स्वतंत्र स्त्री पर कानून का कोई जोर नहीं, तब किसी पुरुष का कैसे हो सकता है?
|हरीश शिवहरे ने ब्यावरा, जिला राजगढ़, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरी पत्नी रजनी मालवीया से मैं ने 8 -10. -2005 में नोटरी द्वारा 100 रु. के स्टाम्प पर लिखित रूप से विवाह संविदा किया गया था जिसे उस स्टाम्प पर गन्धर्व विवाह के नाम से लिखित किया गया था। 2005 के पहले मेरी पत्नी रजनी मालवीय पूर्व में कान्हा वर्मा के साथ पत्नी के रूप में निवास कर रही थी। परन्तु उन दोनों का कोई हिन्दू रीति रिवाज से विवाह संपन्न नहीं हुआ था, बस लिव इन रिलेशनशिप के तहत रह रहे थे। कान्हा वर्मा से रजनी मालवीया को कोई संतान भी नहीं थी। इसके बाद रजनी मालवीया और मुझ हरिश शिवहरे के मध्य प्रेम संबध स्थापित हुए और हम दोनों ने विवाह करने का फैसला किया। २००५ में हम तीनो पक्षों के बीच 100 के स्टाम्प पर एक समझौता हुआ जिस में कान्हा वर्मा ने रजनी मालवीय को मुझ हरीश शिवहरे के साथ विवाह करने की सहमति प्रदान की। जिस का 100 रु. के स्टाम्प पर नोटरी से प्रमाणित संविदा निष्पादित किया गया कि जिस मे हम तीनों पक्षकार हैं। कान्हा वर्मा रजनी मालवीया से विवाह विच्छेद होना स्वीकार करता है, उसी लेख पत्र में मेरे साथ रजनी मालवीया का गन्धर्व विवाह होना स्वीकार किया जाता है। कान्हा वर्मा द्वारा यहाँ भी लिखित किया जाता है कि हम दोनों के विवाह से और साथ रहने से उसे कोई आपत्ति नहीं होगी और नहीं किसी प्रकार की कोई पुलिस कार्यवाही की जायेगी, न ही किसी प्रकार का हम दोनों रजनी और हरीश के विरूद्ध न्यायालय में कोई वाद प्रस्तुत किया जाएगा। 8 -10 -2005 से ही रजनी मालवीय मुझ हरीश शिवहरे के साथ पत्नी के रूप में रह रही थी और मुझसे रजनी मालवीय को 11 -12 -2012 को एक बेटी का जन्म हुआ। अभी तक सब कुछ ठीक चल रहा था, पर बीच में कुछ बातो को लेकर हम दोनों में झगड़े होने लगे और वाद विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई। झगड़े जब ज्यादा बढ़ गए तब रजनी द्वारा मुझे बार बार आत्महत्या करने की धमकी दी जाने लगी और तलाक की मांग करने लगी। दो से तीन महीने तक मेरे घरवालो और पड़ोसियों द्वारा समझाए जाने पर कुछ समय तक सब ठीक रहा। पर फिर से रजनी द्वारा मुझ से तलाक की मांग की जाने लगी। इस बात से परेशान होकर दिनाक 30 -11 -2013 को हम दोनों के मध्य एक 100 रु. के स्टाम्प पर एक समझौता तलाक को लेकर किया गया जिस में हम दोनों पक्षों की आपसी सहमति से तलाक होना स्वीकार किया गया। उक्त समझौते की नोटरी करायी गयी। इस के एक माह बाद तक रजनी मेरे साथ निवास करती रही। दिनांक 9 -01 -2014 को मुझ से जिद कर के मेरे बार बार मना करने पर भी रजनी भोपाल अनाथ आश्रम में केयर टेकर के रूप में काम करने चली गई। अभी वहीं निवास कर रही है और मेरी बेटी भी उसके पास है। अब मैं अपनी बेटी के भविष्य को लेकर काफी चिंतित हूँ। मैं अपनी बेटी को किसी भी तरह से अपने पास रख उसका पालन पोषण करना चाहता हूँ। लेकिन रजनी मुझे मेरी बेटी से मुझे मिलने भी नहीं देती, ना मुझे उसे देखने देती है। अनाथ आश्रम में मेरी बेटी का भविष्य क्या होगा यह सोचकर में दुखी हो जाता हूँ। इस बारे में मैं ने रजनी को कई बार