रेगुलेटिंग एक्ट (विनियम अधिनियम)1773 : भारत में विधि का इतिहास-29
|पूर्व परिस्थितियाँ
कोई भी ब्रिटिश नागरिक या कंपनी दुनिया के किसी भी भूक्षेत्र पर संप्रभुता हासिल नहीं कर सकती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीय क्षेत्रों में जो भी गतिविधियाँ कर रही थीं वे सम्राट द्वारा जारी किए गए चार्टरों के अधीन ही कर रही थी। लॉर्ड क्लाइव के अभियान के बाद मुगल सम्राट से बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार हासिल कर लेने के उपरांत स्थिति यह थी कि कहने को फौजदारी प्रशासन नवाब के अधीन था हालांकि उसे कंपनी ही नियंत्रित कर रही थी। दूसरी और दीवानी अधिकारों के तहत लूट खसोट जारी थी। व्यवस्था ठीक न होने के कारण कंपनी के अधिकारी अपनी व्यक्तिगत संपत्तियाँ बना रहे थे। 1770 के बंगाल के अकाल में चौथाई जनता काल के गाल में समा गई। लोग इधर उधर हो गए और कंपनी का बहुत धन वसूल न हो सका और डूब गया। कंपनी ने घाटे की पूर्ति के लिए वस्तुओं के दामों में भारी वृद्धि कर दी, जिस से बंगाल की जनता में हाहाकार मच गया। घाटे की पूर्ति असंभव थी। कंपनी के इंग्लेंड में बैठे निदेशक इस स्थिति से अनभिज्ञ थे। इस दुर्दशा की खबर इंग्लेंड पहुँच रही थी। कंपनी के प्रशासन की आलोचना आरंभ हो गई थी। लार्ड मैकाले ने कंपनी के कुशासन पर तीव्र प्रहार किए।
लॉर्ड नॉर्थ
भारत में बढ़ती हुई निरंकुश शक्ति से ब्रिटिश संसद भी चिंतित हो उठी। कंपनी की क्षेत्रीय प्रभुता ब्रिटिश शासन के लिए घातक हो सकती थी। ब्रिटिश शासकों, जनता और राजनीतिज्ञों का ध्यान इस ओर जाने लगा। 1772 में कंपनी के निदेशक लॉर्ड नॉर्थ को सूचित करने को बाध्य हो गए कि यदि कंपनी को एक लाख पाउंड का कर्ज नहीं दिया गया तो कंपनी का काम ठप्प पड़ जाएगा।
कंपनी 1757 से 1766 तक दो करोड़ पाउंड से अधिक बंगाल के निवासियों से उपहारों के रूप में वसूल कर चुकी थी। इस के अतिरिक्त पौने चार करोड़ पाउंड से अधिक राशि का अप्राप्य हानि के संबंध में भुगतान किया जा चुका था। कंपनी द्वारा और कर्ज की मांग से कंपनी के विरुद्ध रोष की लहर उत्पन्न हो गई। जाँच के लिए 31 सदस्यों की सलेक्ट कमेटी और 13 सदस्यों की गुप्त संसदीय समिति का गठन हुआ जिन्हों ने 18 रिपोर्टें पेश कीं। रिपोर्टों में कहा गया था कि बंगाल की न्याय व्यवस्था कंपनी की स्वार्थ सिद्धि का उपकरण बनी हुई है और मुगल साम्राज्य की प्रजा को बहुत कम संरक्षण इस न्याय व्यवस्था से प्राप्त होता है। इन रिपोर्टों से इंग्लेंड में हंगामा मच गया। लॉर्ड नॉर्थ द्वारा रखे गए तथ्यों और प्रस्तावों के बाद अक्टूबर 1773 में विनियम अधिनियम (रेगुलेटिंग एक्ट) पारित किया गया जो अगस्त 1774 से लागू हुआ। इस अधिनियम का घोषित उद्देश्य तो यह था कि कंपनी की स्थिति सुदृढ़, व्यवस्थित और स्पष्ट हो सके। लेकिन वास्तविक उद्देश्य कंपनी की शक्तियों को ब्रिटिश संसद को हस्तांतरित करना था। इस अधिनियम में कंपनी के संविधान में परिवर्तन करने और कंपनी के कार्यों पर संसदीय नियंत्रण स्थापित करने की व्यवस्था की गई थी, हालांकि बाद में वह निष्फल सिद्ध हुई।
विनियम अधिनियम (रेगुलेटिंग एक्ट)1773
अब तक कंपनी 24 निदेशकों के निदेशक मंडल के नियंत्रण में प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था का संचालन करती थी। इस अधिनियम के पहले छह खंडों में कंपनी पर निदेशक मंडल का कठोर नियंत्रण स्थापित करने की व्यवस्था की गई। निदेशकों का कार्यकाल एक वर्ष से बढ़ा
