राजस्थान में हाईकोर्ट की वर्तमान स्थिति और उस का संक्षिप्त इतिहास
|इस आलेख में हाईकोर्टों की पीठों के विभाजन के आधारों और उन के औचित्य पर गंभीरता से किए जाने की आवश्यकता पर बात की जानी थी। बात राजस्थान के तीन संभाग मुख्यालयों पर हाईकोर्ट बैंचों की स्थापना के लिए चल रहे आंदोलन से आरंभ हुई थी। बात को गंभीरता से आरंभ किया जाए इस के लिए यह जरूरी है कि हाईकोर्ट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जान ली जाए। इस के लिए देश के सारे हाईकोर्टों के इतिहास में जाने की जरूरत नहीं है। लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट का इतिहास जान लेना जरूरी होगा। हम वहीं से आरंभ करते हैं।
राजस्थान हाईकोर्ट मुख्य पीठ भवन
भारत के आजाद होने उपरांत वर्तमान राजस्थान कई रजवाड़ों में विभाजित था और राजस्थान का बनना शेष था। राजस्थान प्रांत की सूरत सब से पहले तब नजर आने लगी थी जब जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर राज्यों ने मिल कर एक “संयुक्त राज्य राजस्थान” का गठन किया। महाराणा उदयपुर इस के महाराज प्रमुख और जयपुर के सवाई मानसिंह राजप्रमुख बनाए गए। इस नवनिर्मित “संयुक्त राज्य राजस्थान” का उद्घाटन 30.03.1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया, लेकिन औपचारिक रूप से यह दिनांक 7 अप्रेल 1949 को अस्तित्व में आया। उद्घाटन हो जाने के बाद भी राजस्थान में हाईकोर्ट अस्तित्व में नहीं आया था। “संयुक्त राज्य राजस्थान” में शामिल रजवाड़ों में चल रही न्यायिक व्यवस्था पूर्ववत चलती रही। राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया तब पूरी हुई जब 15 मई 1949 को मत्स्य संघ का भी “संयुक्त राज्य राजस्थान” में विलय हो गया।
इस नये बने राज्य के लिए उच्च न्यायालय 28 अगस्त 1949 को तब अस्तित्व में आया जब महाराजा मानसिंह ने को जोधपुर में हाईकोर्ट का उद्घाटन किया और मुख्य न्यायाधीश कमलाकांत वर्मा और ग्यारह अन्य जजों को हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई। ये ग्यारह जज वास्तव में राजस्थान में सम्मिलित पुराने रजवाड़ों का प्रतिनिधित्व करते थे, जब कि कमलाकांत वर्मा इलाहाबाद हाईकोर्ट से आए थे। ग्यारह जजों में से न्यायमूर्ति नवल किशोर और न्यायमूर्ति आमेर सिंह जसोल जोधपुर से, न्यायमूर्ति के.एल.बापना और न्यायमूर्ति इब्राहीम जयपुर से, न्यायमूर्ति राणावत और न्यायमूर्ति शार्दूल सिंह मेहता उदयपुर से, न्यायमूर्ति डी.एस. दवे बूंदी से, न्यायमूर्ति त्रिलोचन दत्त बीकानेर से, न्यायमूर्ति आनंदनारायण कौल अलवर से, न्यायमूर्ति के.के. शर्मा भरतपुर से और न्यायमूर्ति खेमचंद गुप्ता कोटा से थे। हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जोधपुर में स्थापित हुई साथ ही कोटा जयपुर और उदयपुर में बैंचें स्थापित की गईँ।
26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान अस्तित्व में आने के साथ ही राजस्थान को ‘बी’ श्रेणी के राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। इस से हाईकोर्ट जजों की संख्या कम हो गई। यह भी देखा गया कि तत्कालीन जज संविधान के अनुसार आवश्यक योग्यता रखते हैं अथवा नहीं। जिस का परिणाम यह हुआ कि न्यायमूर्ति वर्मा बने नहीं रह सके और 60 वर्ष की आयु के होने पर उन्हों ने अपना पद त्याग दिया। दो ख्यात जज न्यायमूर्ति नवल किशोर और न्यायमूर्ति इब्राहीम के सेवानिवृत्त हो जाने से रिक्त हुए स्थानों को भरने के लिए प्रमुख वकीलों जोधपुर के इंद्रनाथ मोदी और और जयपुर के डी.एम. भंडारी को जज नियुक्त किया गया।
राजस्थान हाईकोर्ट जयपुर बैंच
राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के अनुसार 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हो जाने पर केन्द्र शासित प्रदेश और ‘सी’ श्रेणी के राज्य अजमेर-मेरवाड़ा तथा आबू, सुनेल और टप्पा के क्षेत्र राजस्थान में शामिल हो जाने से वर्तमान राजस्थान का उदय हुआ और इसे 1 नवम्बर 1956 को ‘ए’ श्रेणी के राज्य की स्थिति प्राप्त हुई। ‘ए’ श्रेणी के राजस्थान राज्य का हाईकोर्ट केवल छह जजों से आरंभ हुआ। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सी न्यायमूर्ति एस.आर. दास राजस्थान आए और उन्हों ने जाँचा कि क्या ‘बी’ श्रेणी के राज्य के हाईकोर्ट के जज ‘ए’ श्रेणी के राज्य के हाईकोर्ट का काम देखने के लिए उपयुक्त हैं या नहीं। उन्हों ने सभी छहों जजों को इस के योग्य पाया और तब भारत के राष्ट्रपति ने उन के लिए औपचारिक रूप से पुनः जज के नियुक्ति आदेश जारी किए। अब केवल जोधपुर मुख्य पीठ और जयपुर बैंच के रूप में राजस्थान में हाईकोर्ट की दो ही बैंचें रह गई। 1958 में जयपुर बैंच को समाप्त कर दिया गया। किन्तु यह 31 जनवरी 1977 को पुनः आरंभ कर दी गई। वर्तमान में राजस्थान हाईकोर्ट में जजों के 32 पद हैं जो जोधपुर और जयपुर पीठों में बैठते हैं।
राजस्थान में अधीनस्थ न्यायालयों में 33 जिला और सेशन्स न्यायालय, 108 अतिरिक्त जिला एवं सेशन्स जजों के न्यायालय, 697 मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कम सिविल जज वरिष्ठ खंड, और सिविल जज कम न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय स्थापित हैं।(जारी)
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7 Comments
rajasthan me itne nyayalay h fir bhi garib insan ko nyay nhi milta gribo ka koi nyay nhi h
I’d have to agree with you here. Which is not something I usually do! I enjoy reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to comment!
ये ए बी और सी श्रेणी के राज्य वाली बात क्या थी?
अरे वाह आज आप ने हमे इतिहास ही पढा दिया, बहुत सुंदर ओर ग्याण बर्धक लेख, यह सब बाते हमे मालूम नही थी.
धन्यवाद
बहुत बडिया जानकारी है आभार और शुभकामनायें
बहुत बढिया जानकारी मिली. धन्यवाद.
रामराम.
dada, kal tak ka intjar. uf! narayan narayan