भूमि पर कृषक के अधिकार में कमी होने पर रेकार्ड में परिवर्तन करने वाले आदेश की अपील करे।
समस्या-
इन्दौर, मध्य प्रदेश से अमित ने पूछा है-
एक मंदिर है, जिसमें हम वर्षो से निरंतर सेवा, पूजा-अर्चना आज तक करते चले आ रहे हैं। वर्षों पूर्व हमारे पूर्वजों को इस मंदिर के पुजारी की हैसियत से कृषि करने हेतु भुमि का एक विशाल भूखण्ड दान किया गया था। पिताजी बताते हैं कि उस समय राजवंशो का शासन चला करता था। यह जमीन हमें भू-दान आंदोलन में दान में दी गई थी। उस समय से राजस्व अभिलेखों में यह जमीन हमारे पूर्वजों के नाम से ही दर्ज थी। पिछले कई दशकों में उक्त प्रकार से दान में मिली भूमियों को कुछ व्यक्तियों द्वारा अपने स्वार्थवश जमीन की किमत में बेतहाशा वृद्धि होने से विक्रय कर दिया गया।
इस स्थिति को देखते हुये वर्ष 1975-76 में आयुक्त महोदय के आदेश द्वारा इस प्रकार की समस्त भूमियों पर भू स्वामी के नाम के साथ साथ कलेक्टर महोदय का नाम बतौर प्रबंधक की हैसियत से दर्ज कर दिया गया। जिससे इस प्रकार की जमीनों के विक्रय को प्रतिबंध किया जा सके।
मेरे द्वारा जब इस भूमि से संबंधित खसरों की प्रमणित प्रति भू अभिलेख विभाग से प्राप्त करने पर ज्ञात हुआ कि वर्तमान में उस भूमि पर हमारे पूर्वजों का नाम हटाते हुये उस भूमि को शासकीय भूमि घोषित कर दिया है। जबकि इस भूमि पर हमारा आज भी कब्जा है और हमारा परिवार उस भूमि पर आज भी खेती कर रहा है। वर्तमान में उस क्षेत्र की यह स्थिति है कि वह क्षेत्र नगर सीमा के भीतर आ चुका है और उसे भूमि से लगे आस पास के क्षेत्र में कॉलोनीयां बन चुकी है और वहाँ पर जनता निवास कर रही है।
हमें संदेह है कि भविष्य में इस भूमि को सरकार हम से वापस ना ले ले। ऐसी स्थिति में हमारे पास क्या-क्या कानूनी उपचार हो सकते है? जिससे हमारा नाम पुनः बतौर स्वामी के स्थापित हो सकें? यदि इस प्रकार को लेकर न्यायालय में केस लगाते है तो हमें क्या सहायता मिल सकती हैं?
समाधान-
आप के परिवार के किसी पूर्वज को जो पुजारी की हैसियत से मंदिर का काम देखता था उसे उक्त भूमि दान की गई। लेकिन उस दान में यह शर्त रही होगी कि आप के पूर्वज और उन के वंशज पुजारी का काम करते रहेंगे और मंदिर के रखरखाव के लिए भी खर्च करेंगे। कानून में किसी भी मूर्ति को एक अवयस्क की तरह माना जाता है। अवयस्क की संपत्ति का प्रबंधन उस के संरक्षक द्वारा किया जाता है। न्यायालयों द्वारा इस तरह के दान को मंदिर की मूर्ति को दान माना गया और मंदिर व भूमि को उस की संपत्ति माना गया तथा पुजारी को उस मूर्ति का संरक्षक माना गया है। इस तरह पुजारी की हैसियत मूर्ति के संरक्षक की हो गई।
अनेक इस तरह के संरक्षकों ने इस स्थिति को भाँप कर पहले ही उक्त भूमि का विक्रय कर के उसे स्थानान्तरित कर दिया और पैसा बना लिया। जब कि ऐसी भूमि को स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता।
सरकार तो सारी ही भूमि की स्वामी होती है। जिसे भूस्वामी कहा जाता है वह तो उस भूमि का कृषक मात्र होता है। इस तरह मेरा अनुमान है कि कलेक्टर/सरकार भूस्वामी के बतौर और मूर्ति मंदिर का नाम एक कृषक के बतौर दर्ज हुआ होगा। आप के परिवार का नाम वहाँ मूर्ति मंदिर के संरक्षक की हैसियत से रहना चाहिए। लेकिन यदि आप समझते हैं कि उक्त भूमि आप के पूर्वजों से मूर्ति या मंदिर के किसी दायित्व के बिना दान की गई थी तो फिर वह आप की स्वयं की भूमि है।
आप को पुराने दान-पत्र से ले कर आज तक के राजस्व रिकार्ड में हुए समस्त परिवर्तनों की प्रतिलिपियाँ प्राप्त कर के किसी राजस्व संबंधी वकील से सलाह लेना चाहिए। वे समस्त रिकार्ड देख कर ही बता सकेंगे कि आप का अधिकार क्या है? यदि किसी प्रकार से आप के अधिकार में कमी हुई है तो राजस्व रिकार्ड में हुए जिस परिवर्तन से ये अन्तर आया है उस परिवर्तन के आदेश के विरुद्ध आप को राजस्व न्यायालय में अपील करना चाहिए। लेकिन इस काम को करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
में ये जाना चा हता हु की पंचयत ने किसी को खनन के लिये दस साल लिज में सरकारी जमीन देती है बो समाप्त हो जाती है इसके बाद क्या पंचयत के बिना ही n o c के बो लिज रीनू हो जाती है क्या या पंचयत की noc की जरुरत पड़ती है