विदुर द्वारा विधवा पुत्रवधु से विवाह शून्य है …
|समस्या-
दिल्ली से विनोद कुमार ने पूछा है-
एक विदुर ने अपनी विधवा पुत्रवधु से विवाह किया है। क्या यह कानून के अनुसार वैध है। क्या उस के मरने के बाद उस की यह पत्नी फैमिली पेंशन पाने की अधिकारी है?
समाधान-
आप ने यह नहीं बताया कि यह विदुर और उस की विधवा पुत्र वधु किसी व्यक्तिगत विधि से शासित होते हैं। यदि वे हिन्दू विधि से शासित होते हैं तो यह विवाह वैध नहीं है।
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 (iv) के अनुसार वर-वधु प्रतिबंधित रिश्तेदार नहीं हो सकते। अधिनियम की धारा 3 (g) में प्रतिबंधित रिश्तेदारों को परिभाषित किया गया है। इस उपधारा के दूसरे भाग में किसी स्वशाखीय संतान या स्वशाखीय पूर्वज की पत्नी या पति से प्रतिबंधित रिश्ते के रूप में परिभाषित किया गया है। इस तरह किसी व्यक्ति की अपनी ही पुत्रवधु प्रतिबंधित रिश्तेदार है और उस के साथ हुआ विवाह वैध नहीं है। इस तरह के विवाहों को अधिनियम की धारा 11 के अनुसार शून्य माना गया है जो कि विवाह के किसी भी पक्षकार के आवेदन पर निरस्त किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने यमुनाबाई अनन्तराव आधव बनाम अनन्तराव शिवराम आधव (एआईआर 1988 सुप्रीम कोर्ट 644) में यह निर्णीत किया है कि किसी भी मामले में यदि किसी विवाह की वैधता का प्रश्न उठता है तो न्यायालय धारा पाँच के भाग (i), (vi) व (v) में वर्णित विवाहों को शून्य घोषित कर सकता है।
इस विदुर की मृत्यु के उपरान्त उस की परिवार पेंशन को यदि विभाग देने से मना कर दे और मामला न्यायालय में ले जाया जाए और न्यायालय में यह प्रश्न उठे कि वह वैध पत्नी नहीं थी इस कारण उसे परिवार पेंशन का अधिकार नहीं है तो न्यायालय यह निर्णय दे सकता है कि वह उन का विवाह शून्य होने के कारण वह वैध पत्नी नहीं है और उसे पेंशन पाने का अधिकार नहीं है।
विधुर को विदुर बना दिया.विधुर मतलब जिसकी पत्नी का देहांत हो गया हो. विदुर नीतिशास्त्र के विद्वान हुए हैं . ऐसी गलती की आपसे अपेक्षा नहीं रहती है.