हिन्दू द्वारा दूसरा विवाह वैध नहीं लेकिन संतान वैध एवं पिता का उत्तराधिकारी है।
समस्या-
पाली, राजस्थान से नरेन्द्र ने पूछा है –
मेरे पिता अन्य पिछड़ी जाति के थे। उन्हों ने दो विवाह किये थे। एक विवाह तो अपनी ही जाति की लड़की से किया और दूसरा प्रेम विवाह मेरी माता से किया जो की अनुसूचित जाति की है| मेरे पिता मेरी माता (अनुसूचित जाति) से पहला विवाह इसलिए नहीं कर पाए क्यूँ की मेरी माँ अनुसूचित जाति की है और समाज से डर व परिवार वालों के विरोध के कारण मेरे पिता ने अपने ही समाज की लड़की से तो पहली शादी कर लेकिन दूसरी तरफ मेरी माता से भी प्रेम करते रहे। मेरी माता को अपनी दूसरी पत्नी मन से स्वीकार किया। मेरे पिता ने मेरी माता से दूसरा प्रेम विवाह विवाह विधिवत नहीं किया. मेरे माता-पिता ने बिना किसी को बताये चोरी-चुपके लिव इन रिलेशनशिप के तहत दोनों ने एक दूसरे को स्वीकार कर लिया था| मेरे पिता ने अपना अधिकतर जीवन अपनी पहली पत्नी के साथ बिताया। वे संयुक्त परिवार में रहते थे। पहली पत्नी से 5 संताने हैं और दूसरी पत्नी से एक संतान है।
मेरी माता और पिता के विवाह के कुछ समय बाद मेरा जन्म हो गया। मेरी सम्पूर्ण परवरिश मेरी माँ ने की। मेरे पिता ने अपने समाज से डर के कारण मुझे हमेशा दूर रखा मेरे पिता कभी कभी हमसे मिलने आ जाया करते थे। मुझे और मेरी माँ को कभी भी मेरे ताऊ जी, रिश्तेदारों के वैवाहिक कार्यक्रर्मों में नहीं ले जाते थे। इस विषय को लेकर मेरी माँ पिता जी के बीच कई बार लड़ाई झगड़ा भी हो जाता था। मेरे जन्म के बाद मेरे पिता से मेरी माता को ज्यादा सुख नहीं मिला। दोनों में कई बार कहा सुनी हो जाती थी। प्रेम धीरे धीरे कम होता गया। कई बार तो महिनों तक मेरे पिता हम से मिलने नहीं आते थे इस बीच मेरी माँ ने कड़ा संघर्ष कर मेरा भरण पोषण किया। अभी कुछ समय पूर्व मेरे पिता जी का देहांत हो गया। देहांत के स्थान/ समय जब मैं पिता जी की पहले पत्नी के घर पहुँचा तो समाज के कई लोगों को दूसरी पत्नी और उसके पुत्र की वास्तविक जानकारी हुई। देहांत के बाद मेरे पिता जी की पहली पत्नी के बच्चों अस्थि-विसर्जन के समय मुझे हरिद्वार भी नहीं ले गए।
मेरे पिता जी की अपनी पैतृक सम्पति पर पहली पत्नी और उसके 5 बच्चों ने अधिकार करके रखा है। मेरे नाम कुछ भी नहीं किया है। मैं वयस्क हो चुका हूँ और मेरी उम्र भी शादी के लायक हो चुकी है। मेरे जीवन की सम्पूर्ण परवरिश मेरी माँ ने की है। मैं अपना मातृ-ऋण माँ को अब अच्छा जीवन दे कर चुकाना चाहता हूँ। मैं आप से ये जानना चाहता हूँ कि…..
1. क्या मैं अपनी माता की जाति के आधार पर अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनवा कर राजस्थान सरकार में नौकरी के लिए आवेदन कर सकता हूँ| आवेदन करके परीक्षा उतीर्ण करने के बाद राजस्थान सरकार में नौकरी कर सकता हूँ?
