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सेवा प्रदाता के विरुद्ध सेवा समाप्ति का विवाद श्रम विभाग में उठाएँ।

THE_INDUSTRIAL_DISPUTES_ACTसमस्या-

पंकज कुमार ने पूसा, समस्तीपुर, बिहार से समस्या भेजी है कि-

मैं राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार के एक विभाग में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर संविदा के रूप में जनवरी 2014 से काम करना शुरू किया था। विश्वविद्यालय मुझे सर्विस प्रदाता द्वारा वेतन देता था जिसका नाम VANISYSTEM P. Ltd, 16 Vidhan Sabha Marg above Andhra Bank, Lucknow (U.P.) है। जनवरी से अक्टूबर 2014 तक मेरा वेतन मिला था. उसके बाद नवंबर का वेतन विभाग द्वारा 13 दिसंबर को VANI SYSTEM के खाता पर RTGS के द्वारा भेज दिया गया। (विभाग मेरा सैलरी कंपनी को RTGS के द्वारा भेजता उसके बाद कंपनी मेरे बैंक खाता पर भेजता था) 16 दिसंबर को मैंने फ़ोन से वेतन भेजने की बात कंपनी से की तो कम्पनी का अकाउंटेंट मीनू यादव मुझे फ़ोन पर कहा की ये तुम्हारे बाप का कंपनी नहीं जो तुम कहो और मैं भेज दूँ। मैंने उनसे कहा की मैं विश्वविद्यालय के कुलपति से शिकायत करूँगा तो उन्हें इस बात का बुरा लगा। उन्होंने मुझे मेल किया कि तुम्हारा टर्मिनेशन लेटर भेज रही हूँ तुम्हारे ऑफिसर को। मैंने उनको मेल के द्वारा कहा कि अगर आप की मर्जी यही है तो मैं काम छोड़ दूंगा लेकिन आप मेरा वेतन तो दे दीजिये। लेकिन उन्होंने मेरा वेतन नहीं दिया और काम से भी हटा दिया। अब किसी लड़की को उस जगह पर रखा जा रहा है। मेरे साथ गेम खेला गया है। कंपनी बहाना बना रही है कि इस ने मुझे गाली दिया इसलिए इसको हटाया। जब कि मैंने कोई गाली नहीं दी। मुझे जो अनुबंध पत्र दिया गया था जिस में लिखा हुआ है की विभाग से शिकायत मिलने पर बिना सूचना के हटा दिया जाएग़I परन्तु विभाग से कोई शिकायत नहीं गया है। मैं बहुत गरीब और बाल बच्चेदार हूँ मेरी पारिवारिक स्थिति काफी ख़राब है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ जिस से मुझे वही काम भी मिल जाये और वेतन भी मिल जाये। मैं बहुत तनाव में हूँ और लगता है कि गरीबी से तंग आकर मैं कोई गलत काम ना कर बैठूँ। कृपया मेरी मदद करें।

समाधान-

प को यह साफ समझ लेना चाहिए कि आप किसी भी तरह से विश्वविद्यालय के कर्मचारी नहीं थे। विश्वविद्यालय तो सेवा प्रदाता से सेवाएँ प्राप्त करता है जिस के लिए वह सेवा प्रदाता को उन की आपसी संविदा के आधार पर भुगतान करता है। आप का नियोजक सेवा प्रदाता था, वह आप को वेतन का भुगतान करता था तथा आप के नियोजक की ओर से प्रदान की गई सेवाओँ के अन्तर्गत आप विश्वविद्यालय में काम करते थे। आप का विश्वविद्यालय से और कोई लेना देना नहीं था।

प गरीब हैं इस से किसी को कोई लेना देना नहीं है। विश्वविद्यालय यदि खुद कर्मचारी रखता है तो उन्हें वेतनमान में वेतन देना होता है, ऐसे कर्मचारियों को संविधान के अन्तर्गत सुरक्षा प्राप्त होती है तथा अनेक सुविधाएँ देनी होती हैं जो विश्वविद्यालय को बहुत महंगी पड़ती हैं। इतना बजट सरकार उन्हें उपलब्ध नहीं कराती, न ही स्थाई पद उपलब्ध कराती है। वैसी स्थिति में किसी सेवा प्रदाता से इस तरह सेवाएँ प्राप्त करना उन्हें बहुत सस्ता पड़ता है।

प सेवा प्रदाता के कर्मचारी थे। विश्वविद्यालय और आप के सेवा प्रदाता दोनों के कार्य उद्योग के रूप में परिभाषित हैं। इस कारण आप के सेवा प्रदाता को आप को औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एफ की पालना में सेवा से पृथक करने के पूर्व नोटिस या नोटिस वेतन देना चाहिए था तथा मुआवजा भी देना चाहिए था। आप से कनिष्ट कर्मचारी भी आप के सेवा प्रदाता के यहाँ काम कर रहे होंगे। उन्हें सेवा में रखते हुए आप को सेवा से पृथक किया गया है इस तरह धारा 25 जी की भी पालना नहीं हुई है। आप को हटा कर एक नए कर्मचारी को नियोजन दे दिया गया है इस तरह धारा 25 एच की पालना भी नहीं हुई है।

स तरह आप की सेवा समाप्ति आप की छंटनी है जो धारा 25 एफ व जी की अनुपालना के अभाव में अवैध है। साधारणतया आप पिछले पूरे वेतन सहित पुनः सेवा प्रदाता की सेवा में लिए जाने के अधिकारी हैं। 25 एच की पालना न करने के कारण भी आप सेवा में लिए जाने के अधिकारी हैं। इस के लिए आप को स्थानीय श्रम विभाग में अपना विवाद उठाना चाहिए। श्रम विभाग के समझौता अधिकारी आप और आप के सेवा प्रदाता के बीच तुरन्त समझौता वार्ता आरंभ कराएंगे और आप को पुनः सेवा में रखवाने का प्रयास करेंगे। समझौता वार्ता का 45 दिन में कोई परिणाम न निकलने अथवा असफल रहने पर आप सीधे श्रम न्यायालय में अपना विवाद प्रस्तुत कर सकते हैं। इस के साथ ही बकाया वेतन के लिए भी आप को वेतन भुगतान अधिनियम के अंतर्गत अपना दावा प्राधिकारी वेतन भुगतान अधिनियम के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।

स तरह के विवादों का निर्णय होने में कई वर्ष लग जाते हैं क्यों कि हमारे यहाँ श्रम न्यायालय जरूरत से बहुत कम हैं। श्रम न्यायालय के निर्णय के बाद भी पुनः नौकरी प्राप्त करना इतना आसान नहीं होता। इस कारण आप को अपना जीवन यापन करने के लिए कोई न कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी। आप अपना विवाद उठाइए और अवश्य लड़िये। एक नौकरी चले जाने से जीवन हार जाना ठीक बात नहीं है। जीवन सदैव अनमोल है, चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो। कभी कभी ऐसा भी होता है कि ऐसी टटपूंजिया नौकरी छूटने पर प्रयास करने पर व्यक्ति अच्छे अवसर प्राप्त कर लेता है या किसी अच्छे धंधे या प्रोफेशन में चला जाता है और कुछ ही वर्षों में यह टटपूंजिया नौकरी बेकार लगने लगती है।

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