पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा कैसे प्राप्त कर सकती हूँ?
| निशा ने पूछा है –
मेरी शादी के पाँच साल बाद मेरे पति का किडनी असफल हो जाने से देहान्त हो गया। उन के पास कोई सम्पत्ति नहीं थी। अब मैं बड़े भाई के साथ रहती हूँ। मेरे माता जी छोटे भाई के साथ हैं। मेरे पिता के पास पुश्तैनी घर हैं, वो भी तीन-तीन। वे लड़कियों को देने के हक में नहीं हैं। मुझे रहने को जगह चाहिए। प्यार से वो लोग नहीं मान रहे हैं। मुझे पता है कि मेरा उस में हिस्सा बनता है। मगर जो हिस्सा मुझे चाहिए था वहाँ छोटे भाई ने मकान बना दिया है और मुझे जहाँ दोनों भाइयों की दुकान है उस के ऊपर का आधा हिस्सा दे कर अलग कर रहे हैं लेकिन उस में ऊपर जाने का रास्ता छोटा भाई इस तरह बनवा रहा है कि वह जब चाहे दीवार खड़ी कर के उसे बंद कर सकता है। मैं एक कैजुअल नौकरी करती हूँ, जिस का कोई भरोसा नहीं है। मैं ऐसा हिस्सा लेना चाहती हूँ जिस से कुछ किराए की कमाई भी मुझे हो जाए। कृपया बताएँ, मुझे क्या करना चाहिए? क्या मुझे पुलिस में शिकायत करनी चाहिए।
उत्तर –
निशा जी,
आप जानती हैं कि आप का इस पुश्तैनी संपत्ति में हिस्सा है। पूर्व में किसी भी संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में लड़की या कोई भी स्त्री बंटवारा नहीं करवा सकती थी। वह केवल संपत्ति का उपभोग कर सकती है। लेकिन कुछ समय पहले हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में हुए संशोधन से स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान कर दिए गए हैं और अब कोई भी स्त्री जिसका किसी अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में हिस्सा है वह अपने हिस्से के लिए विभाजन का वाद न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकती है। लेकिन अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार के विभाजन का मामला एक जटिल मामला है। इस मामले में यह देखना होगा कि आप के पूर्वजों का किस किस की कितनी संपत्ति थी। उत्तराधिकार के अनुसार किस को कितनी संपत्ति प्राप्त हुई। इस का स्पष्ट निर्धारण किए बिना विभाजन का वाद प्रस्तुत करने से मामला जटिल हो जाता है और अक्सर इस तरह के मामलों में शीघ्र निर्णय नहीं होता और असफलता भी हाथ लग सकती है। इस के लिए दीवानी मामलों, विशेष रूप से संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति के विभाजन के मामलों के अनुभवी वकील से आप को व्यक्तिशः मिल कर सलाह करनी चाहिए। उस के उपरांत ही आप को विभाजन के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करना चाहिए।
आप जानती हैं कि आप का इस पुश्तैनी संपत्ति में हिस्सा है। पूर्व में किसी भी संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में लड़की या कोई भी स्त्री बंटवारा नहीं करवा सकती थी। वह केवल संपत्ति का उपभोग कर सकती है। लेकिन कुछ समय पहले हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में हुए संशोधन से स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान कर दिए गए हैं और अब कोई भी स्त्री जिसका किसी अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में हिस्सा है वह अपने हिस्से के लिए विभाजन का वाद न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकती है। लेकिन अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार के विभाजन का मामला एक जटिल मामला है। इस मामले में यह देखना होगा कि आप के पूर्वजों का किस किस की कितनी संपत्ति थी। उत्तराधिकार के अनुसार किस को कितनी संपत्ति प्राप्त हुई। इस का स्पष्ट निर्धारण किए बिना विभाजन का वाद प्रस्तुत करने से मामला जटिल हो जाता है और अक्सर इस तरह के मामलों में शीघ्र निर्णय नहीं होता और असफलता भी हाथ लग सकती है। इस के लिए दीवानी मामलों, विशेष रूप से संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति के विभाजन के मामलों के अनुभवी वकील से आप को व्यक्तिशः मिल कर सलाह करनी चाहिए। उस के उपरांत ही आप को विभाजन के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करना चाहिए।
वर्तमान में आप के परिवार के लोग सहमति के आधार पर जो हिस्सा आप को दे रहे हैं वह ले लेना चाहिए और उस पर कब्जा प्राप्त कर के उस में आप को रहना चाहिए। जब भी आप का मार्ग बन्द किए जाने का प्रयत्न किया जाए तो आप पुलिस में अपना रास्ता बंद करने की शिकायत कर सकती हैं। साथ के साथ आप को अपने हिस्से में कब्जे का आधार पर रास्ता बंद न करने के लिए अपने समस्त परिवार के सदस्यों को पक्षकार बनाते हुए एक वाद स्थाई व्यादेश (Permanent Injunction) के लिए प्रस्तुत करना चाहिए। स्थाई व्यादेश के इस वाद में एक अस्थाई व्यादेश के लिए आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए जिस में न्यायालय आप के पक्ष में आप का मार्ग बंद न किए जाने के लिए तुरंत स्थाई व्यादेश प्राप्त कर सकता
More from my site
8 Comments
ऎसी स्थिति मे तो इस के भाईयो ओर पिता जी को इस की पुरी मदद करनी चाहिये… बहुत ही अच्छी ओर सही सलाह दी आप ने धन्यवाद
यह एक व्यावहारिक सलाह है। मुक़द्दमा लड़ना, एक बेहद पेचीदा, खर्चीला और परेशान करने वाला मामला है। पता चला, जो भी मिल रहा था, अब वह भी नहीं मिल रहा है, और ऊपर से वकील, अदालत के खर्चे! आदमी टूट के रह जाएगा।
सही राय.
bahut badhiya jankari mili………aabhaar.
शकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड देखे…….http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html
क्यों मैं "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा! देखे………. http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html
हर रोज नित नई-नई जानकारियां मिल रही है. जिज्ञासु व्यक्ति की प्यास बुझाने का काम कर रहा है आपका ब्लॉग-तीसरा खम्बा.अच्छी सलाह के साथ ही समस्या के निवारण हेतु उपाय.
श्रीमान जी, मेरा ऐसा अनुभव है कि-एक सहनशील इंसान तब बहुत ज्यादा टूट जाता है. जब उसे अपने अधिकारों के लिए अपने रिश्तेदारों (पत्नी, भाई, बहन, माँ-पिता आदि) के खिलाफ कोर्ट में विवाद दाखिल करना पड़ता है. इस पर कहा भी जाता हैं कि-"हमें तो अपनों ही लुटा,गैरों में कहाँ इतना दम था, मेरी किश्ती वहीँ डूबी, जहाँ पानी कम था". क्या ऐसी लड़ाई में फिर भगवान श्रीकृष्ण के "गीता" में दिए उपदेश का पालन करना उचित होगा? अगर इसके लिए (कोर्ट में मुकद्दमा करना और हर सच्चाई से कोर्ट को अवगत करना) किसी सभ्य व्यक्ति को अपने धर्म व संस्कारों को भी भूलना पड़े तब क्या यह उचित होगा?
ाच्छी जानकारी। धन्यवाद।
जानकारी मिली.