पटना और लाहौर में उच्च न्यायालयों की स्थापना : भारत में विधि का इतिहास-83
|पटना उच्च न्यायालय
पटना उच्च न्यायालय |
बिहार और उड़ीसा कलकत्ता प्रेसीडेंसी के ही भाग थे। 1912 में बिहार और उड़ीसा को बंगाल से अलग कर एक अलग प्रांत बनाया गया। तभी यह निश्चित हो गया था कि इस प्रांत के लिए अलग उच्च न्यायालय होना आवश्यक है। 22 मार्च 1912 को पटना में उच्च न्यायालय की स्थापना के लिए घोषणा पत्र जारी कर दिया गया। 1 दिसंबर 1913 को पटना हाईकोर्ट की इमारत के निर्माण के लिए शिलान्यास हुआ। 1916 में इस इमारत का निर्माण पूर्ण हो जाने पर 3 फरवरी 1916 को उच्च न्यायालय की स्थापना कर दी गई। पटना उच्च न्यायालय में वास्तविक रूप से कार्य 1 मार्च 1916 को ही आरंभ हुआ। पटना उच्च न्यायालय को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समान ही अधिकारिता प्रदान की गई थी। उड़ीसा को बिहार प्रांत से 1936 में पृथक कर दिया गया। हालांकि उड़ीसा उच्च न्यायलय की स्थापना भारत स्वतंत्र हो जाने के उपरांत 1948 में ही हो सकी। तब तक पटना उच्च न्यायालय की अधिकारिता उड़ीसा पर भी बनी रही।
लाहौर उच्च न्यायालय
लाहौर हाईकोर्ट |
पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह ने सदर अदालत की स्थापना की थी। जैसे ही अंग्रेजों ने पंजाब पर अधिकार किया, पूर्व की परंपरा के अनुसार वहाँ चीफ कोर्ट के नाम से सदर अदालत को चालू रखा इसे ही बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन कहा जाता था। 1853 में बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन को चीफ कमिश्नर की कोर्ट में बदल दिया गया। इस न्यायालय में एक एडमिनिस्ट्रेशन कमिश्नर और एक जुडिशियल कमिश्नर हुआ करता था। 1919 में लेटर्स पेटेंट के अंतर्गत लाहौर में उच्च न्यायालय की स्थापना हुई। जिस के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति ब्रिटिश सम्राट द्वारा की गई थी। 21 मार्च 1919 को स्थापित किए गए लाहौर उच्च न्यायालय की अधिकारिता में पंजाब और दिल्ली के क्षेत्र सम्मिलित थे। लाहौर उच्च न्यायालय को भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तरह ही शक्तियाँ प्रदान की गई थीं। स्वतंत्रता के साथ ही देश का विभाजन हो जाने से लाहौर उच्च न्यायालय पाकिस्तान में चला गया। तब पंजाब के लिए पृथक उच्च न्यायालय की स्थापना की गई। 1966 में संघ राज्य दिल्ली के लिए उच्च न्यायालय की पृथक स्थापना तक पंजाब उच्च न्यायालय की अधिकारिता दिल्ली के क्षेत्र पर भी बनी रही।
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7 Comments
I’d have to acquiesce with you one this subject. Which is not something I usually do! I love reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to speak my mind!
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अच्छी जानकारी.
आप के आज के लेख से पता चला कि उड़ीसा और बिहार कभी बंगाल के ही हिस्से थे, बहुत ग्याण वर्धक समग्राही मिलती है आप के इन लेखो से. ध्न्यवाद
ज्ञानदत्त ने लडावो और राज करो के तहत कल बहुत ही घिनौनी हरकत की है. आप इस घिनौनी और ओछी हरकत का पुरजोर विरोध करें. हमारी पोस्ट "ज्ञानदत्त पांडे की घिनौनी और ओछी हरकत भाग – 2" पर आपके सहयोग की अपेक्षा है.
कृपया आशीर्वाद प्रदान कर मातृभाषा हिंदी के दुश्मनों को बेनकाब करने में सहयोग करें. एक तीन लाईन के वाक्य मे तीन अंगरेजी के शब्द जबरन घुसडने वाले हिंदी द्रोही है. इस विषय पर बिगुल पर "ज्ञानदत्त और संजयदत्त" का यह आलेख अवश्य पढें.
-ढपोरशंख
अच्छी रोचक जानकारी.
एक अपील:
विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
पता ही नहीं था की उड़ीसा और बिहार भी एक थे कभी .
जानकारी के लिए आभार !
कभी immigration की पीड़ा पर भी लेख लिखें. मेने कुछ दर्द के कुछ तार इधर छेड़े हैं 🙂
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/05/blog-post_11.html