कर चार वर्ष का कर दिया गया। पहले 500 पाउंड के शेयरहोल्डरों को मत देने का अधिकार था जिसे अब 1000 पाउंड या अधिक के शेयर होल्डरों के लिए सीमित भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के उपबंध भी किए गए, जो बाद में असफल सिद्ध हुए। प्रत्येक वर्ष एक चौथाई निदेशक नए चुने जाने की व्यवस्था की गई। भारत से आने वाले राजस्व संबंधी पत्राचार कोषागार को तथा सैनिक-असैनिक तथ्य ब्रिटिश सरकार के सचिव को प्रेषित करना अनिवार्य कर दिया गया।
इस अधिनियम के खंड 7 से 12 में भारत में प्रेसिडेंसी नगरों के प्रशासन का पुनर्गठन किया गया। गवर्नर के स्थान पर गवर्नर जनरल और उस की चार सदस्यीय परिषद का गठन किया गया। वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया। परिषद का कार्यकाल पाँच वर्ष रखा गया, इस से पूर्व केवल ब्रिटिश सम्राट ही उसे पदच्युत कर सकते थे। गवर्नर जनरल के किसी कारणवश अनुपस्थित होने या मृत्यु हो जाने पर उपयुक्त व्यवस्था होने तक परिषद के वरिष्टतम सदस्य के उस का दायित्व उठाने का प्रावधान किया गया। परिषद बहुमत के निर्णयों से काम करती थी। मत विभाजन होने पर गवर्नर जनरल अपना मत दे सकता था। अन्यथा उसे स्वतंत्र मत देने का अधिकार नहीं था।
इस नई व्यवस्था में मद्रास और मुम्बई की प्रेसीडेंसियों का अधीक्षण भी बंगाल के गवर्नर जनरल को सौंप दिया गया था। इस तरह बंगाल का गवर्नर जनरल भारत में सर्वोच्च गवर्नर हो गया था। मद्रास और मुम्बई की प्रेसीडेंसियों के लिए युद्ध या संधि की घोषणा करने के पूर्व गवर्नर जनरल की अनुमति आवश्यक हो गई थी।
गवर्नर जनरल और उस की परिषद को भारत में प्रशासन के लिए नियम, विनियम और विधि निर्माण का अधिकार दिया गया था जो न्याय संगत हो और इंग्लेंड की किसी विधि के प्रतिकूल न हो। इंग्लेंड के किसी भी नागरिक को इस विधि के विरुद्ध 60 दिनों के भीतर किंग-इन-काउंसिल को अपील करने का अधिकार था। अपील होने पर किंग-इन-काउंसिल किसी विधि को उपयुक्त न पाए जाने पर या दो वर्ष के भीतर स्वयं अपने विवेक पर निरस्त कर सकती थी।
अब तक कंपनी 24 निदेशकों के निदेशक मंडल के नियंत्रण में प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था का संचालन करती थी। इस अधिनियम के पहले छह खंडों में कंपनी पर निदेशक मंडल का कठोर नियंत्रण स्थापित करने की व्यवस्था की गई। निदेशकों का कार्यकाल एक वर्ष से बढ़ा
कर चार वर्ष का कर दिया गया। पहले 500 पाउंड के शेयरहोल्डरों को मत देने का अधिकार था जिसे अब 1000 पाउंड या अधिक के शेयर होल्डरों के लिए सीमित भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के उपबंध भी किए गए, जो बाद में असफल सिद्ध हुए। प्रत्येक वर्ष एक चौथाई निदेशक नए चुने जाने की व्यवस्था की गई। भारत से आने वाले राजस्व संबंधी पत्राचार कोषागार को तथा सैनिक-असैनिक तथ्य ब्रिटिश सरकार के सचिव को प्रेषित करना अनिवार्य कर दिया गया।
इस अधिनियम के खंड 7 से 12 में भारत में प्रेसिडेंसी नगरों के प्रशासन का पुनर्गठन किया गया। गवर्नर के स्थान पर गवर्नर जनरल और उस की चार सदस्यीय परिषद का गठन किया गया। वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया। परिषद का कार्यकाल पाँच वर्ष रखा गया, इस से पूर्व केवल ब्रिटिश सम्राट ही उसे पदच्युत कर सकते थे। गवर्नर जनरल के किसी कारणवश अनुपस्थित होने या मृत्यु हो जाने पर उपयुक्त व्यवस्था होने तक परिषद के वरिष्टतम सदस्य के उस का दायित्व उठाने का प्रावधान किया गया। परिषद बहुमत के निर्णयों से काम करती थी। मत विभाजन होने पर गवर्नर जनरल अपना मत दे सकता था। अन्यथा उसे स्वतंत्र मत देने का अधिकार नहीं था।
