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संपत्ति में अपना अधिकार कैसे प्राप्त करें?

eviction of houseसमस्या-

रनबीर सिंह रमन ने दिल्ली से अपनी समस्या भेजी है-

मैं दिल्ली में निवास करता हूं लेकिन समस्या हमारी करनाल (हरियाणा) मे स्थित कोठी की है जिसकी कीमत इस समय लगभग तीन करोड़ रुपये है।

  1. हम दो भाई और एक बहन हैं।बहन हममे सबसे बड़ी और मै सबसे छोटा हूँ।उपरोक्त मकान पिताजी की स्वअर्जित संपत्ति है।मेरे बडे भाई के दो विवाहित बेटे हैं।बहन की भी दो संतान हैं दोनो विवाहित हैं।उपरोक्त मकान मे बडे भाई का बडा बेटा उसकी पत्नी और दो छोटे बच्चे मेरे पिताजी के साथ रह रहे थे।बडा भाई पानीपत मे अपनी पत्नी और छोटे बेटे के साथ रह रहा था।हमारी बहन अपनी ससुराल सोनीपत मे रह रही है।
  2. सन 2005 मे मेरे पिताजी को ब्रेन अटैक हुआ 20 दिन दिल्ली जयपुर गोल्डन अस्पताल मे उनका इलाज चला।उन्हे डिस्चार्ज तो कर दिया गया किन्तु उनकी मानसिक हालत तत्पश्चात सामान्य नहीं रही।वे वापिस करनाल चले गए।अब हालात का फायदा उठाकर बडे भाई के बडे लडके की पत्नी ने षडयंत्र रच डाला।उसने उपरोक्त मकान की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली।पानीपत रह रहे मेरे बडे भाई को इसकी पूरी जानकारी थी।यह रजिस्ट्री सन् 2006 मे कराई गई।बड़ा भाई चुपचाप संतुष्ट इसलिए बैठा रहा क्योंकि हक तो मेरा और बडी बहन का ही मारा जा रहा था।
  3. फरवरी 2010 मे भाई के बडे बेटे की पत्नी ने अपने ही पति को घर से बाहर करने की धमकी दी और उपरोक्त मकान बेचकर अपने मायके जाने की योजना बनाई।बेटा भागकर पानीपत से अपने मां-बाप और छोटे भाई को करनाल ले आया।ये सभी कोठी के ग्राउंड फ्लोर पर काबिज हो गए बहू के खिलाफ मुक़दमे दायर कर दिए।मुझे और मेरी बड़ी बहन को कुछ नहीं बताया गया।हम अनभिज्ञ ही बने रहे क्योंकि हमारा बडे भाई के पास कोई आना जाना नही था।
  4. हमारे पिताजी की मृत्यु जुलाई 2013को हो गई हम सभी क्रिया-अंतेषटि मे शामिल हुए लेकिन घटना क्रम से अंजान रहे।तीन महीने पहले करनाल सत्र न्यायालय से सममन आया तो परत-दर-परत भेद खुला जो इस प्रकार है :
    1. बडे भाई ने अपनी पत्नी द्वारा अपनी पुत्रवधू के खिलाफ Stay के Permanent injunction का केस मार्च 2011 मे डाला जो इस समय Decide होने की stage मे है।
    2. दूसरा केस बडे भाई ने अपनी पुत्रवधू के खिलाफ डाला जिसमे धोखे से उपरोक्त मकान की रजिस्ट्री एक 75 साल के वृद्ध मानसिक असंतुलित आदमी से बिना किसी भुगतान के करा ली गई जिसे खारिज किया जाए।तीन महीने पहले अदालत ने रजिस्ट्री को उपरोक्त ग्राउंड पर Null and void घोषित कर दिया है जिसकी अपील अब उनकी पुत्रवधू ने Additional Sessions Judge की अदालत मे कर दी है।
    3. जब मैने और बडी बहन ने अपना हक मांगा तो बडे भाई का तमाम परिवार एक सुर मे हमें डराने धमकाने लगा।बड़े भाई ने हमे बताया कि उसने हमारे पिताजी से ऐसी रजिस्टर्ड वसीयत बनवा रखी है जिसमे साफ लिखा है कि अगर बड़ा भाई उपरोक्त मकान का केस जीतता है तो यह संपत्ति केवल उसे ही मिले अर्थात मेरा और बडी बहन का इसमें कोई हिस्सा नहीं होगा।बडा भाई हम दोनों को कह रहा है कि हमे कुछ भी मिलने वाला है या तो कोठी उसकी पुत्रवधू की रहेगी या वसीयत की रूह से उपरोक्त कोठी का मालिक वह खुद रहेगा।कोठी पर कब्जा बडे भाई के परिवार का है वे मुझे और बहन को अपीलों में या वसीयत के जंजाल में उलझाए रखेगें मकान तो उनके ही कब्जे मे है।

