अचल संपत्ति में मौखिक स्वामित्व-त्याग का कोई अर्थ नहीं है।
|समस्या-
भारत टेकवानी ने जावरा, जिला रतलाम, मध्यप्रदेश से पूछा है-
मेरे पिताजी ने 50 वर्ष पहले एक दुकान खरीद कर उसकी रजिस्ट्री स्वयं अपने और अपने भाई मतलब मेरे चाचाजी के नाम पर करवाई थी। चाचाजी ने 40 वर्ष पूर्व उक्त दुकान पर अपने अधिकार का त्याग कर दिया था। जो कि लिखित में नहीं है। उक्त दुकान में पिछले 40 वर्ष से मेरे पिताजी व्यापार कर रहे हैं। चाचाजी की मृत्यु हो चुकी हैं और अब उनके बेटे मुझसे दुकान के लिए विवाद कर रहे हैं। कानूनन इस दुकान पर किसका कितना अधिकार है?
समाधान-
दुकान के क्रय का पंजीयन आपके पिताजी और चाचाजी के नाम है। इसका सीधा अर्थ यह है कि वह दोनों के संयुक्त स्वामित्व की है, दोनों सहस्वामी हैं और दोनों का उसमें आधा आधा हिस्सा है।
आपका कहना है कि चाचाजी ने अपना अधिकार चालीस वर्ष पूर्व त्याग दिया था। इस तथ्य को साबित करने के लिए आपके पास कुछ नहीं है। वैसे भी यदि कोई व्यक्ति किसी अचल संपत्ति में अपने अधिकार का त्याग करता है तो यह संपत्ति हस्तान्तरण है। क्यों कि इस से संपत्ति के आधे हिस्से का स्वामित्व हस्तान्तरित होता है। यदि किसी अचल संपत्ति जिसका मूल्य 100 रुपये से अधिक का हो तो उसका हस्तान्तरण बिना पंजीकृत विलेख के नहीं हो सकता। इस कारण मौखिक रूप से अधिकार के त्याग का कोई अर्थ नहीं रहा है।
इस तरह उक्त दुकान पर आपके पिता और चाचाजी का समान रूप से अधिकार है। आपके चाचाजी के देहान्त के बाद उनके उत्तराधिकारियों को जिस में उनके पुत्र पुत्री और पत्नी सम्मिलित हैं आधी दुकान का अधिकार प्राप्त है। यदि उन्हें आधी दुकान का दाम दे कर संतुष्ट किया जाए तो सभी उत्तराधिकारियों से हक-त्याग विलेख निष्पादित करवा कर उप पंजीयक के यहाँ पंजीयन कराना होगा।