इस नई व्यवस्था में मद्रास और मुम्बई की प्रेसीडेंसियों का अधीक्षण भी बंगाल के गवर्नर जनरल को सौंप दिया गया था। इस तरह बंगाल का गवर्नर जनरल भारत में सर्वोच्च गवर्नर हो गया था। मद्रास और मुम्बई की प्रेसीडेंसियों के लिए युद्ध या संधि की घोषणा करने के पूर्व गवर्नर जनरल की अनुमति आवश्यक हो गई थी।
गवर्नर जनरल और उस की परिषद को भारत में प्रशासन के लिए नियम, विनियम और विधि निर्माण का अधिकार दिया गया था जो न्याय संगत हो और इंग्लेंड की किसी विधि के प्रतिकूल न हो। इंग्लेंड के किसी भी नागरिक को इस विधि के विरुद्ध 60 दिनों के भीतर किंग-इन-काउंसिल को अपील करने का अधिकार था। अपील होने पर किंग-इन-काउंसिल किसी विधि को उपयुक्त न पाए जाने पर या दो वर्ष के भीतर स्वयं अपने विवेक पर निरस्त कर सकती थी।
कलकत्ता सुप्रीमकोर्ट
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कंपनी के किसी भी अधिकारी को निजि व्यापार करने, भेंट या उपहार स्वीकार करने पर रोक लगा दी गई थी। घूस लेने पर अधिकारी से दो-गुणा राशि वसूल किया जाता था और उसे पद से भी वंचित किया जा सकता था। किसी भी ब्रिटिश नागरिक को 12 प्रतिशत तक ब्याज वसूल करने का अधिकार दिया गया था। निदेशकों द्वारा भारत से लौटने पर अर्जित संपत्ति का ब्योरा देना अनिवार्य कर दिया गया था। निदेशकों के वेतनों में वृद्धि की गई थी। गवर्नर जनरल, उसकी परिषद के सदस्यों और कंपनी के कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले अपराधों के लिए सम्राट के न्यायालय में अभियोजन चलाए जाने की व्यवस्था की गई थी।
इस विनियम से एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीशों सहित सुप्रीमकोर्ट की स्थापना की गई। सुप्रीमकोर्ट के निर्णयों के विरुद्ध केवल सम्राट को ही अपील की जा सकती थी।
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8 Comments
ऱेग्यूलेटिंग एक्ट पर आपका ये लेख जानकारी से पूर्ण है । शुभ नववर्ष ।
वर्ष नव-हर्ष नव-उत्कर्ष नव
-नव वर्ष, २०१० के लिए अभिमंत्रित शुभकामनाओं सहित ,
डॉ मनोज मिश्र
आभार।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
——–
पुरूषों के श्रेष्ठता के जींस-शंकाएं और जवाब।
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।
सुन्दर एवं रोचक जानकारी
आपको नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें
बहुत उम्दा एवं रोचक जानकारी!!
मुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत सुंदर आलेख. नये साल की घणी रामराम.
रामराम.
दिनेश जी आप का लेख पढ कर कई बार इन अग्रेजो पर गुस्सा भी आता है, ओर हमारे लोगो पर भी गुस्सा आता है, लेकिन हम ने इस बात से कोई सवक नही लिया ओर आज भी….
आप के यह सारे लेख बहुत ही कीमती खाजाना है, आप ने बहुत मेहनत से यह सुंदर लेख लिखे, धन्यवाद
आदरणीय सर,
सादर प्रणाम।
सर्वप्रथम तो नव-वर्ष की शुभ कामनाएँ।
उसके बाद रेग्युलेटिंग एक्ट पर इतने ज्ञानवर्धक आलेख के लिए बहुत बहुत आभार। कलकत्ता सुप्रीम कोर्ट की तस्वीर तो दुर्लभ है। हम अपनी बिटिया रानी के लिए आपका यह आलेख सेव करके रख रहे हैं। उसको सोशल साईंस में पढ़ने के काम आएगा।
—प्रणाम