आपसे मेरी हार्दिक प्रार्थना है कि आप हमारा मार्गदर्शन करें कि किस प्रकार हम अपना कानूनन हक ले सकते हैं।इसकी अपील कहाँ तक हो सकती है ।मुकदमे दायर करने के बाद ऐसी और रजिस्ट्री होने के बाद बनवाई गई इस वसीयत की क्या कानूनी हैसियत है ।क्या हम दोनों को मुकदमों के चलने के दोरान इस संपत्ति मे अंतरिम राहत का भी कोई कानूनी प्रावधान है या नहीं।

समाधान-

प की करनाल (हरियाणा) स्थित कोठी आप के पिताजी की स्वअर्जित संपत्ति है। यदि इस संपत्ति को आप के पिताजी ने किसी को दान या विक्रय के माध्यम से हस्तान्तरित नहीं किया हो और पिता जी ने इस की कोई वसीयत भी नहीं की हो तो यह हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-8 के अनुसार अनुसूची-1 के अनुरूप उत्तराधिकार में मिलेगी। आप की माता जी नहीं हैं इस कारण यह उत्तराधिकार आप को व आप के बड़े भाई व बहिन को समान रूप से प्राप्त हो चुका है। और आप तीनों में से प्रत्येक इस संपत्ति कोठी के 1/3 हिस्से के अधिकारी हैं। संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ है इस कारण से यह आप तीनों की संयुक्त संपत्ति है।

र्तमान में स्थिति यह है कि आप के बड़े भाई की पुत्रवधु ने आप के पिता जी से उक्त संपत्ति की रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली। पिता जी के देहान्त के बाद पुत्रवधु ने आप के बड़े भाई और अपने पति को उक्त भवन से निकाल कर उस भवन को बेचना चाहा। तब आप के बड़े भाई ने दो मुकदमे किए। एक मुकदमा उक्त मकान को बेचने से रोकने के लिए स्थाई निषेधाज्ञा के लिए किया और दूसरा मुकदमा उस के नाम मकान के हस्तान्तरण की जो रजिस्ट्री थी उस के निरस्तीकरण के लिए किया।

क्त रजिस्ट्री को केवल न्यायालय की डिक्री से ही निरस्त कराया जा सकता था इस के लिए आप के बड़े भाई ने मुकदमा किया और उन्हें सफलता प्राप्त हो गई। जिस की आप के बड़े भाई की पुत्रवधु ने अपील की हुई है। अब आप को तथा आप की बहिन को उस संपत्ति का हिस्सा केवल बंटवारे के माध्यम से प्राप्त हो सकता है। लेकिन आप के बड़े भाई का कहना है कि उन्हों ने आप के पिता से अपने नाम वसीयत करवा रखी है।

प के बड़े भाई ने जो मुकदमे उन की पुत्रवधु के विरुद्ध किए हैं उन मुकदमों में आप को और आप की बहिन को आप के भाई के दावों का अन्त तक समर्थन यह कहते हुए करना चाहिए कि उक्त संपत्ति आप के पिता की है और उन की मृत्यु के बाद आप के बड़े भाई, आप की बहिन और आप उक्त संपत्ति के संयुक्त स्वामी हैं। यदि उक्त मुकदमों में कहीं भी आप के बड़े भाई वसीयत का उल्लेख करते हुए उस संपत्ति का स्वयं को स्वामी बताते हैं तो आप को यह कहते हुए कि आप दोनों को ऐसी किसी वसीयत की जानकारी नहीं है और आप के भाई ने भी अब तक उस का उल्लेख नहीं किया है इस कारण ऐसी वसीयत का कोई अस्तित्व नहीं था और ऐसी वसीयत फर्जी है, उक्त कथन का विरोध करना चाहिए।

क्त संपत्ति पर आप का और आप की बहिन का भौतिक कब्जा नहीं है। जिसे प्राप्त करने का एक मात्र उपाय यह है कि आप उस के बंटवारे का दावा करें जिस में अपने बड़े भाई, उन के पुत्र व पुत्रवधु तथा आप की बहिन को प्रतिवादी के बतौर पक्षकार बनाएँ। बंटवारे के दावा करने के लिए कोई लिमिटेशन नहीं है। यह आप जब चाहें अपनी सुविधा के अनुसार कर सकते हैं।

बंटवारे का मुकदमा तो जब तक चलेगा चलेगा। उस की अवधि को कम नहीं किया जा सकता। आप की मूल समस्या यह है कि जब तक मुकदमा चलेगा उस का कोई लाभ आप को प्राप्त नहीं होगा जब कि आप के बड़े भाई उन का पुत्र व पुत्रवधु उस पर कब्जा रखे रहेंगे। लेकिन आप बंटवारे के मुकदमे में उक्त संपत्ति के लिए रिसीवर नियुक्त करने का आवेदन प्रस्तुत करें जो कि उक्त संपत्ति की इस तरह देखभाल करे जिस से उक्त संपत्ति का पूरा लाभ उस के वास्तविक स्वामियों को प्राप्त हो सके।

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