समझाने का प्रयास किया कि वह सब कुछ भूलकर मेरे साथ रहे। हम दोनों मिलकर हमारी बेटी की परवरिश अच्छे से करेंगे। वह मानने को तैयार नहीं है, अब में अपनी बेटी को किस तरह से अपने पास रख सकता हूँ उस की परवरिश कर सकता हूँ ताकि उसका उज्जवल भविष्य हो। मैं अपनी बेटी को अपने पास और रजनी को भी अगर वो तयार हो जाती है तो रखना चाहता हूँ। मेरा मार्गदर्शन करें कि मैं किस तरह से अपनी बेटी की कस्टडी प्राप्त कर सकता हूँ और रजनी के साथ दाम्पत्य जीवन स्थापित कर सकता हूँ।
समाधान-
आप का मानना और कहना है कि रजनी का पहला विवाह विवाह नहीं था, अपितु एक लिव इन रिलेशन था। जिस से उसे कोई सन्तान नहीं हुई। फिर उसी रिलेशन के दौरान आप दोनों के बीच प्रेम विकसित हुआ और उस के साथी के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते के बाद रजनी आप के साथ आ कर रहने लगी।
जब उस का पहला विवाह नहीं था तो आप के साथ जो संबंध रजनी का है वह विवाह कैसे हो गया। आप पर हिन्दू विवाह विधि प्रभावी होती है और सप्तपदी के बिना विवाह को संपन्न नहीं माना जाता है। इस तरह आप का और रजनी का संबंध भी लिव इन रिलेशन ही हुआ।
रजनी एक स्वतंत्र स्त्री है। वह अपनी इच्छा से पहले अन्य व्यक्ति के साथ रही। जिस से उसे कोई सन्तान नहीं हुई। आप ने अपनी समस्या लिखने इस बात पर जोर दिया है। इस से प्रतीत होता है कि उस का आप के साथ सम्बन्ध बनाने में उस की माँ बनने की इच्छा की भूमिका अधिक थी। उस ने और आप ने किसी भी प्रकार के विवाद से बचने के लिए एक त्रिपक्षीय समझौता करना उचित समझा। आप की संन्तान प्राप्ति की इच्छा आप की समस्या में कहीं दिखाई नहीं देती। आप के साथ रहने के बाद भी उसे संन्तान की प्राप्ति 7 वर्ष बाद हुई। निश्चित रूप से देरी से संन्तान होने के बाद रजनी का झुकाव और प्रेम अपनी बेटी की तरफ चला गया और आप ने इसे अलगाव समझा। रजनी की पुत्री के कारण आर्थिक जरूरतें बढ़ गईं और आप के साथ जो समय वह देती थी वह कम हो गया। आप ने यह नहीं बताया कि रजनी आप के साथ रहते हुए भी कोई काम कर के कुछ कमाती थी या नहीं। पर मुझे लगता है कि वह भी कुछ न कुछ अर्थोपार्जन करती रही होगी। जिस में बेटी के जन्म के समय जरूर कुछ व्यवधान आया होगा। हमारी नजर में यही कारण रहे होंगे जिन्हों ने आप के बीच विवादों को जन्म दिया।
आप ने रजनी और आप के बीच विवाद का कारण नहीं बताया है और छुपाया है। इस का अर्थ है कि उन कारणों के पीछे आप का स्त्री पर संपूर्ण आधिपत्य का पुरुष स्वभाव अवश्य रहा होगा। पुत्री पर खर्चे के प्रश्न भी जरूर बीच में रहे होंगे। खैर, आप ने उन्हें बताए बिना समाधान चाहा है।
रजनी लगातार आप से अलग होने का प्रयास करती रही और आप अन्यान्य प्रयासों से उसे रोकते रहे। जिस में परिवार और पड़ौसियों द्वारा उसे समझाने का काम भी सम्मिलित था। लेकिन उस केबाद भी विवाद बना रहा। अर्थात आप ने विवाद को समाप्त करने का प्रयत्न नहीं किया। आप ने समझने का प्रयास ही नहीं किया कि रजनी आखिर आठ वर्षों के दाम्पत्य जीवन के बाद अपनी बेटी को ले कर अलग क्यों होना चाहती है। यदि आप उस बात को समझने का प्रयास करते और कुछ खुद को भी बदलने का प्रयास करते तो शायद रजनी आप को छोड़ कर नहीं जाती और पुत्री भी आप के पास बनी रहती।
