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वधु को दिए गए सभी उपहार दहेज नहीं, स्त्री-धन हैं।

hindu-marriage-actसमस्या-

 

प्रिया ने पटना, बिहार से पूछा है-
मैंने पिछले साल नवंबर में अपनी समस्या रखी थी जिसका समाधान भी आप ने दिया था। मैंनेअभी तक अपना स्त्रीधन वापस पाने के लिए धारा ४०६ के तहत अथवा अन्य कोई भीमुकदमा दायर नहीं किया है। कृपया मुझे बताएँ कि क्या ४०६ की कोई परिसीमनअवधि है? मेरे पास इस संबंध में फोन कॉल की आखिरी रिकॉर्डिंग २३ जून २०१३की है।इस कॉल में स्त्रीधन को वापस न करने की बात की गई है परंतुस्त्रीधन में कौन-कौन से गहने हैं तथा अन्य सामानों का विवरण नहीं है। क्याइससे मुझे दिक्कत हो सकती है?
मेरे पति ने अब मेरे विरुद्ध वैवाहिकसंबंधों की पुनर्स्थापना के लिए धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत मुकदमादायर कर दिया है जिसमें मुझ पर तथा मेरे माता-पिता पर उल्टे-सीधे आरोप लगाएगए हैं और यह कहा गया है कि समस्त स्त्रीधन मेरे पास है। सुनवाई की तिथि15 मई दी गई थी। लेकिन मेरा जाना संभव न हो पाने के कारण मैं नहीं जा सकी और मैं ने न्यायालय को एक प्रार्थना पत्र डाक से प्रेषित कर दिया है। यह मुकदमा उस नगर के पारिवारिक न्यायालय में दायर किया गयाहै जहाँ मेरी ससुराल है तथा जहाँ से हमारे विवाह को विशेष विवाह अधिनियम केअंतर्गत पंजीकृत किया गया था। इस नगर में फिलवक्त केवल मेरे सास ससुर रहतेहैं। जबकि मेरे पति म.प्र. के एक शहर में चले गए हैं। अलग होने के पूर्वमैं पति के साथ उ.प्र. में रह रही थी और हमारा विवाह हिंदू रीति रिवाजों सेपटना में हुआ था। तो क्या मैं यह मुकदमा अपने शहर पटना में स्थानांतरितकरवा सकती हूँ? मैं अभी यहीं पर कार्यरत हूँ।
मेरे पिताजी अवकाशप्राप्त सरकारी कर्मचारी हैं। यदि इस वाद के प्रत्युत्तर में हम विवाह केसंबंध में दिए गए दहेज का जिक्र करते हैं तो क्या इससे उन्हें परेशानी होसकती है?

 

समाधान-

 

धारा 406 आईपीसी में कोई लिमिटेशन नहीं है आप कभी भी इस की शिकायत पुलिस को दर्ज करवा सकती हैं या फिर न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर सकती हैं। यह वास्तव में स्त्री-धन जो कि पति या उस के परिजनो के पास है उसे मांगे जाने पर देने से इन्कार कर देने पर उत्पन्न होता है। आप के पति ने उसके पास जो आप का स्त्री-धन है उस के बारे में यह मिथ्या तथ्य अपने आवेदन में अंकित किया है कि वह आप के पास है। इस तरह वह आप के स्त्री-धन को जो पति के पास अमानत है उसे देने से इन्कार कर रहा है। इसी से धारा-406 आईपीसी के लिए वाद कारण उत्पन्न हो गया है। आप जितनी जल्दी हो सके यह परिवाद पुलिस को या फिर न्यायालय में प्रस्तुत कर दें। यह सारा स्त्री-धन आपके पति के कब्जे में आप के विवाह के समय पटना में सुपूर्द किया गया था इस कारण से उस का वाद कारण भी पटना में ही उत्पन्न हुआ है और आप यह परिवाद पटना में प्रस्तुत कर सकती हैं।

हेज के लेन देन पर पूरी तरह निषेध है तथा यह लेने वाले और देने वाले दोनों के लिए अपराध भी है। किन्तु पुत्री को या पुत्रवधु को उपहार दिए जा सकते हैं जो कि उस का स्त्री-धन हैं। आप के मामले में जो भी नकद या वस्तुएँ आप के पिता ने, आप के संबंधियों और मित्रों ने या फिर आप के ससुराल वालों ने आप को दी हैं। वे सभी स्त्री-धन है और वह आप के पति या ससुराल वालों के पास अमानत है। आप के मांगे जाने पर न देने पर धारा 406 आईपीसी का अपराध होता है।

प धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रकरण में आप के उपस्थित न होने से आप के विरुद्ध एक तरफा डिक्री पारित हो सकती है। यह डिक्री वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए होगी। जिस का मात्र इतना असर है कि यदि आप डिक्री होने के एक वर्ष तक भी आप के पति के साथ जा कर नहीं रहती हैं तो इसी आधार पर आप के पति को आप से विवाह विच्छेद करने के लिए आवेदन प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा। इस कारण यदि आप इस मुकदमे में जा कर अपना प्रतिवाद प्रस्तुत नहीं करती हैं तब भी उस में आप को किसी तरह की कोई हानि नहीं होगी।

प यदि विवाह विच्छेद चाहती हैं तो आप उस के लिए तुरन्त पटना में विवाह विच्छेद की अर्जी प्रस्तुत कर दीजिए। इस अर्जी के संस्थित होने के उपरान्त आप धारा-9 के प्रकरण को पटना के न्यायालय में स्थानान्तरित करने के लिए भी आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं।

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