संपत्ति तभी पुश्तैनी (सहदायिक) है यदि वह 17 जून 1956 के पू्र्व भी पुश्तैनी थी।
|प्रीतम ने गाँव-नारायणगढ, तह०-नरवाना, जिला- जींद, हरियाणा से समस्या भेजी है कि-
मैं (उम्र-57 वर्ष) एक अनपढ़ व्यक्ति हूँ मेरी पत्नी 3 साल पहले गुजर गई थी। मेरी एक गंभीर समस्या है कि मेरे खुद के नाम पूरे 4 एकड़ अर्थात 480 मरले खेत की जमीन है जो मुझे मेरे पिता से प्राप्त हुई थी अर्थात पुश्तेनी है। मैं ने अभी-अभी पटवारी से पूछा है कि मेरी जमीन मेरे पिता के पास 17 जून 1956 से पहले से है। मेरे 4 पुत्र हैं बड़ा पुत्र का व्यवहार परिवार के किसी भी सदस्य के साथ ठीक नहीं है। वह मेरे साथ झगड़ता रहता है। मैं उसे अपनी सम्पति(जमीन) में से कुछ भी उसे देना नहीं चाहता। अब आप मुझे इन 9 बातों का अलग-अलग स्पष्ट समाधान बताएं:- 1.मेरे जीवित रहते मैं अपने बड़े पुत्र को 4 एकड़ अर्थात 480 मरले में से कुछ भी नहीं देना चाहता। क्या मेरा बड़ा पुत्र मेंरे जीवित रहते मेरी जमीन में से कोई हिस्सा लेने का दावा कर सकता है जबकि मैं उसे कुछ भी नहीं देना चाहता और जमीन भी मेरे नाम है। 2. क्या मैं बड़े पुत्र को छोड़कर सारी जमीन जो 4 एकड़ अर्थात 480 मरले है शेष तीनों पुत्रों के नाम वसीयत कर सकता हूँ। 3. अगर मैं शेष तीनों पुत्रों के नाम वसीयत कर देता हूँ तो क्या मेरे मरने के बाद मेरा बड़ा पुत्र कोर्ट के माध्यम से अपने हक लेने का कोई दावा कर सकता है। 4. अगर वो दावा करता है तो कोर्ट उसे उसका कितना हक दिला सकता है कृपया एकड़ या मरले में बताएं या कोर्ट के माध्यम से भी उसे कुछ नहीं मिल सकता। 5.कोई ऐसा तरीका या सुझाव बताओ ताकि मेरे बड़े पुत्र को मेरे मरने के बाद मेरी पूरी जमीन में से बिल्कुल भी हिस्सा न मिले। 6. मेरी पत्नी मर चुकी है क्या अब उसका भी मेरी जमीन में कोई हिस्सा है? अगर है तो वो किसके पास माना जायेगा? 7. अगर मेरी पत्नी का हिस्सा मेरे पास माना जाये तो क्या मैं उस हिस्से को किसी एक पुत्र को वसीयत कर सकता हूँ। दूसरे पुत्र कोर्ट के माध्यम से उस हिस्से में से कुछ ले सकते हैं या नहीं। 8. क्या मुझे सारी जमीन बेचने का हक है। 9. अगर मैं सारी जमीन बेचना चाहूँ तो क्या मेरा बड़ा पुत्र उसमें कोई रुकावट डाल सकता है जबकि सारी जमीन मेरे नाम है। 4 नं. बात का जवाब एकड़ या मरले में दें। कृपया इन सभी 9 बातों का अलग-अलग स्पष्ट समाधान बताएं। आपसे हाथ जोड़कर विनती है कि समस्या को गम्भीरता से लेते हुए जरुर से जरुर और जितना जल्दी हो सके समाधान बताएं।
समाधान-
आप ने जल्दी समाधान के लिए लिखा है। तीसरा खंबा की यह सेवा निशुल्क है। तीसरा खंबा पर प्रतिदिन कितने ही लोगों की समस्याएँ आती हैं। हम कोशिश करते हैं कि सभी की समस्याओं का क्रम से समाधान प्रस्तुत करें। यह क्रम तभी टूटता है जब किसी को तुरन्त आवश्यकता हमें महसूस होती है। हम केवल एक समस्या का समाधान प्रस्तुत कर पाते हैं। आप की समस्या का समाधान भी हम आप के क्रम पर ही प्रस्तुत कर रहे हैं। क्यों कि हमें महसूस नहीं हुआ कि आप का समाधान तुरन्त प्रस्तुत करना आवश्यक है।
