे हैं इस कारण आप का उस में हिस्सा हो सकता है। आपने खेती की जमीन का उल्लेख किया है। खेती की जमीन के सभी रिकार्डिस आजकल ऑनलाइन देखे जा सकते हैं। आप पहले पता कीजिए कि आप के परिवार के अन्य लोग जिन्हों ने खेती और मकान पर कब्जा कर रखा है वे किन खसरा नंबरों की जमीन पर काबिज हैं। फिर उन खसरा नंबरों को रिकार्ड में तलाश कीजिए।इस से पता लग जाएगा कि वे जमीनें किस किस के नाम हैं। बाद में उन खसरा नंबरों का उस वक्त का रिकार्ड तहसील या आप के गाँव की तहसील के रिकार्डरूम में जा कर तलाश कीजिएगा। इस संबंध में उस तहसील में काम करने वाले राजस्व मामलों के वकील और उन के मुंशी आप की मदद कर सकते हैं।
एक बार आप को यह पता लग जाए कि आप की जमीन पूर्व में आप के किस पूर्वज के नाम थी और आप के बाबा का उस में क्या हिस्सा था। तब आप अपने बाबा के वंशज होने के आधार पर जमीन के बंटवारे का वाद संस्थित कर सकते हैं, उसी के आधार पर मकान में अपने हिस्से के लिए मकान के बंटवारे के लिए दीवानी वाद संस्थित कर सकते हैं। यही आप के लिए तथा आप जैसे लोगों के लिए एक मात्र रास्ता है।
हिन्दू उतराधिकार कानून के तहत बेटी का पिता की संमपती मे अधीकार2005 के अमेनटमेट ओर अभी 2015/16 का सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या स्थिति होगी । जबकि बेटी की 1975 मे मृत्यु हो जाती हैं ओर पिता की 1993 मे । ओर तब से 2018 तक कोई उस बेटी के बेटा बेटी दावा नही करते हैं और कोइ हक नही जताते हैं ।। जबकी वह संमपती उस पिता के बेटे के ओर उसके बाद बेटा की मृत्यु के बाद पोतो के नाम हो जाती हैं।। तो क्याअब उस 1975 मे मृत बेटी के पोते दोहीते, अब उस 1993 के हुऐ विरासती अंनतकाल को चैलेंज कर अपनी नानी,दादी जो 1975मे मृत्यु हो गई उके पिता की जयजात मे अपना हिस्सा माग रहे है।। क्या ऐसा संही है।।
आप को अपने सवाल यहाँ पूछने के बजाय कानूनी सलाह लिंक पर उपलब्ध फार्म में पूछने चाहिए। यहाँ सिर्फ संबधित पोस्ट के बारे में कुछ सवाल हों तो वे पूछें। वैसे आप का सवाल गलत है। 2005 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में जो संशोधन हुआ है वह पिता की संपत्ति के संबंध में नहीं है अपितु केवल सहदायिक संपत्ति के संबध में है। यदि कोई सहदायिक संपत्ति हो और उस में हिस्सेदार किसी पुरुष को कोई पुरुष संतान जन्म लेती है तो उसे जन्म से ही उस में अधिकार मिलता था। लेकिन पुत्री को नहीं। अब वही अधिकार पुत्री को दे दिया गया है। लेकिन सहदायिक संपत्ति से इतर संपत्तियों के संबंध में कानून वही है जो हिन्दू उत्तराधिाकर अधिनियम के लागू होने से था। यदि आप को जानना हो कि सहदायिक संपत्ति क्या है तो सहदायिक संपत्ति से संबंधित तीसरा खंबा की अन्य पोस्टों को पढ़िए, आप को जानकारी हो जाएगी।