सहदायिक (पुश्तैनी) संपत्ति की वर्तमान परिभाषा
बीजी शुक्ला ने भोपाल, म.प्र. से समस्या भेजी है कि-
मैं आपका दैनिक पाठक हूँ। मैं आपसे यह पूछना चाहता हूँ कि क्या- १. आप को नहीं लगता कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६ का दुरुपयोग हो रहा है। २. लोग इसका उपयोग कर अपनी दुश्मनी निकाल रहे हैं। ३.कोई पुत्र अगर कमजोर हो, उसे पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति से वंचित किया जा सकता है। ४. कोई पुत्र अगर ताक़तवर हो, वह पिता को खुश कर पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति अपने नाम करवा ले, बाकी सभी पुत्र संपत्ति से बंचित हों। ५. आपको नही लगता कि परंपरागत हिन्दू (मिताक्षर) विधि कानून सही था। ६. वर्तमान समय मे पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति किसे कहेंगे ७.वर्तमान समय मे पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति की परिभाषा क्या है?
समाधान-
आप ने अपनी कोई समस्या इस प्रश्न में नहीं उठाई है। लेकिन कानून की उपयोगिता और दुरुपयोग के संबंध में अपने प्रश्न पूछे हैं। हर कानून का दुरुपयोग होता है तो हिन्दू उत्तराधिकार कानून का भी हो सकता है और हो रहा है। कानून का दुरुपयोग होना और कानून का सही गलत होना दो अलग अलग बातें हैं। कानून के दुरुपयोग को रोका जा सकता है, यदि उस के लिए सामाजिक रूप से प्रयास किए जाएँ। लेकिन कानून के सही और गलत का निर्णय करना इतना आसान नहीं है। एक ही कानून कुछ व्यक्तियों के दृष्टिकोण से गलत हो सकता है और कुछ लोगों के दृष्टिकोण से सही हो सकता है। दुनिया के सभी झगड़ों के पीछे व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार है। यदि व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार समाप्त कर दिया जाए तो इस दुनिया के सारे झगड़े मिट सकते हैं। इस कारण व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार देने वाले सारे कानून एक नजर में गलत हैं। यही स्थिति हिन्दू उत्तराधिकार व्यक्तिगत संपत्ति और सहदायिक संपत्तियों के संबंध में है। किसी कानून के सही गलत होने या उस के दुरुपयोग के संबंध में यहाँ विचार करना उपयुक्त नहीं है उस के लिए बहुत से दूसरे सार्वजनिक मंच हैं वहाँ इन पर विचार किया जा सकता है।
हिन्दू उत्तराधिकार और सहदायिकियों के निर्माण से संबंधित पुराना कानून बदल दिया गया है। उसे नई परिस्थितियों के अनुरूप बनाने के प्रयत्न लगातार किए गए हैं। सहदायिकियों में स्त्री को कोई अधिकार प्राप्त नहीं था। नए कानूनों ने स्त्री के प्रति सदियों से हो रहे अन्याय को समाप्त करने का प्रयत्न कियाष उन्हें पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार दिए और उत्तराधिकार का अधिकार दिया। इस कारण बदलावों को गलत नहीं कहा जा सकता। समाज आज तक भी उन्हें लागू नहीं करवा पाया। आज भी पुत्रियों से अपेक्षा की जाती है कि वे पुराने कानून के अनुसार अपने माता पिता की संपत्ति में अपने अधिकारों का अपने भाइयों के हक में त्याग कर देंगी। वे नहीं करती हैं तो उस के लिए मार्ग निकाल लिए जाते हैं।
आप का प्रश्न है कि आज पुश्तैनी सहदायिक संपत्ति किसे कहेंगे वर्तमान में उस की सही परिभाषा क्या है? इस प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है।
17 जून 1956 से हिन्दू उत्तराधिकार कानून प्रभाव में आने के साथ ही नई सहदायिक संपत्तियों का अस्तित्व में आना बंद हो गया है। पुरानी हिन्दू विधि के अनुसार सहदायिकी निर्मित नहीं की जा सकती वह केवल कानून से अस्तित्व में आती है। अर्थात् यदि किसी पुरुष को उस को उस के तीन पीढ़ी तक के पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में कोई संपत्ति प्राप्त होती थी तो वह सहदायिकी हो जाती थी। अर्थात उस में उस के पुत्रों, पौत्रों और प्रपोत्रों का भी अधिकार होता था। यदि उस के पुत्र, पौत्र या कोई प्रपौत्र नहीं होता था तो बाद में जन्म लेते ही उस में उस का अधिकार उत्पन्न हो जाता था। लेकिन उक्त अधिनियम के प्रभाव में आने के बाद किसी भी पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार इस के अनुसार होने लगा। जिस में पुत्र, पुत्री, और माता को उत्तराधिकार प्राप्त हुआ था। लेकिन किसी पौत्र या प्रपौत्र को नहीं। उत्तराधिकार में प्राप्त यह संपत्ति उत्तराधिकारी की है। वह किसी को वसीयत, दान, विक्रय आदि कर सकता है।
इसी हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में यह प्रावधान था कि सहदायिक संपत्तियों का दाय इस कानून से होने के स्थान पर उत्तरजीविता के आधार पर होगा। इस कारण जो संपत्तियाँ उक्त कानून के प्रभाव में आने के पहले सहदायिक हो चुकी थीं वे सहदायिक संपत्ति बनी रहीं। लेकिन कोई भी नई संपत्ति सहदायिक नहीं हो सकती थी। इस कानून ने सहदायिक संपत्ति में कोई भी व्यक्ति अपने हिस्से को वसीयत करने का अधिकार भी दिया। अब यदि कोई व्यक्ति सहदायिक संपत्ति में अपने हिस्से को वसीयत कर देता है तो उस संपत्ति का वसीयत के अनुसार दाय होने के कारण वह संपत्ति सहदायिक नहीं रह जाती है। धीरे धीरे सहदायिक संपत्तियाँ कम होने लगीं। अब बहुत कम रह गई हैं। अन्ततः समाप्त हो जाएंगी।
आज सहदायिक संपत्ति वही है जो 17 जून 1956 के पहले किसी पुरुष को अपने पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त हो चुकी थी। उस सहदायिक संपत्ति में भी उक्त तिथि को या उस के उपरान्त किसी ने अपने हिस्से को वसीयत कर दिया हो तो वह हिस्सा सदैव के लिए सहदायिक संपत्ति से अलग हो चुका है वह सहदायिक संपत्ति का हिस्सा नहीं रह गया है। वर्तमान में यही सहदायिक संपत्ति की परिभाषा है।
की धारा ८८ के तहत घोषणा करवा सकती हैं क्या ? इस सन्दर्भ में केसर ला जरुर भेजे
ये कानून का पेचिंदगियो के आधार पर लाभ लेना चाहते ही