पटवारी ने आप को बताया है उक्त भूमि आप के पिता के पास 17जून 1956 के पहले से है। लेकिन आप के पिता को भूमि उन के पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई थी तो ही पुश्तैनी है, अन्यथा नहीं। यदि आप के पिता को यह भूमि किसी भी अन्य व्यक्ति से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई थी या उन्हों ने खुद खरीदी थी तो यह भूमि किसी भी प्रकार से पुश्तैनी नहीं है और कभी हो भी नहीं सकती। क्यों कि उक्त तिथि के उपरान्त कोई भी भूमि उत्तराधिकार के कारण सहदायिक नहीं हो सकती। इस कारण पहले आप यह तय करें कि आप की भूमि पुश्तैनी है अथवा नहीं।
यदि भूमि पुश्तैनी है तो आप के बड़े पुत्र का उस में हिस्सा है अन्यथा नहीं है। आप की पत्नी का देहान्त आप के जीवनकाल में हो चुका है इस कारण उसे तो आप की इस भूमि में कोई हिस्सा प्राप्त ही नहीं हुआ उस का कोई हिस्सा नहीं है।
आप के बड़े पुत्र को कभी भी कोई भी मुकदमा प्रस्तुत कर दावा करने से रोका नहीं जा सकता। लेकिन यदि उक्त भूमि पुश्तैनी नहीं है तो उस के सारे दावे बेकार जाएंगे। लेकिन यदि पुश्तैनी है तो वह उस का हिस्सा प्राप्त कर सकता है।
यदि आप की भूमि पुश्तैनी है तो भी उस में आप का खुद का जो हिस्सा है उसे आप वसीयत कर सकते हैं। इस से आप के जीवनकाल के उपरान्त आप का जो हिस्सा है वह उन्हें ही नहीं मिलेगा जिस के नाम आप वसीयत करेंगे। जिन के नाम नहीं करेंगे वे उस से वंचित हो जाएंगे।
यदि भूमि पुश्तैनी नहीं है तो आप सारी भूमि की वसीयत कर सकते हैं। जिस में आप अपने किसी पुत्र को या सभी पुत्रों को वंचित करते हुए किसी भी व्यक्ति को अपनी संपत्ति वसीयत कर सकते हैं। भूमि के पुश्तैनी न होने पर आप सारी भूमि विक्रय भी कर सकते हैं। कोई उस में बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता। यदि कोई कोशिश करेगा तो भी वह नाकाम हो जाएगी।
संपत्ति पुश्तैनी होने की स्थिति में एकड़ या मरले का हिसाब केवल उन तथ्यों के आधार पर नहीं बताया जा सकता जो यहाँ आप ने बताए हैं। उन के लिए यह भी देखना होगा कि आप के पिता के जीवित रहते आप के बच्चों में कितने जन्म ले चुके थे और कितने बाद में। इस कारण इस समस्या के हल के लिए आप को स्थानीय वकील से संपर्क करना चाहिए।
श्री मान मेरा जो मकान है उसकी रजिस्ट्री दादाजी के नाम से और वह उन्होंने ही खरीदी थी,उनका निधन होने के बाद मेरी दादी के नाम पर नगर पालिका में नामान्तरण हो गया ,मेरि दादी के तिन पुत्र और १ पुत्री है इन सभी का विवाह हो चूका है अब मेरी दादी चाहती है की वह पुरे मकान की वसीयत १ हे पुत्र के नाम करना चाहते है क्या यह संभव है
महोदय जी
सादर प्रणाम, १७ जून १९५६ के पूर्व की संपत्ति ही सहदायिक होगी इस संदर्भ में मान. उच्चतम न्याया लय का कोई द्रृष्टांत है क्या ? यदि हो तो बताने की कृपा करें।
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१.सर महिलाओ का हक पैत्रिक संपत्ति मैं रहता हैं या जो पिता खुद से खरीदते उसमे भी रहता हैं
२.और इसमे कोई उम्र का बंधन रहता हैं क्या
३.अगर पिता ज़िंदा हैं तो क्या संपत्ति मैं हक मिल सकता हैं या पिता के मरने के बाद मिलेगा
अनपढ़ व्यक्ति के लिए सब से बेहतर है कि वह अपनी वसीयत तैयार करवा कर उसे पंजीकृत करवा ले, और जब वह पंजीयन अधिकारी के सामने जाए तो पंजीयन अधिकारी से कहे कि पंजीकृत करने के पहले उसे पढ़ कर सुना दी जाए।
तीसरा खंबा का पिछला आलेख है:–.पुश्तैनी कृषि भूमि के रिकार्ड की प्रमाणित प्रतिलिपियाँ प्राप्त करें तभी आगे उपाय संभव है।
महोदय
1. क्या वसीयत के दोनों गवाह पढे-लिखे होने चाहिए क्योंकि वसीयत करवाने वाला खुद अनपढ़ है ?
