पुश्तैनी संपत्ति की वसीयत
|समस्या-
कोटा, राजस्थान से रवि गुप्ता ने पूछा है –
मेरे भाई की मौत 1975 मे हो गई उनके पीछे 30 बीघा पुस्तैनी जमीन थी, उनके कोई सन्तान नहीं थी। अब 2013 मे मेरी भाभी की मौत हो गई। भाभी ने इस जमीन की वसीयत मेरे भान्जे के नाम लिखी है। क्या मैं इस जमीन के लिये दावा कर सकता हूँ?
समाधान –
आप के कथनानुसार आप के भाई के पास जो 30 बीघा जमीन थी वह पुश्तैनी थी। भारत में प्रचलित व्यक्तिगत विधियों में केवल परंपरागत हिन्दू विधि ही एक ऐसी विधि है जिस में पुश्तैनी संपत्ति का सिद्धान्त है। कोई भी पुश्तैनी संपत्ति उस परिवार के सभी पुरुष सदस्यों का हिस्सा होता है। 2005 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में हुए संशोधन के उपरान्त अब परिवार की पुत्रियाँ भी पुश्तैनी संपत्ति में हिस्सेदार हो गई हैं। यह एक बड़ी विडम्बना है कि लोगों में यह भ्रान्ति है कि पुश्तैनी संपत्ति की वसीयत नहीं की जा सकती है। लेकिन हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 30 प्रत्येक हिन्दू को यह अधिकार देती है कि जिस संपत्ति को वह विक्रय कर सकता है या दान दे सकता है उसे वसीयत भी कर सकता है। इसी धारा की व्याख्या में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कोई हिन्दू किसी पुश्तैनी संपत्ति में अपने हिस्से को वसीयत कर सकता है।
आप के भाई की मृत्यु के समय वर्ष 1975 में यह व्यवस्था थी कि यदि पुरुष मृतक के पास कोई पुश्तैनी संपत्ति हो तो उस का दाय उत्तरजीविता के आधार पर होगा न कि उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अनुसार। लेकिन यह उपबंध भी है कि यदि अधिनियम की अनुसूची की प्रथम श्रेणी में वर्णित कोई स्त्री उत्तराधिकारी जीवित होगी तो उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 के अनुसार उस का दाय होगा। इस उपबंध के अंतर्गत उक्त संपत्ति दाय में आप की भाभी को प्राप्त हो गई।
एक बार किसी स्त्री को कोई संपत्ति प्राप्त हो जाने पर उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14 के अनुसार वह उस स्त्री की परमसंपत्ति हो जाती है और वह उस की संपूर्ण स्वामी होती है। वह अपने जीवनकाल में उस संपत्ति को विक्रय करने, दान करने या अन्य प्रकार से हस्तान्तरित करने का अधिकार रखती है। उस संपत्ति को वसीयत करने का अधिकार भी उसे ही है।
इस तरह आप की भाभी ने यदि भान्जे के नाम वसीयत कर दी है तो उस पर भान्जे का ही अधिकार है न कि किसी अन्य व्यक्ति का। केवल एक ही स्थिति में आप उस भूमि पर दावा कर सकते हैं जब कि वसीयत किसी कारण से फर्जी या अवैध हो। अन्यथा आप का दावा करना निरर्थक सिद्ध होगा।