2. क्या अपनी माता की जाति के आधार पर अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनाने के बाद मुझे अनुसूचित जाति की ही लड़की से विवाह करना अनिवार्य है? यदि विवाह हेतु मेरी बराबर की योग्यता की लड़की न मिलने पर क्या मैं ये विवाह पिता की जाति या फिर किसी अन्य जाति की लड़की से भी कर सकता हूँ?
3. क्या मैं और मेरी माँ पिता की सम्पति में अपना हक़ मांग सकते हैं?
समाधान-
सब से पहले तो आप ये समझें कि हिन्दू विवाह की अपनी पद्धति है। या तो वह परंपरा के अनुसार होना चाहिए या फिर सप्तपदी होना आवश्यक है। इस तरह आप की माता जी का आप के पिता के साथ विवाह नहीं हुआ था और वे आप के पिता की दूसरी पत्नी नहीं हैं। वे केवल लिव इन रिलेशन में थे। यदि विवाह हो भी जाता तो यह विवाह अवैध होता क्यों कि कोई भी हिन्दू एक पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह नहीं कर सकता। यदि करता है तो वह आरंभ से ही शून्य होता है। आप की माता जी ने कभी कानूनी रूप से उन की पत्नी होने का दावा भी नहीं किया। लेकिन आप के पिता और माता के संबंध से आप का जन्म हुआ है। इस कारण से आप अपने पिता की वैध संतान हैं।
आप अपनी माता जी के नाम से अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनवा सकते हैं क्यों कि आप की माता जी वैध रूप से किसी भी व्यक्ति की पत्नी नहीं थीं। फिर आप की माता जी को आप के पिता जी और उन के परिवार ने स्वीकार नहीं किया न ही आप को स्वीकार किया। इस कारण से भी आप की जाति अनुसूचित ही बनी रहे। यदि जाति प्रमाण पत्र बनाने वाला अधिकारी ऐसा प्रमाण पत्र बनाने से इन्कार करे तो आप उस के और राज्य सरकार के विरुद्ध रिट याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं जिस में ऐसा प्रमाण पत्र बनाने का आदेश दिया जा सकता है।
आप उक्त प्रमाण पत्र बन जाने पर उस के आधार पर अनुसूचित जाति के आरक्षित कोटे की नौकरी प्राप्त कर सकते हैं।
जहाँ तक आप के विवाह का प्रश्न है आप किसी भी जाति की हिन्दू लड़की से हिन्दू रीति से विवाह कर सकते हैं। गैर हिन्दू लड़की से भी विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह कर सकते हैं। यदि विवाह के उपरान्त आप की पत्नी आप के साथ आ कर रहती है तो उसे भी अनुसूचित जाति की ही माना जाएगा और वह अनुसूचित जाति के कोटे के आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकेगी।
आप के पिता की दो तरह की संपत्ति हो सकती है। एक संपत्ति तो वह जो उन के खुद के नाम है। दूसरी संपत्ति वह जो उन के परिवार की संयुक्त संपत्ति है जिस में आप के पिता को हिस्सा प्राप्त था। यह दूसरे प्रकार की संपत्ति सहदायिक या पैतृक संपत्ति है। इस में केवल वैध पत्नी की संतानों का ही अधिकार है। इस कारण से उस में आप का कोई अधिकार नहीं है। आप की माता जी का तो बिलकुल नहीं है। लेकिन जो संपत्ति आप के पिता जी के नाम से है उस में आप के पिता की वैध पत्नी, पिता जी की माता यदि जीवित हो, वैध पत्नी से उत्पन्न संतानों और आप का समान अधिकार है। लेकिन आप की माता जी वैध पत्नी नहीं थी इस कारण इस संपत्ति में भी आप की माता जी को कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। यदि आप को अपने पिता की संपत्ति में अपना अधिकार प्राप्त करना है तो आप को पिताजी की संपत्ति के बँटवारे का वाद दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत करना पड़ेगा। इस दावे में आप को यह साबित करना पड़ेगा कि आप अपने पिता की संतान हैं। आप की माता जी का आप के पिता की किसी भी प्रकार की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है।