2. ये बताएं की अनपढ़ आदमी अपनी वसीयत की वीडियो कैसे बनवायेगा क्योंकि वो तो उस वसीयत को पढ़ भी नहीं साकता। या फिर कोई दूसरा तरीका है।
3. वसीयत मेँ जो 2 गवाह चाहियें क्या वे दोनों सगे भाइयों के लड़के हो सकते हैं या नहीं। जबकि वसीयत तो खुद के बेटो के नाम ही करवानी है।
कृपया बताने का कष्ट करेँ।
धन्यवाद !
सुदेश
मोब. नं.-09728733980
महोदय जी
हरियाणा मेँ मरब्बाबंदी/चकबंदी 1962 -63 मेँ हुई थी। कृपया ये बताएं कि अगर प्रीतम के दादा ने ये 4 एकड़ जमीन हरियाणा में जब मरब्बा बंदी/चकबंदी हुई थी जब ली हो तो फिर आज इस जमीन को पुश्तैनी माना जायेगा या नहीं ।
१७ जून १९५६ और उस के बाद खऱीदी गई कोई भी संपत्ति पुश्तैनी नहीं हो सकती, यदि वह किसी पुश्तैनी (सहदायिक) संपत्ति की आय से न खरीदा गया हो।
तीसरा खंबा का पिछला आलेख है:–.पुश्तैनी कृषि भूमि के रिकार्ड की प्रमाणित प्रतिलिपियाँ प्राप्त करें तभी आगे उपाय संभव है।
Sir hum jis makan me rahte hai wo mere pita ko mere dadaji se prapt hua hai hum iss makan me 24 sal se rah rahe hain ab mere bhtije ne mere pita se makan apne nam kara liya.bhatija makan bechna chahta hai aur hume ghar khali karne ki dhamki de raha hai plz bataiye ki hum kya kar skte hai.
महोदय
ये बताएं की अनपढ़ आदमी अपनी वसीयत की वीडियो कैसे बनवायेगा क्योंकि वो तो उस वसीयत को पढ़ भी नहीं साकता। या फिर कोई दूसरा तरीका है। कृपया बताने का कष्ट करेँ।
धन्यवाद !
महोदय जी
कृपया ये बताएं कि अगर प्रीतम के दादा ने ये 4 एकड़ जमीन हरियाणा में जब मरब्बा बंदी/चकबंदी हुई थी जब ली हो तो फिर आज इस जमीन को पुश्तैनी माना जायेगा या नहीं ।
हमें नहीं पता कि हरियाणा में मरब्बाबंदी या चकबंदी कब हुई थी?
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.गलत नामान्तरण आदेश के विरुद्ध अपील प्रस्तुत करें।
१.महोदय वर्तमान समय मे पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति किसे कहेंगे
२.वर्तमान समय मे पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति की परिभाषा क्या है
महोदय आपको नही लगता कि परंपरागत हिन्दू (मिताक्षर) विधि कानून सही था
4. कोई पुत्र अगर ताक़तवर हो, वह पिता को खुश कर पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति अपने नाम करवा लें, बाकी सभी पुत्र संपत्ति से बंचित हो
शुक्ल जी, एक तो पुश्तैनी संपत्तियाँ समाप्त होती जा रही हैं। जो हैं उन्हें एक पुत्र अपने नाम लिखवा तो सकता है लेकिन वह उस की हो नहीं जाती। पुश्तैनी संपत्ति में कोई भी सिर्फ अपने हिस्से को वसीयत कर सकता है। शेष को नहीं।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.गलत नामान्तरण आदेश के विरुद्ध अपील प्रस्तुत करें।
महोदय मै आपका दैनिक पाठक हू
१. आपको नही लगता कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६ का दुरुपयोग हो रहा है
२. लोग इसका उपयोग कर अपनी दुश्मनी निकाल रहें है
३.कोई पुत्र अगर कमजोर हो, उसे पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति से बंचित किया जा सकता है.
आप से पूरी तरह सहमत हूँ। लगभग सभी कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है। उस में विशेष रूप से राजस्व अदालतें शामिल हैं। वहाँ भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। यहाँ तक कि फैसलों की नीलामी हो जाती है। जो अधिक बोली लगाए उस के पक्ष में फैसला कर दिया जाए। कृषि भूमि के मामले में कब्जा और हर साल उस से होने वाली आय महत्वपूर्ण है। इस कारण अधिकारी न होते हुए भी व्यक्ति कब्जा बनाए रखने के लिए कुछ भी करता है। वह हर साल होने वाली आय के आधे तक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा देता है क्यों कि वह जानता है कि आधा भी उसे मुफ्त मिल रहा है। वास्तविक अधिकारी लगातार मुकदमे में बरबाद होता रहता है।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.गलत नामान्तरण आदेश के विरुद्ध अपील प्रस्तुत करें।
bahut sahi hai