रजनी जैसे समझौते के अन्तर्गत आप के साथ रहने आई थी वैसे ही समझौता कर के अलग हो गई। आप खुद भी जानते हैं कि उस पर आप का कोई जोर नहीं है। विधिपूर्वक हुए विवाह में भी पत्नी पर पति का इतना हक नहीं होता है कि वह उसे जबरन अपने साथ रख सके। अब आप को लगता है कि यदि किसी तरह बेटी को आप अपने साथ रख सकेंगे तो रजनी भी वापस लौट आएगी और बेटी के साथ रहने की इच्छा के कारण आप की सब बातों को उसे सहन करना होगा। रजनी एक स्वतंत्र स्त्री है उस पर आप का तो क्या कानून का भी कोई जोर नहीं है।
यह सही है कि बेटी आप की है लेकिन जितनी आप की है उतनी ही रजनी की भी है। संतान यदि पुत्र हो तो 5-7 वर्ष का होने पर पिता को उस की अभिरक्षा मिल सकती है वह भी तब जब कि बच्चे का हित उस में निहित हो। लेकिन बेटी की अभिरक्षा तो अत्यन्त विकट परिस्थितियों में ही पिता को मिल पाती है। आप के मामले में ऐसी कोई विकट परिस्थिति नहीं है कि बेटी की कस्टड़ी उस की माँ से उसे अलग करते हुए आप को मिल सके। आप जो अनाथ आश्रम का तर्क गढ़ रहे हैं कि वहाँ बेटी की परवरिश ठीक से न हो सकेगी। वह बहुत थोथा तर्क है। वह अनाथ आश्रम की निवासिनी नहीं है। बल्कि अनाथ आश्रम के केयर टेकर की बेटी है। अनाथ आश्रम के बच्चों का स्नेह और आदर भी उसे प्राप्त हो रहा होगा जो किसी भी स्थिति में आप के यहां प्राप्त नहीं हो सकता। रजनी की अनाथ आश्रम की केयर टेकर के रूप में इतनी आय है कि एक बेटी को पालने में वह समर्थ है। अनाथ आश्रम का नाम अनाथ आश्रम जरूर होता है लेकिन अनाथ आश्रम बनाए ही इस कारण जाते हैं कि अनाथ बच्चों को उचित संरक्षण मिल सके। वस्तुतः अनाथ आश्रम के बच्चे अनाथ नहीं रह जाते हैं।
आप यदि रजनी को वापस अपने साथ रहने को तैयार करना चाहते हैं तो कोई न्यायालय आप की कोई मदद नहीं करेगा। आप यदि चाहते हैं कि बेटी आप के साथ रहे तो केवल एक ही विधि हो सकती है कि रजनी स्वेच्छा से आप के साथ रहने को तैयार हो जाए। लेकिन यह कार्य असंभव दिखाई पड़ता है। क्यों कि अब रजनी के पास आश्रय भी है और रोजगार भी है। वह क्यों फिर से परतंत्रता में पड़ना चाहेगी। फिर जो स्त्री स्वतंत्रता का अर्थ समझ गई हो वह क्यों आप के अधीन रहना चाहेगी। उसे मातृत्व चाहिए था वह उसे मिल गया है। यदि उसे किसी पुरुष साथी का चुनाव करना होगा तो जो स्त्री अपनी स्वतंत्रता और मातृत्व की इच्छा के कारण एक पुरुष साथी को छोड़ कर आप के साथ संबंध बना सकती है वह अब किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध बनाना पसंद करेगी न कि आप के साथ।
आप अपनी बेटी के पिता हैं। आप चाहें तो रजनी को यह भरोसा दे कर उस से मिलने की युक्ति कर सकते हैं कि आप न तो रजनी के जीवन में उस की इच्छा के विरुद्ध प्रवेश करेंगे और न ही बेटी पर अपना अधिकार जमाएंगे। आप केवल इतना चाहते हैं कि साल में दो चार बार उस से मिल लें और कुछ समय उस के साथ बिता सकें।
it is advisable that you must compromise with Rajni because there is no law to bind emotionally some one to live with the husband your have to shut your mouth because independent lady does not consider emotion of the husband. economically sound lady always demoralise the husband